नीं बुझेला कदै ई प्रकाश!!

चित्तौड़ !
इण धरती रो सिरमोड़ !
ईं नीं बाजै है!
इणरै कण -कण में है
स्वाभिमान री सोरम
सूरमापणै री साख
जिकी नै राखी है मरदां
माथां रै बदल़ै!
रगत सूं सींचित
उण रेत रै रावड़ -रावड़ में
सुणीजै है अजै ई मरट रै सारू
मरण सूं हेत रा सुर![…]

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पदमणी पच्चीसी

जौहर री ज्वाल़ा जल़ी, राखी रजवट रीत।
चावै जगत चित्तौड़ नैं, पदमण कियो पवीत।।1
झूली सतझाल़ा जबर, उरधर साख अदीत।
गवराया धर गुमर सूं, गौरव पदमण गीत।।2
खप ऊभो खिलजी खुटल़, जिणनै सक्यो न जीत।
जौहर कर राखी जगत, पदमण कँत सूं प्रीत।।3
सतवट राख्यो शेरणी, अगनी झाल़ अभीत।
हिंदवाणी हिंदवाण में, पदमण करी पवीत।।4
जगमगती ज्वाल़ा जची, भल़हल़ साखी भास।
परतख रचियो पदमणी, ऊजल़ियो इतिहास।।5[…]

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पद्मिनी का प्रेम

सुंदरता खुद जिससे मिलकर, सुंदरतम हो आई थी।
जिसके मन मंदिर में अपने, पिय की शक्ल समाई थी।

शील, पतिव्रत की दुनिया को, जिसने सीख सिखाई थी।
जौहर की ज्वाला में जलकर, जिसने जान लुटाई थी।

सदियों के गौरव को जिसने, अम्बर तक पहुंचाया था।
स्वाभिमान को शक्ति देकर, खिलजी से भिड़वाया था।

जीते जी राणा को चाहा, और चाह ना उसकी थी।
सत-पथ पे चलती थी हरदम, सत पे जीती मरती थी।[…]

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जनतंत्र तो झाड़ छिंयाड़ी

जनतंत्र तो झाड़ छिंयाड़ी!
खावै गोधा हरियल़ बाड़ी!
गादी ऊपर तँत्र हावी!
जन री सांप्रत माड़ी भावी!
जन रै आडी जड़ी किंवाड़ी!
तंत्र अपणो बड़ो खिलाड़ी!
खादी कातण गांधी पचियो!
बदल़ै में अपजस ई बचियो!
चसमो जाणै कठै गम्यो है!
बिनां डांगड़ी डैण थम्यो है![…]

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बहू ढक्यां परिवार ढकीजै

च्यारां कानी धमा-धम बाजै। हेलाहेल कर्यां ई कोई नै सिवाय बीं धमचक रै कीं नीं सुणीजै। भयंकर तावड़ै में बळती चामड़ी पर पसीनो भी भाप बण’र उडज्यावै। अैड़ै-छेड़ै हेल्यां ई हेल्यां। कठै ई कोई खाली जाग्यां रो नाम ई कोनी। हरखियो बोल्यो भाइड़ा ईं शहर री गळ्यां-गूंचळ्यां में तो इत्ता फेर है कै आदमी तो कांई बापड़ी हवा नै ई गेलो कोनी मिलै। ईं वास्तै ई अठै इत्ती गरमी है। हरखियै री बात सुण’र अेकर सी सगळा मजदूरड़ा हँस्या पण ठेकेदार नैं आंवतो देख’र कीं बोल्यां बिनां ईं पाछा आप आपरो काम सळटावण में पिल पड़्या। ठेकेदार रो नांम भगवानो हो। बो बात रो पक्को अर खानदानी आदमी हो। ईं खातर बो फालतू री बाखाजाबड़ पसंद नीं करतो। बो तो सगळां नै आ ई कै राखी है कै जित्तो काम करो बित्ता दाम लेवो। काम नहीं तो दाम नहीं।[…]

