प्रहास शाणोर बिरखा रो

प्रहास शाणोर बिरखा रो
उरड़ियो आज उतराध सूं ऐरावतपति
खरै मन उमड़ियो बहै खातो।
गहरमन नाज अगराजतो घुमड़ियो
मुरड़ियो काल़ रो देव माथो।।1

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ચારણ-કન્યા

ચારણ—કન્યા !
ચૌદ વરસની ચારણ કન્યા
ચૂંદડિયાળી ચારણ કન્યા

શ્વેતસુંવાળી ચારણ-કન્યા

બાળી ભોળી ચારણ-કન્યા
લાલ હીંગોળી ચારણ-કન્યા
ઝાડ ચડંતી ચારણ-કન્યા
પહાડ ઘુમંતી ચારણ—કન્યા
જોબનવંતી ચારણ-કન્યા
આગ-ઝરંતી ચારણ-કન્યા
નેસ-નિવાસી ચારણ-કન્યા […]

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सोशियल मिडिया री राजस्थानी साहित्य ने अनोखी भेट-लोक कवि मीठे खांजी मीर, डभाल

।।मीठिया रा सोरठा।।
परधन जिकै प्रमांण, ध्रब गिणै नह धूळ सम।।
होवे जिणरी हांण, मालिक रे घर मीठिया।।१।।
निरखै दूजी नार, कामी नर जो काम वश।।
(तो) खांतै हुय खौआर, मुऱख जगमें मीठिया।।२।।
जिकै हणै औ जीव, आमिष कारण नर अठै।।
(तो) निभै न ज्यांरी नींव, मिनखपणा री मीठिया।।३।।

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माँ करणी सूं विनती – मनोज चारण (गाडण) “कुमार”

।।छंद रोमकंद।।
इण धाम धरा पर नाम रहै, कर मात तुहीं किरपा हमपे।
करणी शरणै अब तोर पङे, धर हाथ तिहारो माँ सर पे।
कळू-काळ दकाळ करै फिरतो, माँ साय सहाय तूं ही करती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।१।

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वंदनीय वीर बलूजी चांपावत रा छंद

।।छंद रेंणकी।।
चावो गोपाल़ चहुंदिस चांपो, सुतन आठ घर थाट सही।
सांप्रत रजवाट हाट उर साहस, मोद कोम जस खाट मही।
दुसमण दल़ दाट कोट नव दुणियर, भड़ अड़ लीधी आप भलू।
तोड़ण मुगलांण मांण कज तणियो, वणियो मरवा वींद बलू।।1 […]

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कुळ चारण लुळ नमन करै

हल़्दीघाटी अर स्वतंत्रता आंदोलन रै सौदा सूरां नैं समर्पित एक छंद –

।।छंद – रेंणकी।।
पातल रै उपर पातसा अकबर
दूठ जदै गज ठेल दिया।
सधरै पिंडपाण साहस सूं सूरै
लेस बीह बिन झेल लिया।
सौदा तिण दीह वंस रा सूरज
केसव जसियो मरण करै
सौदा परिवार सिरोमण सारै
कुळ चारण लुळ नमन करै।।1[…]

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दारू दुरगण

आदरणीय मोहनसिंहजी रतनू री सेवा में लिख्यो एक छंद आज आपरी निजरां
।।छंद त्रोटक।।
सत मोहन भ्रात कहूं सुणियै।
धुर बांचत सीस मती धुणियै।
कल़ु कीचड़ जात फसी कतनू।
रण कोम रु काज करै रतनू।।1

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साहित राग बतीसी (रूड़ो साहित राग) – मीठा मीर डभाल कृत (डिंगळ री डणकार)

गावत किन्नर देव गण, उपजत हरख अथाग।।
इन्द्र सभा सूं आवियो, रूड़ो साहित राग।।१।।
शिव तांडव करतां समै, भव भव खुलेह भाग।।
भोळा रे मन भावतो, रूड़ो साहित राग।।२।।
सृष्टी हरखावत सघळी, नव कुळी रिझत नाग।।
गगन धरा गूंजायदे, रूड़ो साहित राग।।३।।

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गजल

कांई थांने याद है हा पोर खिलिया फूल हरियल बाग में!
नाचता हा मोर गाती कोयलां इण ठौड पंचम राग में!
डोलता तरु डाळ सौरम लेण मिस हर पळ अली भाळे कळी,
बीण, डफ, मंजीर जिम गुंजार जाणे घुळी सोरठ राग में!

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