आखर दे मुझ मात अमामी

।।छंद।।
वरदा रूप कवि मुख वाणी।
जुगत उगत सगल़ै जग जाणी।
अनड़ां शिखर तुंही उमँगाणी।
छिती तरां पत छाया छाणी।।

आखर दे मुझ मात अमामी।
सहज समापै सदबुद्ध सामी।
भगवती त्रिलोक ही भामी।
निरमल़ सुजस पढै जग नामी।।[…]

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देवां दातारां जूझारां-धुप दीप करते वक्त बोलने की स्तुति-हमीरदान जी रतनू

गीत – सपाखरो
देवां दातारां जूझारां चारां वेदां अवतारां दशां,
धरां हरां ग्यारां रवि बारां चारां धांम।।
सतियां जतियां सारां सुरां पुरां रिषेसरां,
पीरां पैगम्बरां सिद्ध साधकां प्रणाम।।१।।

नवां नाथां नवां ग्रहां नवसो नवाणुं नदी,
नखत्रां नवेही लाखां भाखां नवे निद्ध।।
पर्वतां आठ कुळां वसु आठ वंदां पाव,
साठ आठ तिरथां समेतां आठ सिद्ध।।२।।

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साहित-खेत रो सबळ रुखाळो: अड़वौ – पुस्तक समीक्षा

‘लघुकथा’ साहित्य री इयांकली विधा है जकी दूहे दाईं ‘देखण में छोटी लगै (अर) घाव करै गंभीर’ री लोकचावी साहित्यिक खिमता नैं खराखरी उजागर करै। ओपतै कथासूत्र रै वचनां बंध्योड़ी पण मजला सूं इधको हेत राखती गळ्यां-गुचळ्यां अर डांडी-डगरां री अंवळांयां सूं बचती सीधी अर सत्वर सोच्योड़ै मुकाम पूगण वाळी विधा है- लघुकथा। राजस्थानी साहित्य अर संस्कृति रा जाणीजांण, राजस्थानी प्रकृति नैं परतख पावंडां नापणियां, वनविभाग रा आला अधिकारी श्री अर्जुनदान चारण लघुकथावां रा खांतीला कारीगर है। आपरा दो लघुकथा संग्रै छप्या थका है। दोनूं मायड़भासा राजस्थानी मांय है। पैलो ‘चर-भर’ अर दूजो ‘अड़वौ’। ‘अड़वौ’ संग्रै मांय राजस्थानी जनजीवण, नीत-मरजाद, लोक-व्यवहार, लेण-देण, सेवा-चाकरी, मैणत-मजूरी, नीत-अनीत आद विषयां सूं जुड़ी 52 लघुकथावां भेळी है। […]

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की फिर पाजी हाण करै

।।गीत-सोहणो।।
राखै ज्यां सीस हाथ तूं राजी,
की फिर पाजी हाण करै।
अरियां परै खीज अगराजी,
सनमुख माजी काज सरै।।1
आसा सदा पूरणी आई,
धुर विसवासा अडग धरै।
काली भाषा समझ कृपाल़ी,
भाव हुलासा तुंही भरै।।2[…]

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सिंझ्या वेळा री माताजी री स्तुति – कवि देवीदानजी खिडीया धामाय कच्छ

॥छंद: मोतीदाम॥
बजे वर मंदिर मैं डफ डाक।
हुवे तित धूपन की धमछाक।
झनंकत झांझ मृदंग बजंत।
घणारव मंदिर घंट बजंत॥1॥
गजे घन आरतीकी घनघोर।
बजै बहु जोरसौ नौबत शोर।
जुरै तित जोगिनी जुथ्थ हजार।
रचे वर मंडल रास अपार॥2॥[…]

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मायड़भासा में शिक्षा अर व्यक्तित्व विकास

शिक्षा संस्कारां रो समंदर है। गुणीजनां रो मानणो है कै शिक्षा मिनख रै व्यक्तित्व रो सर्वांगीण विकास करै। मिनख नैं मिनख बणावण रो काम करै शिक्षा। आज रै समै री सबसूं बड़ी विडम्बना आ है कै मिनख तो बढ़ता जा रैया है पण मिनखपणै री मंदी आयगी। राजस्थानी लोकसाहित्य रो अेक दूहो है कै-

मिनख घणां ईं मुलक में, मिनखां तणो सुगाळ।
(पण) ज्यां मिनखां में मिनखपण, वां मिनखां रो काळ।।

मतलब ओ है कै मोकळी कोकळ बधरी है पण मिनखाचारो घटतो जा रैयो है।[…]

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गीत तेमड़ाराय रो

।।गीत-प्रहास साणोर।।
करां झूल़ तिरशूल़ ले चढै अब केहरी,
ऐहरी बगत में भीर आजै।
दूथियां सरब सुख सिमरियां देहरी,
लालधज मेहरी साथ लाजै।।1
भगत रा देख नित मनां रा भावड़ा,
तावड़ा, छांह कर तुंही टाल़ै।
मदत तैं आजलग करी नित मावड़ा,
पेख मग आवड़ा बो ई पाल़ै।।2[…]

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गीत जोरावरपुरा माताजी रो

डीडवाना के पास एक गाँव है जोरावरपुरा। अमरावत बारठों का गाँव है। वहां के चमत्कारी करनी मंदिर के दर्शन करके मां के चरणों में एक गीत निवेदन –

।।गीत साणौर।।
करै खास अरदास सब दास सुण करनला
आस कर आपरै द्वार आया।
मन्न में जास विश्वास अत मावड़ी
देविका रखाजे परम दाया।।
बळू तू कळू में रहीजे बीसहथ
चळूनद सोखणी मात चंडी।[…]

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चाल़कनेची का प्रहास शाणोर गीत – मीठा मीर डभाल

सरव परथम समरण मात तो शारदा,
रदे बीच भरोसो अडग राखूं !!
जीभ पर बिराजो आप मां जोगणी,
भवां चाळराय रा गुण भाखूं !!1!!
आप अम्ह बुद्धि बगसावजो आवड़ा,
करनल्ला मात तो महर कीजो !!
आपरो नाम लिय कर रहयो आपदा,
दयाळी उकत सध आप दीजो !!2!![…]

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प्रथम वर्षगांठ – www.charans.org

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नवरात्री स्थापना की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आज का दिन एक और कारण से विशिष्ठ है क्योंकि गत वर्ष आज ही के दिन माँ भगवती की प्रेरणा से www.charans.org साईट का शुभारम्भ किया गया था। आज इसकी पहली वर्षगांठ है।
एक छोटा सा पौधा जो पिछले शारदीय नवरात्री स्थापना के दिन लगाया गया था, आज आप सभी के सहयोग एवं उत्साहवर्धन से निरंतर प्रगती कर रहा है। कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं:

  • पिछले एक वर्ष में विश्व भर से इस साईट के अलग अलग पेज को ७३७८५ बार देखा गया|
  • […]
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