सीमाड़ो वीर रुखाल़ै है

अणभै है धरती भारत री,
सीमाड़ो वीर रुखाल़ै है।

लाय सूरज री ठंडी हीलां,
गात जोबन नै गाल़ै है।।
हिमाल़ै री ऊंची चोटी ,
बर्फ मांय पग रोप्या है।
मुरधर रै ऊंनै इण धोरां
वीर सजोरांं जोप्या है।
बिखमी री वाटा ले झाटां
वीरत सूं कीरत आ खाटी।[…]

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आज उडाए बाज

व्यर्थ न अब बैठे रहो,बनकर यारों बुद्ध।
सुख शांति सौहार्द को, यवन करे अवरूद्ध।।१
अमन चैन की बात कर, चलते चाल विरूद्ध।
उनको देने दंड अब, करें न क्यों हम युद्ध।।२
हाथों में गांडीव धर,अर्जुन है तैयार।
आज कृष्ण पर मौन क्यों,महा समर को यार।।३

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करूणाष्टक – कृष्णदास छीपा

!!छन्द-ईन्द!!
मृग बंद को फंद मुकुन्द कट्यो दुख द्वन्द हट्यो विषयावन में
ग्रही ग्राह प्रचंड समंद विशाल गजेन्द्र की टेर सुनी छिन में
धर उपर घंट गयंद धरयो खग ईण्ड उद्धार कियो रन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!१!![…]

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बंदूकों से बात करो

मन की बातें बहुत हो गई, बंदूकों से बात करो।
टैंकों को बढ़ने दो आगे, आगे बढ़ आघात करो।
फोजों को मन की करने दो, होना है सो होने दो।
चीन भले करता हो चीं चीं, रोता है तो रोने दो।
राजनीति की रँगे खिलाड़ी, अब तो रँग दिखाओ तुम।
पल पल धोखा दिया उसे कुछ, अब तो सबक सिखाओ तुम।
कूटनीति के कौशल सारे, दिखलाने की बारी है।
विश्व पटल पे भारत की, कहदो कैसी तैयारी है।[…]

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शहीदां नैं चढा दिया थूक रा फगत दो आंसू

ओ कांई!! सदैव री गत
गादड़िया कद बड़ग्या
सिंघां री थाहर में?
मोत रै रूप!
आपां नैं ठाह ई नीं लागो!
सागैड़ी बात है भाईड़ां!
आपां तो अबकै ई
पीठ में छुरो खाय
भारत रै लालां रो

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21 वीं सदी की चुनौतियां और साहित्य-सृजन

21 वीं सदी में साहित्य का पाठकवर्ग ऊहापोह की स्थिति में है। आज के मध्यम या निम्न परिवार के पिता के लिए यह बड़ा संकट है कि वह अपने बेटे-बेटी के साथ घर-परिवार और पढ़ाई के अलावा कोई और बात करे तो क्या करे, जिससे वह अपनी औलाद को सामाजिक सरोकारों से जोड़ सके। साहित्य की विविध विधाएं हैं और फिल्म भी साहित्य का एक हिस्सा है, सब क्षेत्रों में सजग होना होगा। सामाजिक सरोकारों तथा मानवीय मूल्यों को बचाकर रखने का कार्य साहित्य का है अतः साहित्य को पूरे समाज का समग्र प्रतिबिंब बनना होगा।[…]

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साख रा सबद

‘दलित-सतसई’ श्री लक्ष्मणदान कविया री सद्य प्रकाशित काव्यकृति है। इणसूं पैली सतसई सिरैनाम सूं आपरी रूंख-सतसई, रुत-सतसई, मजदूर-सतसई अर दुरगा-सतसई (अनूदित) आद पोथियां छपी थकी है। दूहा छंद में सिरजी आ पोथी ‘दलित-सतसई’ आपरै सिरैनाम री साख भरती दलितां री दरदभरी दास्तान रो बारीकी सूं बखाण करै। कवि रो मानणो है कै मिनख मिनख सब अेक है पण मामूली स्वारथां रै मकड़जाळ में फंसियोड़ा मिनखां मिनखाचारै पर करारी मार मारी अर मिनखां में फांटा घाल दिया।[…]

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माता चामुंडा का त्रिभंगी छंद

॥छंद त्रिभंगी॥
कर रुप कराळं, नहद नताळं, भगतां भाळं, विकराळं।
डं डाक डमाळं, कोप कमाळं, बाज बताळं, पडताळं।
खटके ललखाळं, जोम भुजाळं, त्रोडण ताळं तिण तुंण्डा।
खडगां धरखंडा, असुर उतंडा, भय भ्रेकुण्डा, चामुण्डा।
जिय चोटीला री चामुंडा जय सुंधा वाळी चामुण्डा॥ 1 ॥[…]

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काळ – कवि रेवतदान जी चारण “कल्पित”

आभै ऊपर भमै गिरजड़ा चिलां उड़ती जाय
पग पग ऊपर ल्हास मिनख री कुत्ता माटी खाय
लूट डकैती खून चोरियां लाय लगी तो झालौझाळ
भूख भचीडा फिरै खावती नाचै झूमै सौ सौ ताळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यो गिरजा नै पूछ्यो कंकाळ
धोरां नै पूछै रुखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवालां रौ पडग्यो काळ[…]

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सांस्कृतिक-झरोखा – डा. आई दान सिंह भाटी

मैं चानण खिड़िया बोर ग्राम मारवाड़ निवासी आपके सामने कुछ बातें रखना चाहता हूँ। यों तो इतिहास राजपूतों और चारणों के सम्बन्धों से भरा पड़ा है पर मैंने जो देखा और किया वैसा विरलों ने ही देखा होगा, किया होगा। मैं जिस बोर ग्राम में जन्मा, उसे छोड़कर मेरे पिता लुम्बटजी पाघड़ी ग्राम में आ बसे। यह ग्राम सूराचंद ठिकाने का था और सूराचन्द के ठाकुर मेरी कविताओं पर रीझ गये थे। मैं पिताजी के साथ यहीं रहने लगा। पर यह तो मेरी यात्रा का प्रारम्भ था।[…]

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