संवैधानिक मान्यता की मोहताज मायड़भाषा राजस्थानी

माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा तीनों का स्थान अति महनीय है क्योंकि ये तीनों हमें आकार, आधार एवं अस्तित्व प्रदान करती हैं। माँ तथा मातृभूमि की तरह ही मातृभाषा की महत्ता निर्विवाद है। संस्कृति के सहज स्रोत के रूप में वहां की भाषा की भूमिका प्रमुख होती है। यह अटल सत्य है कि मातृभाषा ही वह सहज साधन-स्रोत है, जो मनुष्य के चेतन एवं अचेतन से अहर्निश जुड़ी रहती है। यही कारण है जैसे ही किसी समाज या समूह का अपनी मायड़भाषा से संबंध विच्छेद होता है, वैसे ही उस समाज एवं समूह के चिंतन की मौलिकता नष्ट हो जाती है।[…]

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श्री हनुमानजी स्तुति – लींबडी राजकवि शंकरदानजी देथा

।।दोहा।।
संकट मोचन बिरदतें, शोभित परम सुजान।
प्रिय सेवक सियारामके, नमो वीर हनुमान।।

।।छंद मोतीदाम।।
नमो महावीर जली हनुमंत।
धीमंत अनंत शिरोमणी संत।।
नमो विजितंद्रिय वायु कुमार।
अकामि अलोभी अमोहि उदार।।[…]

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दोय दृष्टांन्त माँ भगवती इन्द्रेश भवानी के

।।माँ भगवती इन्द्रेश भवानी की समदृष्टि व कड़े अनुशासन की पालना के दो दृष्टांन्त।।

** १ **

भव-भय-भंजनी भगवती मावड़ी के चारण-वास में हुये प्रवास के दस दिवस के दौरान हर श्रध्दालुगण भक्तों नें माँ को मिजमानी देने की अथाह तथा पुरजोर कोशिश की तथा भाग्यशाली भक्तों के घर माँ भगवती ने पधार कर भोजन ग्रहण करना स्वीकार भी किया। वहीं पर साधारण व सदगृहस्थ भैरवदानजी जागावत भी रहते थे व उनकी धर्मपत्नि श्रीमती मोहनकुंवर कवियाणी बड़ी धर्मपरायणा व सीधी संकोची स्वभाव की नारी थी।[…]

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कल़ायण !

धरती रौ कण-कण ह्वे सजीव, मुरधर में जीवण लहरायौ।
वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो।।

वा स्याम वरण उतराद दिसा, “भूरोड़े-भुरजां” री छाया !
लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ, वे पाँख हवा मं छितरायाँ।।

तिसियारै धोरां पर जळकण, आभै सूँ उतर-उतर आया।
ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु, मुरधर पर मोती बरसाया।।[…]

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पूज मनां शिव के पद पंकज

ना डरपी लखि के निशि कालिय,
ना खल-घात हु तैं घबराए।
ना भवसंकट से हो सशंकित,
हार मती हर के गुन गाए।
आक धतूर चबाय पचाए सो,
पाप के बाप हु तैं भिड़ जाए।
पूज मनां शिव के पद-पंकज,
पाप के पंक तें पिंड छुड़ाए।।[…]

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शहीद दलपतसिंह शेखावत

जोधपुर रियासत रा देसूरी परगना रा देवली गांव रा शेखावत हरजीसिंह जी, महाराजा साब जसवंतसिंहजी अर सर प्रताप रा घणा मर्जींदान मिनख हा। आप आपरै जीवन रो घणो समय आं सर प्रताप रै साथै रावऴी सेवा में ही बितायो। आं हरजीसिंहजी रे दो बेटा मोभी दलपत सिंहजी अर छोटा जगतसिंहजी हां। हरजीसिंह जी री असामयक मौत हुवण रै बाद दोनां भाईयां री पढाई भणाई रो बंदोबस्त सर प्रताप करियो अर दलपत सिंह जी मेजर जनरल रा पद पर आसीन हुवा।[…]

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मैं विप्लव का कवि हूँ !

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।

मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन;
अरे, किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन !

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।[…]

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हे गाँव, तुझे मैं छोड़ चला

था एक दिवस जब तेरे इस आँगन में फूली अमराई !
था एक दिवस जब मेरे भी मन में झूमी थी तरुणाई !
पीपल की फुनगी पर बोली, पंचम स्वर में कोयल काली !
मादक मधु-ऋतु के स्वागत में, कोसों तक फैली हरियाली !
पावस की मतवाली संध्या, आती अम्बर से उतर-उतर !
उन खेतों की पगडंडी पर, वह बैलों की घंटी का स्वर ![…]

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मनवा मत कर बेड़ी बात

मनवा मत कर बेड़ी बात, बात में नाथ बिसर जासी।
नाथ बिसर जासी, हाथ सूं हेम फिसळ जासी।।टेक।।

हर सुमरण करतां हेताळू, (वो) संकट-टाळू साथ।
प्रतख एक वो ही प्रतपाळू, दीनदयाळू नाथ।।01।।
मनवा मत कर….

धीज पतीज धणी वो देसी, रीझ घणी रघुनाथ।
बिगड़ी बात स्यात में बणसी, साची कथ साख्यात।।02।।
मनवा मत कर—–[…]

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