सैणी-सुजस

।।छंद – रेंणकी।।
लाळस कव लूण एक ही लिवना,
रात दीह हिंगळाज रटी।
वीदग रै घरै बेकरै बाई,
पह निज देवी तूं प्रगटी।
सकळापण जांण आंण ले सरणो,
नत हुय सुर नाग नमै।
जुढिये इळ विमळ सैणला जोगण, रंग सोनथळ मात रमै।।
जिय रंग सोनथळ मात रमै।।१[…]
।।छंद – रेंणकी।।
लाळस कव लूण एक ही लिवना,
रात दीह हिंगळाज रटी।
वीदग रै घरै बेकरै बाई,
पह निज देवी तूं प्रगटी।
सकळापण जांण आंण ले सरणो,
नत हुय सुर नाग नमै।
जुढिये इळ विमळ सैणला जोगण, रंग सोनथळ मात रमै।।
जिय रंग सोनथळ मात रमै।।१[…]
।।छंद – रेणकी।।
सुनियत अत भ्रमत नमत मन हरिसन, भगत मुगत भगवत भजनं,
सुरपत पत महत रहत रत समरत, सत द्रढ व्रत गत मत सजनं,
धत लखत रखत जगपत उर धारण, सुरत पुकारण श्रवण सुणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै,
जिय बिकट रूप नरसिंघ बणै।।1।।[…]
।।छंद रेंणकी।।
जस रो हद कोट जोड़ नह जिणरी,
रण चढिया अणमोड़ रह्या।
चावो चित्तौड़ पाट चक च्यारां,
वसुधा सतवाट घोड़ बह्या।
तांणी खग मोड़ तोड़ दल़ तुरकज,
कीरत कंठां कोड़ करै।
झूली सत झाल़ पदमणी जौहर,
भू धिन जाहर साख भरै।।1[…]
संतो पीरों और मुरशिदों की वंदना स्तवन हमारी कविता की एक परंपरा रही है। कवि ब्रजलाल जी कविया बिराई के थे।आप नें जालंधरनाथ की एक जगह जो कि पश्चिमी राजस्थान में रातै भाखर बाबे के नाम से जानी जाती है और उस लाल पहाड़ी पर जालंधर नाथ जी का मंदिर है जिसकी आप नें सरस सरल और सुगम्य शब्दों में वंदना की है।
🌷दूहा🌷
देसां परदेसां दुनी,क्रीत भणें गुण काज।
स्याय करै सह सिष्ट री, रातै गिर सिधराज।।१
वाल़ां री वेदन बुरी,इल़ ऊपर दिन आज।
हे सांमी!संकट हरे, राते गिर सिधराज।।२[…]
।।छंद – रेंणकी।।
हरणी हर कष्ट समरियां हर दिन, करणी तूं हर काज करी।
सरणी नर रटै सबर रख, सांप्रत, खबर जैण री जबर खरी।
झरणी नित नेह बाळकां, जरणी, वरणी जस इळ बीसहथी।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।१
फसियो इळ पाप बहू विध फंदन, बंधन कितरा है ज वळै।
विसर्यो पड़ दोख तिहाळो वंदन, भाळो मंदन बुद्ध भळै।
इम आप तणो अवलंब, ईसरी, जाप नेम री नह जुगती।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।२[…]
।।छंद-रे़णकी।।
राखै नव मास उदर मँझ रक्षा,
सास सास हद कष्ट सहै।
सींचै तन वेल रगत सूं सांप्रत,
रीझ जिणी पर मुदित रहै।
खीजै नहीं, भाव भरण नित खम्या,
ध्यान आप सूं अधक धरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,
कुण जामण री होड करै।।1[…]
।।छंद रेंणकी।।
समरथ मत विसर अहर निस सांप्रत
परवर सुर नर होत पखै।
जाहर घट बात जबर जगदीसर
रब सब री इम खबर रखै।
मोटम घर आस मकर फिकर मन तूं
डगर अडर इण एक डटै।
पांतर मत पलक अलख अखिलेसर
कर हर सुमऱण पाप कटै।।१[…]
सेंग माताजीयां रा भेळा हुय रास रमण रा छंद।
।।दूहो।।
एक समै जगमात जय, उर अति धरे उमंग।
निरत करत तट मानसर, राजत पट नवरंग।।1।।
।।छंद – रेणंकी।।
राजत पट सधर नीलंबर अंबर, धर नवसत शिणगार धरे।
फरर पर थंभ धजा वर फरकत, झरर झरर प्रतिबिंब झरे।
लळ लळ उर हार गुलाब ज लळकत, सिर पर गजरा कुसुम सजै।
परघट धर सधर मानसर उपर, सकत सकळ मिळ रास सजैं।।1।।[…]
चारण समाज में ऐसे कई नामी अनामी कवि, साहित्यकार तथा विभिन्न कलाओं के पारंगत महापुरुष हुए हैं जो अपने अथक परिश्रम और लगन के कारण विधा के पारंगत हुए लेकिन विपरीत संजोगो से उनके साहित्य और कला का प्रसार न हो पाने के कारण उन्हें जनमानस में उनकी काबिलियत के अनुरूप स्थान नहीं मिल पाया। अगर उनकी काव्य कला को समाज में पहुचने का संयोग बेठता तो वे आज काफी लोकप्रिय होते।
उनमे से एक खेतदान दोलाजी मीसण एक धुरंधर काव्य सृजक एवं विद्वान हो गए है।[…]
» Read moreकवि अर कविता री कूंत रो अद्भुत प्रसंग
किणी कवि कविता नै संबोधित करतां कविता नै चारणां रैअठै हालण रो सटीक कारण बतायो है, कै चारण प्राकृतिक रूप सूं काव्य रा प्रेमी होवै सो कविता अधूरी है तो पूरी करावैला अर जे पूरी है तो मुक्तकंठ सूं प्रशंसा करेला-
हाल दूहा उण देसड़ै, जठै चारण बसै सुजाण।
करै अधूरा पूरती, पूरां करै बखाण।।
ऐड़ो ई एक काव्य प्रेम रो अजंसजोग प्रसंग है ऊजल़ां रै गुलजी ऊजल़ (गुलाबजी) रो। ठिरड़ै रो गाम ऊजल़ां आपरी साहित्यिक अर सांस्कृतिक विरासत रै पाण चावो रैयो है। मोगड़ा रा संढायच गोपालजी रै तीन बेटा 1रानायजी 2सोढजी 3ऊदलजी (शायद ऊदलजी रो ई नाम ऊजल़जी होवैला) इणी ऊदलजी री वंश परंपरा में लालैजी नोखावत नै गोविंद नारावत ऊजलां गाम सांसण इनायत कियो। इणी गौरवशाली वंश परंपरा में[…]
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