झालामान शतक – नाथूसिंह जी महियारिया

नाथूसिंहजी महियारिया रचित झालामान शतक सर कोटि री उंचे दरजे री बेजोड़ रचना है, जिण कृति में सादड़ी (मेवाड़) रै राजराणा झाला मानसिंह जी रै उद्भट शौर्य, अदम्य साहस अर सूरापण, अर बिना सुवारथ बऴिदान रो बड़ो बर्णन करियो है। हऴ्दीघाटी री लड़ाई रो बड़ वीर नायक झालामान आप रै प्राणा नै निछावर कर आपरा धणी महाराणा रा प्राण बचाय इतियास मं अखीजस खाटियो।
हेक मान मुगलांण दिस, हेक मान हिंदवाण।
कूरम गज हौदे रह्यो, सुरग गयो मकवांण।।[…]

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चारण मनोहरदास नांदू (गांव – सुरपाऴिया, नागौर)

इतिहास में केई काऴ भुरजाऴ जंगी जोधारां रा संगी साथी ऐहड़ा कण पाण वाऴा अर आत्म बलिदानी होवता हा कि उणानै आपरै स्वामी री भक्ति आगै आपरो जीवण तोछो लखावतो अर बखत जरूरत माथै बलिदान देवण में कदैई शंकै अर हबक नें नैड़ी नीं आवण देवता। आज इतियास रा ऐहड़ा शूरवीर री चतुराई अर वीरत री वारता रो लेखो जोखो आंके करावां सा।[…]

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सत पथ

हर इक मोड़ गली चौराहे, रावण का ही राज यहां।
विध-विध रूपाकारी दानव, है जिनके सिर ताज यहां।
राम नाम तो यहां समझलो, लाचारी का सौदा है।
ईमान-धर्म इन सबसे बढ़कर, या पैसा या ओहदा है।
कलयुग पखी राह रावण की, जिन भरमाए भले-भले।
उस पथ पर चलना अति मुश्किल,जिस पर श्री रघुनाथ चले।

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नायिका शिख नख वर्णन (राम रंजाट)

यह छंद महाकवि सूर्यमल्ल रचित खंडकाव्य राम रंजाट से लिया गया है। उल्लेखनीय है कि महाकवि ने इस ग्रन्थ को मात्र १० वर्ष की आयु में ही लिख डाला था।


।।छंद – त्रिभंगी।।
सौलह सिनगारं, सजि अनुसारं, अधिक अपारं, उद्धारं।
कौरे चख कज्जळ, अति जिहिं लज्जळ, दुति विजज्जळ, सुभकारं।।[…]

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हम भारत के युवा

विश्वधरा पर ज्ञानदेव के सबसे बड़े पुजारी हैं।
हम भारत के युवा हमारी, मेधा सब पर भारी है।।

सागर से गहराई सीखी, हिमगिरि से दृढताई सीखी।
नदियों से हिलमिल कर चलना, फूलों से तरुणाई सीखी।
तारों से मुस्कान, दीप स,े कर्म दृष्टि उद्दात मिली है।
भारत भू के इक-इक कण से, साहस की सौगात मिली है।
वीर शिवा के वंशज हैं हम, शक्ति शौर्य हमारी है।
हम भारत के युवा हमारी, मेधा सब पर भारी है।।[…]

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किणनैं दरद सुणाऊं कान्हां

किणनैं दरद सुणाऊं कान्हां, किण आगळ फरियाद करूं।
कुणसै कांधै सिर धर रोऊं, कह दै किणनैं याद करूं।।
किणनैं दरद सुणाऊं कान्हां…………।।

बूढापै री लाठ्यां म्हांरी, अेक नहीं है तीन मुरारी।
जाझै जतनां करी करारी, तीनां री शोभा हद भारी।
तीनूं तेल पियोड़ी ताजी, जिणरै हाथ लगै सो राजी।
रिच्छा राड़ दोनां में रूड़ी, कोनी म्हारी आ कथ कूड़ी।
पण म्हारै हित आज माधवा, परतख तीनूं तीन पराई।
हाथ घालतां फांस गड़ै है, खपत करंतां खाल बचाई।
सांस-सांस रै संग सांवरा, सुबक-सुबक कर साद करूं।
किणनैं दरद सुणाऊं कान्हां…………।।[…]

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अपने चारों धाम खेत में

तीर्थ-स्नान तमाम खेत में।
अपने चारों धाम खेत में।।

श्रम की पूजा सांझ-सकारे।
और न दूजा देव हमारे।
जस उसका उसके जयकारे।
सच्चे सात सलाम खेत में।
अपने चारों धाम खेत में।।[…]

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सूर्यमलजी का मौजी स्वभाव

विश्वविख्यात ग्रंथ वंशभास्कर के रचयिता महाकवि सूर्यमलजी बहुत ही मनमौजी स्वभाव के कविराजा थे और उन्हे मद्यपान का बहुत ही शौक था, उनके लिऐ तत्कालीन समय के राजन्य वर्ग व कुलीन खानदान के मित्रगण अच्छी किस्म की अति उम्दा आसव कढवा कर भिजवाते ही रहते थे। इसी क्रम मे ऐक बार भिणाय के राजा बलवन्तसिंह जी ने इनकी सेवा में बहुत ही मधुर मद्य भेजा था, जिसकी प्रशंसा में सूर्यमलजी ने उनको ऐक कवित्त लिखकर भेजा था। यथाः…[…]

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चारणत्त्व – पुनर्जागरण का शंखनाद

पत्रिका पढने अथवा डाउनलोड करने के लिए सम्बंधित अंक के लिंक पर क्लिक करें: वर्ष २ – अंक जनवरी वर्ष १ – अंक चतुर्थ वर्ष १ – अंक तृतीय वर्ष १ – अंक द्वितीय वर्ष १ – अंक प्रथम सम्पादक: महेंद्र सिंह चारण दुधालिया  प्रबंधन: जयदेव सिंह चारण अडूशिया  वितरण: रणजीत सिंह चारण मुंडकोसिया कार्यालय: करणी इन्फोसिस, 57, कोलीवाड़ा, DCM शो रूम के पीछे, उदयपुर – 313001 मोबाइल: 9983921903, 7425916103, 9829122671, 7300174927           Disclaimer: This page is reserved for displaying past editions of “Charanatva” magazine. It’s a different initiative and any views mentioned in this magazine […]

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