मत कर

दास मत बण दौर रो,तूं-
और री कीं आस मतकर।
गौर कर इतिहास गहला,
ठौर री ठकरास मत कर।।

मायतां रै माण मांही,
हाण देखै सौ हरामी।
काण कुळ री हाथ वांरै,
देण री दरखास मत कर।। […]

» Read more

नैण

नैणा री मद धार वै, तौ प्याला बेकार।
नशौ प्रेम रो सब सिरै, सजण परूसण-हार।।1

नैणा री मनुहार नें, सैण करौ स्वीकार।
जैण नसो होसी जबर, रैण तणै अंधार।।2

नैणा घी री धार कर, पिया! लापसी-प्यार।
राज परोसूं आप कज, जिमौ  बारंबार।।3[…]

» Read more

।।शिवाष्टक।। – कवि जगमाल सिंह “ज्वाला” सुरतांणिया कृत

।।छंद।।
नहचे अधनंगा शिखर उतंगा आसन चंगा अवतारी।
पीयत घण पंगा गिरजा गंगा भूत भडंगा भयहारी।
लगताय लफंगा जट सिर जंगा प्रेत पिचंगा रूप बणे।
घण गंग झकोळा हरदम खोळा भोळा भोळा नाम भणे।1। […]

» Read more

माताजी के रास रमण का वर्णन – कवि जगमाल सिंह “ज्वाला” सुरतांणिया कृत

धिन एकम आज भवानिय चौसठ,मात धरा मनरंग मळी।
अति आनंद आज भरयो रतनाकर,नेन अमी वरसात वळी।
सब शोभयमान हुवे सिंह ऊपर,आभ उडड्गण भोम भमे।
सिणगार सजे नवलाख सुशोभित,रात उजाळिय रास रमे।1। […]

» Read more

सरस्वती वंदना – कवि जगमाल सिंह “ज्वाला” सुरतांणिया कृत

गीत जांगड़ो

शुभ्र वस्त्र वीण साज शुशोभित,बाई हंस बिराजे।
झनहण वीण ज तार झणंकत,राजीव उपर राजे।1।

वेद विरंचि खरेखर विमला,पुष्प शब्द प्रकाशे।
जाय बिराजे रसना जां के,उर जन होय उजासे।2।

धवल गात अरु सो पट धवला’धवल दंत मुख धारे।
धवल हंस शोभे धणियाणी,सेवक सोय सुधारे।3। […]

» Read more

चाळकनेची री स्तुति – कवि जगमाल सिंह “ज्वाला” सुरतांणिया कृत

संग सात सहेलिय आवड भेळिय गीगल गेलिय रास रमै।
नित रोज नवेलिय सांझ सवेलिय भेऴिय खेतरपाळ भमै।
करती घण केलिय आप अकेलिय शेर चढेलिय तुं शगति।
किरपा कर चाळक मात कृपाळक बाळक तोय करे बिनति॥1॥ […]

» Read more

वाणी वरदानी वदां

वाणी वरदानी वदां, आखर दानी आइ।
भाव उपानी भव्यतम, गिरा भवानी माइ॥1

वीण वजंती सरसती, आगै जेण मराल।
धवला सन धवलांबरा, गळ में स्फाटिक माळ॥2

फटिक मालिका फूटरी, फबती जिणरै तन्न।
वीण पांणि हंसासनी,म्हारी बसौ रसन्न॥3 […]

» Read more

कागा पग लागा थनें

कागा पग लागां थनै, मागां इतरो मीत।
घर री जागा बैठ मत, उड कर विरहण हीत॥1

कागा पुरसूं आप कज, खांड मलाई खीर।
खाय’र उडजा आवसी, तदै नणद रो बीर॥2

कागा थुं करकस घणौ, कडवा थारा बेण।
विरहण तौ पण राखती, नत्त नजीकां नेण ,॥3 […]

» Read more

घर कामिनी काग उडावती है

स्वर्गीय कवि शुभकरण सिंह जी उज्जवल (ग्राम भारोडी) पुलिस सेवा में थे। भीलवाडा में पोस्टिंग के वक्त वहाँ के एक सख्त एस पी साहब ने छुट्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया। शुभकरण जी को घर जाना बहुत जरूरी था। उन्हें कहीं से पता चला कि एस पी साहब बड़े साहित्य रसिक हैं, तो उन्होंने साहित्यिक शैली में एस पी साहब तक छुट्टी की अर्जी पहुँचाई।

एस पी साहब ने तत्काल छुट्टी सेंक्शन कर दी। वह कविता आप सभी की नजर… […]

» Read more
1 2 3 7