गूदड़ी वाले बाबा गणेशदास जी !!

आज से लगभग अस्सी नब्बे वर्ष पहले एक महान संत जयपुर के आसपास विद्यमान थे, जो गूदड़ीवाले बाबा के नाम से जाने जाते थे। उनका नाम गणेशदासजी था। वह दादूपंथी महात्मा थे। उस समय में जयपुर के प्रसिध्द गणमान्य लोगौं में बाबा की बड़ी मान्यता व स्वीकार्यता थी, तथा बाबा भी बड़े त्यागी-तपस्वी मनीषी थे। उस समय के संस्कृत के उद्भट विद्वान पं.वीरेश्वरजी शास्त्री ने बाबा का स्तवन इस प्रकार किया था:

निर्द्वंन्द्वो निःस्पृहः शान्तो गणेशः साधुतल्लजः
सानन्दः सर्वदा कन्थाकौपीनामात्रसंग्रहः
अर्थातः बाबा गणेशदास कैसे है निर्द्वन्द्व अर्थात ब्रह्मैक्यभाव-प्राप्त, सुख दुःखादि रहित व किसी प्रकार की इच्छामुक्त, शान्त वृति के साधुजनो में परमश्रेष्ठ व ब्रह्मानन्द में मगन रहते हैं व मात्र[…]

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रंग रे दोहा रंग – रंग बसंत

बसंत का हमारे देश में बडा ही महत्व है। बसंत रूत में प्रकृति नवपल्लवित हो उठती है। रंग बिरंगे फूलों से वातावरण मादक हो जाता है। किंशुक, पलाश के लाल फूल पहाडियों पर बडे ही मन भावन लगते है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने प्रकृति को गेरूए रंग में रंग दिया हो। बसंत पंचमी से होली तक लगातार बसंतोत्सव मनाया जाता है। फागुन तक अनवरत चलता यह महोत्सव भारतीयों के जीवन में घुल मिल गया है।

बसंतोत्सव मनाने के संदर्भ हमें संस्कृत साहित्य से लेकर राजस्थानी की प्राचीन कविताओं में मिलते है। मृच्छकटिकम नाटक में एक गरीब ब्राह्मण चारुदत्त और एक गणिका बसंतसेना के प्रेम का वर्णन किया गया है। इसमें बसंतोत्सव का शानदार चित्रण नाटककार छुद्रक ने किया है। महाकवि कालिदास नें भी अपने काव्य ऋतुसंहार में अन्य ऋतुऔं के साथ साथ बसंत ऋतु का बडा ही अद्भुत वर्णन किया है।[…]

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कभी-कभी तो दिल की भी मान लिया कर!

कभी- कभी तो दिल की भी मान लिया कर!
मुरझे हुए चेहरों पर भी मुस्कान दिया कर!!

निष्ठुरता से, बने रिस्ते भी भूल जाते हैं लोग!
उत्साह उमंगों की तरंगों का छात तान लिया कर!!

अपनी मस्ती में मस्त रहना भी ठीक नहीं यार!
कभी कभी दूसरों के देख अरमान लिया कर!!

लोगों की बातों का क्या ? वो होती रहती है!
अपनी बातों को सुनाने की कभी ठान लिया कर!![…]

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शिव-सुजस

।।छंद -त्रिभंगी।।
कासीपुर नाथम सो समराथम, नमो अनाथम हे नाथम!
इहगां दे आथम सत सुखदातम, रसा ज बातम दिनरातम।
धिन हो जो ध्यातम माथै माथम, हर निज हाथम हरमेसर।
भगवन भूतेसर जयो जटेसर, नमो नंदेसर नटवेसर।।1

कन कुंडल़धारी कमँडलधारी, गिरजा नारी गिरनारी।
भोल़ो भंडारी विजया जारी, आपू भारी आहारी।
दुनिया दुखियारी सिमरै सारी, संकट हारी शंभेसर।
भगवन भूतेसर जयो जटेसर, नमो नंदेसर नटवेसर।।2[…]

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महाराणा प्रतापसिंहजी की वीरोचित उदारता! – राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर

हल्दीघाटी रा समर होवण में ऐक दोय दिनां री ढील ही, दोनों ओर री सेनावां आपरा मौरचा ने कायम कर एक बीजा री जासूसी अर सैनिक तैयारियां री टौह लेवण ने ताखड़ा तोड़ रैयी ही। जंगी झूंझार जौधारां रो जोश फड़का खावण ने उतावऴो पड़रियो हो। राणाजी रा मोरचा तो भाखरां रै भीतर लागियोड़ा हा नै मानमहिप रा खुलै मैदानी भाग मे हा। लड़ाई होवणरै दो दिन पहली मानसिंहजी शिकार खेलण थोड़ाक सा सुभट साथै लैय पहाड़ां रै भीतरी भाग मे बड़ गिया। राणाजी रा सैनिक जायर राणाजी ने आ कही कि हुकुम इण हूं आछो अवसर कदैई नहीं मिऴेला अबार मानसिंहजी ने मारदेवां का कैद कय लेवां। इण बात पर राणाजी आपरी वीरता री उदारता दिखाय आपरा सुभटां ने पालर कैयो क आंपणै औ कायरता रो करतब नीं करणो है। आंपा धर्म रा रक्षक हां अर भगवानरा भगत हां जणैई आंपांरी बिजै हुवै है। महाराणाजी री ई उदारता रो बरणाव कवि केसरीसिंहजी सौदा रा मुख सूं।[…]

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नेता सूं रखजै मत यारी!

नेता सूं रखजै मत यारी!
प्रीतम नै कैवै सत प्यारी!!
नेता लेता केवल स्वामी!
देतापण री ना लत धारी!!
जन नै केवल छल़णो जाणै!
अणफट ऊपर है खत भारी!!
झड़ै झांसां पोयण हरदिस!
फसै जकां री है मत मारी!![…]

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कुबद्ध कमाई छोड बावल़ा!

कुबद्ध कमाई छोड बावल़ा!
मतकर भ्रष्टां होड बावल़ा!!
च्यार दिनां री देख चांदणी!
फैंगर मतकर कोड बावल़ा!!

लुकै नहीं अपराध लाखविध!
कूटीजै फिर भोड बावल़ा!!
लोकतंत्र में बिनां दावणै,
लेय तपड़का तोड बावल़ा![…]

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गज़ल की गज़ल

सन्नाटे को चीर गज़ल।
बन जाती शमशीर गज़ल॥1
शायर ने क्या खुब सजाया,
लगती जैसे हीर गज़ल॥2
जन जन के मन की जाने है,
संवेदन की पीर गज़ल॥3
नटखट कवि कान्हा को मिलने,
राधा बनी अधीर गज़ल॥4
चित में बस छाई फगुनाई,
छिडकै सदा अबीर गज़ल।5[…]

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हे मायड़ भाषा ! माफ करजै !

हे मायड़ भाषा! माफ करजै!
म्हे थारै सारू
कीं नीं कर सकिया!
फगत लोगां रो
मूंडो ताकण
उवांरी थल़कणां
धोक लगावण रै टाल़!
थारै नाम माथै
रमता रैया हां[…]

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तूं मंदर-मंदर भटक मती!!

तूं मंदर-मंदर भटक मती!
यूं हर आगल़ सिर पटक मती!
टांग मती अपणायत ऊंची!
भाव स्नेह रा गटक मती!!
आश लियां आवै विश्वासी!
देय निराशा झटक मती!!!
ग्यान-गहनता बातां रूड़ी!
पतियायां तूं कटक मती!![…]

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