भोपा भंडण रो गीत

गीत भोपा भंडण रो –
ऐह आंखियां लाल कर भाव हद अणावै
भगतपण जणावै देख भोपा।
सरम तज झूठ नैं साच कर सुणावै
खूब ऐ बणावै किता खोपा।। 1

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अमर शहीद प्रताप बारठ रै प्रति

हे पुण्य प्रताप!
थारै जेड़ा पूत
जिणण सारु जणणी नै
जोवणी पड़ेला वाट
जुगां जुगां तक
हे पुण्य प्रताप !
केहर री थाहर मे ही
रम सकै है थारै जैड़ा
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बदळाव

कांई फरक पड़ै कै राज कीं रो है ?
राजा कुण है अर ताज कीं रो है ?
फरक चाह्वो तो राज
नीं काज बदळो !
अर भळै काज रो आगाज
नै अंदाज बदळो !
फकत आगाज ‘र अंदाज ई नीं
उणरो परवाज बदळो !
आप – आप रा साज बदळो […]

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अवन पर कोपियो धणी असमान रो

।।गीत – प्रहास साणोर।।
अवन पर कोपियो धणी असमान रो अजब
अहर निस मुखां सूं अगन उगल़ै।
तड़फड़ै जीवड़ा छांह बिन तरवरां
परम ही हड़बड़ै बर्फ पिगल़ै।।1

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कैड़ी राफारोळ मची है

रचना जग री जबर रची है, बेमाता बेखबर पची है
इन्दर री आंख्या चकराई, सुंदर पोपां बणी सची है।
बाकी सगळा जाणबावळा, बाळ-बाळ बेमात बची है।
सामै ऊभो साच न सूझै, झांकै उण दिस कूड़ जची है।
इणरी उणनैं उणरी इणनैं, कैड़ी राफारोळ मची है।

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नाथजी रा सोरठा

जपतां जपतां जाप, आप बण गया औलिया।
पंड रा म्हारा पाप, नष्ट करौ अब नाथजी।१
तन रो कर तंबूर, मन वाणी मनमोवणी।
जोगी छेड जरूर, निज अंतर सूं नाथजी।।२
नीरमळ गंगा नीर, ऊजळ चित इम आपरो।
तिण सूं बैठौ तीर, नरपत न्हावण नाथजी।।३
पडूं तिहारै पाय, चरणां रो चाकर रखौ।
रीझौ हे गुरूराय, नुगरौ हूं घण नाथजी।।४[…]

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बीसहथ रा सोरठा

आगल़ किण आईह, मन चिंता राखूं मुदै।
म्हारी महमाईह, बणजै मदती बीसहथ।।1
कुलल़ो अनै करूर, समै बहै संसार में।
जोगण आव जरूर, बण मदती तूं बीसहथ।।2
करनी तूं करसीह, मोड़ो इणविध मावड़ी।
सुकव्यां किम सरसीह, बिगड़्या कारज बीसहथ।।3

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राजस्थानी रो पैलो जनकवि रंगरेलो वीठू

राजस्थानी डिंगल़ काव्य धारा रो इतियास पढां तो आपांरै सामी मध्यकाल़ रै एक कवि रो नाम प्रमुख रूप सूं ऊभर र आवै बो है रंगरेला वीठू रो। रंगरेला वीठू री कोई खास ओल़खाण इतियास ग्रंथां में देखण नैं नीं मिल़ै। रंगरेला रो जनम सतरवैं सईकै में जैसल़मेर रै सांगड़ गांम में होयो। कवि रो मूल़ नाम वीरदास वीठू हो। काव्य रा कणूका कवि में परंपरी सूं ई हा। कवि री रचनावां घणकरीक कुजोग सूं काल़ कल़वित होयगी पण जिकी रचनावां लोक रसना माथै अवस्थित रैयी, उणनैं पढियां वीरदास रो जनवादी कवि सरूप आपांरै सामी आवै। जिण बगत सत्ता सूं शंकतै […]

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जयो रंग करन्नल मात रमै – महाकवि मेहाजी वीठू झिणकली/खेड़ी

।।छंद -रोमकंद।।
वज भूंगल़ चंग मृदंग वल़ोबल डाक त्रंबाक वजै डमरू।
सहनाइय मादल़ भेर वखाणस संख सो झाल़र वीण सरू।
उपवै तन वाजत भाँत अनोअन पार अपार न कोय प्रमै
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस रंग करन्नल मात रमै। […]

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