कर हर सुमरण पाप कटै

।।छंद रेंणकी।।
समरथ मत विसर अहर निस सांप्रत
परवर सुर नर होत पखै।
जाहर घट बात जबर जगदीसर
रब सब री इम खबर रखै।
मोटम घर आस मकर फिकर मन तूं
डगर अडर इण एक डटै।
पांतर मत पलक अलख अखिलेसर
कर हर सुमऱण पाप कटै।।१[…]

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કહું વાત કાન માં!

આવો જરાક આમ કહું વાત કાન માં!
અથ થી ઇતિ તમામ કહું વાત કાન માં!
ઉચ્ચૈશ્રવા ઉમંગ ના જે હણહણી રહ્યા,
તેને કરો લગામ કહું વાત કાન માં!
બાજુ ના ઘર માં કઇક તો નક્કી થયું જ છે,
ખખડી રહ્યાં છે ઠામ કહું વાત કાન માં!
સાવજ બની ને રોજ જે ડણકે છે ગર્વ થી,
તે ઘરમાં છે ગુલામ કહું વાત કાન માં![…]

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गोविंद भज रै गीधिया

गोविंद भजरै गीधिया, जाय रह्य दिन जाण।
विसर मती तूं बैवणो, आगै वाट अजाण।।१
गोविंद भज रै गीधिया, दिन जोबन रा दोय।
आगै जासी एकलो, करै न साथो कोय।।२
गोविंद भज रै गीधिया, हिलै जितै पग हाथ।
वदन आवसी बूढपण, बोल सकै नी बात।।३
गोविंद भज रै गीधिया, अजै समझ नै आज।
काल काल में कालिया, कछु ना सरसी काज।।४[…]

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जांभा सुजस – कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”

।।छंद – त्रिभँगी।।
जन मन जयकारा, धन तन धारा, अवन उचारा अवतारा।
पिंपासर प्यारा, दीन दुलारा, पुन प्रजारा, परमारा।
तपस्या तन तारा, भव पर भारा, भल भंयकारा भूप भया।
परगट परमेश्वर, जय जांभेशवर, निज अवधेश्वर रूप नया।।

नव विसी न्याती, धर्म धराती, वर्ण विनाती विख्याती।
जम्भ देव जमाती, कर्म कराती, मेहनत भाती मन थाती।
खिति पर धन ख्याती, परमल पाती, जबरी जाती सूंप जयो।
परगट परमेश्वर, जय जांभेश्वर, निज अवधेश्वर रूप नयो।।[…]

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डिंगल़ गीतां मांय चारण कवेसरां रो सूरापण

इण महाभड़ां रै टाल़ टीकमजी कविया बिराई, लूणोजी रोहड़िया सींथल, हरखोजी नगराजोत मूंजासर, भैरजी मीसण ओगाल़ा, अरजनजी किनिया सुवाप, मेहर दानजी सिंढायच माड़वा, करनीदानजी रतनू लूंबा रो गांम जोधजी बारठ तड़ला, धनजी लाल़स आकली, हणुवंतसिंह पदमावत सींथल़, विसन दानजी खिड़िया आद सतवादियां असत रै खिलाफ तत्कालीन शासक वर्ग द्वारा कियै समाज विरोधी कामां रै प्रतिकार सरूप घणी बहादुरी बताय तेलिया अर कटार कंठां कर जातीय गौरव नै अखी राखियो।
जैसलमेर महारावल़ रणजीतसिंह रै शासनकाल़ में चारणां सूं दाण लेवण रै विरोध में मेहरदानजी सिंढायच आपरो जिको आपाण बतायो बो आज ई चावो है-

जाय जैसाणै ऊपरै, जुड़ियो महिपत जंग।
अमलां वेल़ा आपनै, रेणव महरा रंग।।[…]

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म्हांरै कन्नै देवण नै फगत माथो है!!