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लाली

🌺गुजराती के वरिष्ठ कवि आदरणीय संजु भाई वाल़ा की (दोहा ग़ज़ल) कविता का राजस्थानी भावानुवाद🌺

लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल।
नभ रे नेवां सू वहै, अनहद वसु पर व्हाल।।१
तल़ में रमती वीजल़ी, प्रगटेला अब हाल।
मूट्ठी में पकडे शिखा, खेंच’र काढूं खाल।।२
छानां छपनां डोकिया, घट सूं काढे व्याल।
ओल़ख जिण मुसकल घणी, ओल़खतां मन न्याल।।३
ऐ केडा दिन थें दिया, करूं कठे फरियाद।
घणा हलाडूं हाथ पण, बजै नहीं करताल।।४[…]

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गद्दार तुम्हारी खैर नहीँ जो हमसे पंगा मोल लिया

मानव होकर जो पशुओं का चारा तक खा जाते हैं,
नेकी को नाचीज़ समझकर दूर बिठाकर आते हैं,
जिनके दिल से संवेदन के तारों का संपर्क कटा,
जो लाचारों की आहों पर सेंक रोटियां खाते हैं।

इस धरती पर आने वाले वहीँ लौटकर जाएंगे,
गाड़ी, बंगले, सोना, चांदी पीछे ही रह जाएंगे,
विकलांगों की वैशाखी से काला माल कमाने वाले,
तेरी कब्र खोदने हम सब बिना मजूरी आएंगे।[…]

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संकरिया सूंडाल़

किरता अपणै हाथ सूं, तोलै सबै करम्म।
सौ सुक्रत इक पाल़णै, एको साम धरम्म।।

ऐड़ो ई एक स्वामीभक्ति रो किस्सो है जुढिया रा लाल़स शंकरजी रो। शंकरजी लाल़स, लाल़स लूणैजी री वंश परंपरा में गोदोजी लाल़स सपूत अर तेजाजी रा पोता हा। जुढियो मा सैणी रो सुथान। जिण विषय में ओ दुहो चावो-

तखत दोनूं तड़ोबड़ै, जुढियो नै जोधाण।
बठै राजावां बैठणो, (अठै) सैणी तणो सुथान।।

लाल़स शंकरजी, महावीर कल्ला रायमलोत रै मर्जीदानां में सींवाणै रैवै। महावीर कल्लो अडर, साहसी अर स्वाभिमानी राजपूत हो। जिणरै विषय में महाकवि पृथ्वीराजजी राठौड़ लिखियो है-कल्लो भल्लो रजपूत कहीतो!![…]

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माटी थनै बोलणौ पड़सी – कवि रेवतदान चारण

मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।
करणौ पड़सी न्याय छेड़लौ, माटी थनै बोलणौ पड़सी।

कुण धरती रौ अंदाता है, कुण धरती रौ धारणहार ?
कुण धरती रौ करता-धरता, कुध धरती रै ऊपर भार ?
किण रै हाथां खेत-खेत में, लीली खेती पाकै है ?
किण रै पांण देष री गाड़ी, अधबिच आती थाकै है ?
कहणौ पड़सी खरौ न खोटौ, सांचौ भेद खोलणी पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।[…]

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बजरंग वंदना

।।छंद-रोमकंद।।
नभ मे रवि तेज निहारिय नाटक, राटक रांमत तैंज रची।
अड़ड़ाटक पूगिय जोर उंचांचळ, सांमथ दाटक बात सची।
जबरेल तुंही मुख झालिय झाटक, काटक भोम अंधार करै।
हड़मांन जहांन हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।1

बलवंत बुवो जग जांमण वाहर, लंघड़ सांमद पाज लँगी।
अजरेल त्रिकूट उथाळण आगळ, सांम रै कारज सांम सँगी।
पह सीत रै पास पुगो हरिपायक, सो सुखदायक हांम सरै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण देस पुकार करै।।2[…]

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