रक्षा कवच – करणी सायर कार – कामदार सा. श्री शिवदानसिंह जी हापावत

अबखी पुळ अबखी घडी, हाज़िर विपद हज़ार।
उण संकट में आपरी, करणी सायर कार।।१।।
देश प्रदेशा रात दिन, पग धरतां घर ब्हार।
जांणि अजांणी सब जगां, करणी सायर कार।।२।।
उण्डा पाणी उतरतां, नद्दी नाळा पार।
पग डिगतां बिखमी वखत, करणी सायर कार।।३।।
साँप बिच्छुँ गर गौहिरो, फण जहरी फुफकार।
जाड़ा डाढ़ा जकड़तां, करणी सायर कार।।४।।[…]

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चिरजा इंन्द्रबाईसा की – कवि हिंगऴाजदान जी जागावत

इंन्द्रबाई आये कृपा करि आप,
बड़ापण राज तणूं भारी।।टेर।।

पाप कोऊ प्रकट्यो मों पिछलो,
मैं मति भयो जु मंन्द।
मां मन बिलकुल कुटिल हमारो,
भूल गयो धज बन्द।
फेर फिर किरपा अणपारी।।1।।[…]

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करणीजी रा  छप्पय

बसुधा बीकानेर, जको जग जाहर जांणै।
सको इल़ा नम सेव, देव राजो देसांणै।
मगरै में महमाय, दाय कीधी दासोड़ी।
तूं राजै थल़राय, जेथ नवलख जुथ जोड़ी।
समरियां सदा आवै सगत, लाखी ओढण लोवड़ी।
दासोड़ी दास गिरधर दखै, मया रखै तूं मावड़ी।।1[…]

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चिरजा मंदिर की – कवि हिंगऴाजदान जी जागावत

आदरणीय जागावत हिंगऴाजदान जी सा चिरजावां में अनूठो प्रयोग करियो है। भगवती का मंदिर ने सम्बोधित करती दो रचनावां करी है जिणमें पहली में निवेदन है कि हे माँ भगवती आप भव्य मंदिर को निर्माण करवायो जिणमें कई भांत की विशेषता है, और दूसरी चिरजा में भवन ने कहियो है कि भवन तूं कितणो भाग्यशाली है जो बीसभुजाऴी भगवती आप में बिराजमान है। ।।प्रथम।। अम्बा हे गढ मानहु स्वर्ग बसायो। सो सह शकत्यां आय सरायो।।टेर।। दिशि पूरब झांकत दरवाजो, कोट तणो करवायो। ऊंचा पण देशाण अन्दाजै, लोयण भोत लखायो।।1।। बुरज उतर वारी पर भारी, “भगवती-भवन” बणायो। ताहि नजीक सरिस तैं […]

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द्वितीय वर्षगांठ – www.charans.org

वि.स. २०७४ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (२१ सितम्बर २०१७)

नवरात्री स्थापना की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आज का दिन एक और कारण से विशिष्ठ है क्योंकि दो वर्ष पूर्व आज ही के दिन माँ भगवती की प्रेरणा से www.charans.org साईट का शुभारम्भ किया गया था। आज इसकी दूसरी वर्षगांठ है।
एक छोटा सा पौधा जो दो वर्ष पूर्व शारदीय नवरात्री स्थापना के दिन लगाया गया था, आज आप सभी के सहयोग एवं उत्साहवर्धन से निरंतर प्रगति कर रहा है। कुछ तथ्य प्रस्तूत हैं:[…]

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मेहाई सतसई – नरपत आसिया “वैतालिक”

मेहाई सतसई

कवि नरपत आसिया “वैतालिक” कृत

अमर शबद रा बोकडा, रमता मेल्या राज।
आई थारे आंगणैं, मेहाई महराज॥
(शब्द रूपी अमर बकरा हे माँ आई मेहाई महराज आपरा मढ रे आंगण में रमता मेल रियो हूँ।)

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