चारन की बानी – डूंगरदानजी आसिया

स्वर्ण की डरीसी शुद्ध साँचे में ढरीसी मानो,
इन्द्र की परीसी एही सुन्दर सयानी है।
विद्या में वरीसी सरस्वती सहचरी सी,
महाकाशी नगरीसी सो तो प्रौढ औ पुरानी है।
जीवन जरीसी वेद रिचाऐं सरीसी गूढ
ग्यान गठरीसी अति हिय हरसानी है।
सांवन झरीसी मद पीये हू करीसी सुधा
भरी बद्दरी सी ऐसी चारन की बानी है।।१

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पुस्तक समीक्षा – पखापखी विहुणी निरख-परख

साहित्य सिरजण रै सीगै बात करां तो सगल़ां सूं अबखो अर आंझो काम है आलोचना रो। आलोचना रै पेटै काम करणियो नामचीन ई हुवै तो बदनाम ई। इण छेत्र में तो वो ई काम कर सकै जिणरै मनमें “ना काहू सों दोस्ती, ना काहू सों बैर “री भावना हुवै। हकीकत में आज इणरै ऊंधो हुय रह्यो है, आज तो आलोचना ई मूंडो काढर तिलक करण री परंपरा में बदल़ रह्यी है।
राजस्थानी आलोचना री बात करां तो आपां रै सामी आलोचकां रा नाम कमती अर पटकपंचां रा नाम ज्यादा अड़थड़था लखावै। यूं भी आलोचना करणो कोई बापड़ो विषय नीं है जिको हर कोई धसल़ मार देवै। आलोचना करणो खांडै री धार बैवणो है। जिण खांडै री धार माथै सावजोग रूप सूं बैवणो सीख लियो वो आलोचना रै आंगणै आपरी ओपती ओल़खाण दिराय सकै कै थापित कर सकै।[…]

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डिंगल़ वाणी में भगवती इंद्र बाई

माँ भगवती लीलाविहारिणी इन्द्रकुँवरी बाईसा का जन्म संवत १९६४ में हुआ था उनके भक्त कवि हिंगऴाजदानजी जागावत ने अवतरण की ऐक प्रसिध्द रचना चिरजा सृजित की है जिसमें विक्रम संवत १९६३ के आश्विन नवरात्रो में माँ हिंगऴाज के स्थान पर सभी देवियों की पार्षद भैरव सहित परिषद लगती है, उस परिषद में भैरव माँ को ज्ञापित करते हैं कि मरूधर देश में अवतार की आवश्कता है, भगवती हिंगऴाज अपनी अनुचरी आवड़ माँ को आदेश देकर सही स्थानादि बताकर मरूधरा में अवतार के लिए प्रेरित करती है व भगवती आवड़ अवतरित हो भक्तवत्सला बनती है अद्भूत कल्पना व शब्दों का संयोजन है रचना में यथाः…..

।।दोहा।।
सम्वत उन्नीसै त्रैसट्यां, साणिकपुर सामान।
शुक्ल पक्ष आसोज में, श्री हिंगऴाज सुथान।।

इसके ठीक नवमास बाद आषाढ शुक्ला नवमी को भगवती का अवतरण निर्दिष्ट स्थान पर हो जाने के बाद विभिन्न कवेसरों ने सहज सुन्दर व सरस सटीक वर्णन किया है यथा कुछ दृष्टान्त:[…]

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छंद करनीजी रा

।।छंद – रोमकंद।।
दुसटी कल़ु घोर हुवो दुख देयण, रेणव जात सुमात रटी।
महि गांम सुवाप पिता धिन मेहज, पाप प्रजाल़ण तूं प्रगटी।
इल़ जात उजाल़ण पातव पाल़ण, बात धरा पर तो वरणी।
धिन लोहड़याल़िय लाल धजाल़िय, तूं रखवाल़िय संत तणी।।1

प्रजपाल़ तुंही सरणाणिय पोखण, रोकण राड़ बिगाड़ रसा।
सबल़ापण हाकड़ धाकड़ सोखण, जोगण काज बखांण जसा।
जुध मांय अरी सिर वीजड़ झोखण, हेकण हाथ जमात हणी।
धिन लोहड़याल़िय लाल धजाल़िय, तूं रखवाल़िय संत तणी।।2[…]

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