नव नाथ स्तवन
🌺छंद त्रिभंगी🌺
जय अलख निरंजण, भव दुःख भंजण, खळ बळ खंडण, जग मंडण।
शंकर अनुरंजण, नित रत जिण मन, प्रणव प्रभंजण, जिम गुंजण।
गुरू देव चिरंतन, आदि अनंतन, सब जग संतन, रूप दता।
नव नाथ निवंता,आणंद वंता,मन मुदितंता, नाचंता॥1॥ […]
Charan Community Portal
🌺छंद त्रिभंगी🌺
जय अलख निरंजण, भव दुःख भंजण, खळ बळ खंडण, जग मंडण।
शंकर अनुरंजण, नित रत जिण मन, प्रणव प्रभंजण, जिम गुंजण।
गुरू देव चिरंतन, आदि अनंतन, सब जग संतन, रूप दता।
नव नाथ निवंता,आणंद वंता,मन मुदितंता, नाचंता॥1॥ […]
🌺छंद त्रिभंगी🌺
काशी रा काळा, दीन दयाळा,वीर वडाळा, वपु -बाळा।
कर दंड कराळा, डाक-डमाळा, चम्मर वाळा, खपराळा।
मथ अहि मुगटाळा, ललित लटाळा, घूंघरवाळा, छमां छमा।
खं खेतरपाळा, रह रखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥1॥ […]
नीति सम्बन्धी राजस्थानी सौरठों में “राजिया रा सौरठा” सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है| भाषा और भाव दोनों द्रष्टि से इनके समक्ष अन्य कोई दोहा संग्रह नही ठहरता| संबोधन काव्य के रूप में शायद यह पहली रचना है| इन सारगर्भित सौरठों के भावों, कारीगरी और कीर्ति से प्रभावित हो जोधपुर के तत्कालीन विद्वान् महाराजा मान सिंह जी ने उस सेवक राजिया को देखने हेतु आदर सहित अपने दरबार में बुलाया और उसके भाग्य की तारीफ करते हुए ख़ुद सौरठा बना भरे दरबार में सुनाया —-
सोनै री सांजांह जड़िया नग-कण सूं जिके |
कीनो कवराजांह, राजां मालम राजिया ||
अर्थात हे राजिया ! सोने के आभूषणों में रत्नों के जड़ाव की तरह ये सौरठे रच कर कविराजा ने तुझे राजाओं तक में प्रख्यात कर दिया |[…]
🌺छंद त्रिभंगी🌺
दुख भंज दुँदाळा, देव दयाळा, सुत शिव वाळा, गिरजाळा।
जय चार भुजाळा, हे फरसाळा, नमन निराळा, मन वाळा।
वंदन विरदाळा, तरसूळाळा आव उताळा, गणनाथम्।
रिधि सिधि रा स्वामी, नाथ नमामी, हुं खल कामी, माफ करम्।1
आखू असवारी, गज मुख धारी, हुं बलिहारी, हुं थारी।
नह जिण री कारी, संकट भारी, उण दो जारी, दुख हारी।
भगतां रा भारी, हे हितकारी, द्रढ व्रत धारी, इक दंतम्।
रिधि सिधि रा स्वामी नाथ नमामी, हुं खलकामी, माफ करम्।।2
करीब ११ वीं-१२ वीं शताब्दी में हालामण रियासत की धूमली नामक नगरी का राजा भाण जेठवा था। उसके राज्य में एक अमरा नाम का गरीब चारण निवास करता था। अमरा के एक २० वर्षीय उजळी नाम की अविवाहित कन्या थी। उस ज़माने में लड़कियों की कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी पर किसी कारण वश उजळी २० वर्ष की आयु तक कुंवारी ही थी। अकस्मात एक दिन उसका राजा भाण जेठवा के पुत्र मेहा जेठवा से सामना हुआ और पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच प्रेम का बीज पनपा जो दिनों दिन दृढ होता गया। दोनों […]
