खोडियार माताजी री स्तुति – हेमुजी चारण

।।छंद – नाराच।।
प्रवाळ नंग धाम पें, बणे सु गोख छब्बियं।
जळे सु जोत है ऊधोत, कोटीरुप से कियं।
अरक्कजा सुधा अगे, चडे सिंदुर चाचरी।
नमो सगत्त नित, नृत्त खोडली रमे खरी।।1।।[…]
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।।छंद – नाराच।।
प्रवाळ नंग धाम पें, बणे सु गोख छब्बियं।
जळे सु जोत है ऊधोत, कोटीरुप से कियं।
अरक्कजा सुधा अगे, चडे सिंदुर चाचरी।
नमो सगत्त नित, नृत्त खोडली रमे खरी।।1।।[…]
।।छंद – सारसी।।
तुंही रुद्राणी, व्रहमाणी, विश्व जाणी, वज्जरा।
चाळळकनेची, तुं रवेची, डुँगरेची, छप्परा।
विशां भुजाळी, वक्र वाळी, त्रिशूळाळी त्रम्मया।
वेदां वदंती, सारसत्ती, आध शगति उमिया।।1[…]
कुण नै चिंता करम री, करै सो आप भरेह।
पण इण भगवा भेख नैं, काळो मती करेह।।
काळा, धोळा, कापड़ा, या हो नंग धड़ंग।
भारत में है भेख रो, सूचक भगवों रंग।।
भगवैं नै भारत दियो, सदा सदा सम्मान।
भगवैं भी राखी भली, इण भारत री शान।।[…]
।।दोहा।।
पावन हूवौ न पीठवौ, न्हाय त्रिवेणी नीर।
हेक जैत मिऴियां हूवौ, सो निकऴंक सरीर।।
पीठवा चारण कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। इस कुष्ठ रोग से बहुत ही दुःखित होकर उससे छुटकारा पाने के लिए कितने ही तीर्थादि कर आया परन्तु उसका रोग नही गया। ज्यों ज्यों दवा की, मर्ज बढता ही गया। उसने सुना कि रावल मल्लीनाथ का छोटा भाई सिवाणां का राजा जैतमाल जो कि भगवान का बड़ा भक्त था उसके स्पर्श से कोढ रौग दूर हो सकता है।[…]
» Read moreत्यागमूर्ति श्री गणेशदास जी विक्रमी संवत १९३३ फाल्गुन शुक्ला पंचमी को जयपुर में ब्रह्मलीन हो गए थे। इन्हे अपने निर्वाण से ऐक दशक पहले नेत्र व्याधि होकर दृष्टि सम्पुर्णतः बंद हो गई थी तथा संसार असार हो गया था। इन्है अल्लूनाथजी का इष्ट था तथा वे कभी कभार जसराणा उनकी समाधि पर भी जाया करते थे। एक बार अकस्मात वे अल्लूजी को याद करने लगे और येन केन जसराणा समाधि पर पहुंच कर भाव विभोर होकर अरदास करने लगे।[…]
» Read more।।छंद – मोतीदाम।।
वडवार उदार संसार वषाण।
जोधार जूंझार दातार सुजाण।
दला थंभ वीरम तेज दराज।
साजै दिन राजै ऐ सूर समाज।।[…]
अमरेली के बजाजी सरवैया के कुंवर करणजी सरवैया के विवाह के दौरान सर्पदंश से हुई असामयिक मौत पर उनके घर से अर्थी उठाकर शमशान भूमि यात्रा पर जाते समय रास्ते में विवाह समारोह में शामिल होने के लिए आते हुए महात्मा ईसरदासजी मिले। यह अणचींती बात सुनकर उनको बहुत ही आघात लगा और उन्होने अपने योग सिध्दी और तपस्याबल से कुंवर को पुनः जीवित करने का संकल्प कर अर्थी को जमीन पर रखवा कर हठयोग साधना द्वारा निम्नांकित गीत कहा:[…]
» Read moreराजस्थानी साहित्य-आकाश रो अेक चमकतो सितारो अर आपां सगळां रो प्यारो बेली, भाई अर सैयोगी श्री ओम पुरोहित कागद आपरी लौकिक लीला नैं समेट र लारलै साल स्वर्ग पयाण करग्यो। आपरै व्यक्तित्व अर कृतित्व दोनां सूं साहित्यक समाज में आपरी न्यारी-निकेवळी अर उल्लेखणजोग छवि राखणियै अभिन्न अंग रो बिछोह साहित्यिक समुदाय सारू अपूरणीय क्षति है। कागद जी आज इण लौकिक संसार में नीं है पण वां रो साहित आज अर आगै ई वां री सूक्ष्म उपस्थिति आपां बिचाळै करावतो रैसी। आओ कागद री कवितावां सूं जुड़ी बात कर वांनै साची श्रद्धांजलि देवां-[…]
» Read moreवडभागी जलमै जठै, सब सुख थाय सवाय।
अेक चनण री ओट में, सारौ वन सुरमाय।।
ऐसे शौर्यमयी संस्कारों की धरती का एक अदभुत सूरमा था-वीरवर दुर्गादास राठौड़। दुर्गादास राठौड़ का जीवन वरेण्य व्यक्तित्व एवं अनुकरणीय कृतित्व का अनुपम उदाहरण है। राजस्थान के डिंगल कवियों ने उत्कृष्ट के अभिनन्दन एवं निकृष्ट के निंदन की सतत काव्यधारा प्रवाहित की है। मध्यकालीन इतिहास का अवलोकन करने पर राजस्थान के दो ऐसे वीर सपूतों का जीवन हमारे सामने आता है, जिनके शौर्य पर कवियों ने सर्वाधिक कलमें चलाई। वे हैं अप्रतिम वीर अमरसिंह राठौड़ एवं वीरवर दुर्गादास राठौड़।[…]
» Read moreखोटा रूपया खावतो, जावे सीधो जेल।
मिल जावे रज माजनो, बंश होय बिगड़ैल।।1
खोटा रूपया खावतो, लगे एसीबी लार।
निश्चय जावे नौकरी, बिगड़ जाय घरबार।।2
खोटा रूपया खावतो, चित्त में पड़े न चैन।
रात दिवस चिन्ता रहे, नींद न आवे नैन।।3
खोटा रूपया खावतो, खून ऊपजे खार।
घर कुसंप झगड़ो घणो, पूत जाय परवार।।4[…]