पितृहंता नरेश नै साच री आरसी दिखावणियो कवि, दलपत बारठ

आज आपां लोकतंत्र में आपां रै बैठायोड़ै प्रतिनिधि नै साच कैवता अर बतावता शंको खावां हां तो आप अंदाजो लगावो कै राजतंत्र री निरंकुशता सूं मुकाबलो करणो कितो खतरनाक हो? पण जिका साच नै साच कैवण री हिम्मत राखै बै डांग माथै डेरा राखै। बै नी तो घणो आबाद रैवण रो कोड करै अर नी उजड़ण सूं भय खावै। ऐड़ो ई एक किस्सो है बारठ दलपत ई़दोकली रो।
उण दिनां मारवाड़ माथै महाराजा अजीतसिंह शासन करै हा। पुख्ता होवण रै छतापण उणां आपरै उत्तराधिकारी अभयसिंह नै राज नी सूंपियो। इण सूं अभयसिंह नै ओ भय रैयो कै किणी कारणवश राज नी मिलियो तो ठीक नी रैवैला। सो कीकर ई राज लियो जावै। उणां आपरै भाई बगतसिंह नै कैयो कै “म्हारो तो हमे राज करण री इच्छा रैयी नी, जे तूं राजा बणणो चावै तो कीकर दरबार नै हटा देअर राजा बणज्या। म्हारी आ सलाह है।” राज रै लालच में आय बगतसिंह आपरै पिता अजीतसिंह नै धोखै सूं मार नाखियां।[…]