सिरोही माथै महाराव केशरीसिंह रो राज। सिरोही राज रा आर्थिक हालात माड़ा। राज री माली हालात सुधारण अर कीं खजानो भरण री जुगत में दरबार कई नवा कर लगाय कर उगरावण रो दबाव बणायो। जिण लोगां नै कर उगरावण री जिम्मेदारी दी, उणां पुराणै कानून कायदां री धज्जियां उडावतां आडैकट उगराई शुरू कर दीनी।

इणी उगराई सारू एक जत्थो मोरवड़ै गांम ई ढूकियो। मोरवड़ा गांम महिया चारणां रो सांसण गांम। सांसण गांम हर प्रकार री लाग सूं मुक्त। आ बात जाणतां थकां ई दरबार रै आदम्यां आय लोगां नै भेल़ा किया अर टैक्स चुकावण री ताकीद करी। गांम रै मौजीज लोगां कैयो कै ओ तो सांसण गांम है! हरभांत री लाग-वाग सूं मुक्त, अठै आप इण पेटै हकनाक आया हो! अठै राज रा कानून नीं अठै म्हांरा ईज कानून चालै। आवणिया ई राज रा आदमी हा, उणां कैयो कै अबै इण भोपा डफरायां में कीं नीं धरियो है, टैक्स सादी सलाह में भरो जणै तो ठीक है नींतर राजरै हुकम सूं म्हांनै लैणो आवै।[…]

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छंद भयंकर भ्रमर भुजंगी – कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”

।।छंद – भ्रमर भुजंगी।।
जटा धार जंगा, गले में भुजंगा, सती नार संगा, गंगा धार गाजे।
खमे भ्रंग खारी, जमे कांम जारी, भमे रीस भारी लमे चन्द लाजे।
हुरां बीच हाले, चँडी साथ चाले, घटां प्रेम घाले, पटां प्रीत पावे।
अहो ओम कारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावे।।
कवी जो मधूको, धणी हेत धावे।

नचे खेल नट्टा, छिले अंग छट्टा, गिरां देत गट्टा, सुघट्टा, सुहाणी।
वजे नाद वाजा, अनेकां अवाजा, तपे भांण ताजा तके रीठ तांणी।
धुबे धोम धारां तिके थै ततारां, हजारां तरां ताल, भूमी हिलावे।
अहो ओमकारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावै।।[…]

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संतन स्वामी तो सरणं

।।छंद – त्रिभंगी।।
पैहाळ तिहारो भगत पियारो, निस थारो नाम रटै।
हिरणख हतियारो ले घण लारो, झैल दुधारो सिर झपटै।
हरनर ललकारो कर होकारो, दैत बकारो द्यो दरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।

इन्दर कोपायो ब्रिज पर आयो, वारिद लायो वरसायो।
धड़हड़ धररायो जोर जतायो, प्रळै मचायो पोमायो।
नख गिर ठैरायो इन्द्र नमायो, धिनो कहायो गिरधरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।[…]

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चारणों की आपसी मसखरी ! – राजेंद्र सिंह कविया

एक बार गांव हणूतिया मे आस पङोस के सभी सजातिय व अन्य सज्जनों का एक पर्व पर आने का संयोग हुआ हथाई का मेऴा मंडा चौक के पा स में कुआ बना था उसमें रस्सी से बालटी लगा कर भूणी पर से रस्सी को खेंच कर पाणी निकालने की प्रक्रिया चल रही थी भूणी जिसे चाकला भी कहते हैं आवाज कर रहा था पाणी भरकर बालटी या चङस बाहर आते समय आवाज धीमी व अलग होती है वापसी में खाली चङस वेग से जाता है तो आवाज अलग होती है।

वहां विराजित एक कवि ने प्रस्ताव किया कि सब कवि कल्पना करो किः…..
“यौ चाकलौ कांई कह रैयो छै”[…]

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गजल: देख लै – कवि जी. डी. रामपुरिया

🌺गजल🌺
चीरड़ा चुगता गळी गोपाळ देख लै।
पेट सारूं सैंग ही पंपाळ देख लै।।

मोह-माया रो दिनो दिन वाधपो दीसे।
काल कुण देखी है गैला काळ देख लै।।

प्रीत री माळा है काचे सूत में पोई।
रीत रिसती जा रही परनाळ देख लै।।

चींचड़ा कुरसी रै कितरा जोर सूं चिपिया।
लपलपाती जीब गिरती लाळ देख लै।।[…]

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