» Read moreजैसलमेर के रावत लूणकरणजी की पुत्री उमा दे का विवाह जोधपुर के राव मालदेव से हुआ था। दहेज में उमा दे के साथ उनकी दासी भारमली भी जोधपुर आ गयी। भारमली रुप-लावण्य तथा शारीरिक-सौष्ठव में अप्सराओं जैसी अद्वितीय थी। विवाहोपरान्त मधु-यामिनी के अवसर पर राव मालदेव को रंगमहल में पधारने का अर्ज करने हेतु गई दासी भारमली के अप्रतिम सौंदर्य पर मुग्ध होकर मदमस्त राव जी रंगमहल में जाना बिसरा भारमली के यौवन में ही रम गये। इससे राव मालदेव और रानी उमा दे में “रार” ठन गई, रानी रावजी से रुठ गई। यह रुठन-रार जीवनपर्यन्त रही, जिससे उमा दे “रुठी राणी” के […]
» Read moreकवि अपनी दो पंक्तियों में भी वह सब कह देता है जितना एक गद्यकार अपने पुरे एक गद्य में नहीं कह पाता, राजा महाराजाओं के राज में कवियों को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी हुआ करती थी और वे कवि अपने इस अधिकार का बखूबी निडरता से इस्तेमाल भी करते थे।चारण कवि तो इस मामले बहुत निडर थे राजा कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसकी गलत बात पर ये चारण कवि अपनी कविता के माध्यम से राजा को खरी खरी सुना देते थे।शासक वर्ग इन कवियों से डरता भी बहुत था कि कहीं ये कवि उनके खिलाफ कविताएँ न बना […]
» Read moreइतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध जैसलमेर की उस राजकुमारी उमादे जो उस समय अपनी सुन्दरता व चतुरता के लिए प्रसिद्ध थी को उसका पति राव मालदेव जो जोधपुर के इतिहास में सबसे शक्तिशाली शासक रहा ने क्या कभी उसे मनाने की कोशिश भी की या नहीं और यदि उसने कोई कोशिश की भी तो वे क्या कारण थे कि वह अपनी उस सुन्दर और चतुर रानी को मनाने में कामयाब नहीं हुआ। रूठी रानी उमादे की दासी भारमली के चलते ही रानी अपने पति राव मालदेव से रूठ गई थी। शादी में रानी द्वारा रूठने के बाद राव […]
» Read moreराजस्थान में एक कहावत है “बांका पग बाई पद्मा रा” अर्थात यदि आपको किसी बात पर किसी व्यक्ति पर पूरा शक है कि ये गलती इसी की है तो कह दिया जाता “बांका पग बाई पद्मा रा” अर्थात कसूर तो इसका ही है। संदर्भ कथा – आज से कोई चार सौ वर्ष पहले मारवाड़ राज्य के एक गांव में मालाजी सांदू नाम के एक बारहठ जी रहते थे उनके एक पद्मा नाम की बहन थी। राजस्थान में चारण जाति के लोग हमेशा से बहुत बढ़िया कवि रहे है। पद्मा भी बहुत अच्छी कविताएँ कहने में माहिर थी एक अच्छी कवियत्री होने […]
» Read moreजयपुर नरेश जयसिंह व जोधपुर के महाराजा अभय सिंह तीर्थ यात्रा पर पुष्कर पधारे थे, दोनों राजा पुष्कर मिले और अपना सामूहिक दरबार सजाया, दरबार में पुष्कर में उपस्थित दोनों के राज्यों के अलावा राजस्थान के अन्य राज्यों से तीर्थ यात्रा पर आये सामंतगण शामिल थे, दरबार में कई चारण कवि, ब्राह्मण आदि भी उपस्थित थे, दोनों राजाओं के चारण कवि अपने अपने राजा की प्रशंसा में कविताएँ, दोहे, सौरठे सुना रहे थे, तभी वहां एक कवि पहुंचे जो निर्भीकता से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते थे। महाराजा अभयसिंह जी ने कवि का स्वागत करते कहा – बारहठ […]
» Read more