आई मोगल चालीसा
आई मोगल चालीसा
(कवि परताप री कही)
जगदंबा जगदीशरी, मोगल मोरी मात।
भव भय हरणी अंबिका, समपी तौने जात॥1॥
देवी चारण जात री, जग पुजाती बाइ।
ओखा धर उजवाळवा, मोगल प्रगटी आइ॥2॥
आद भवानी इशरी, प्रगटी जिण दन वार।
भगतां रो मंगळ हुओ, जग मांहि जयकार॥3॥ […]