माधव चरण शरण ले मूरख

माधव चरण शरण ले मूरख,
जनम मरण मिट जासी।

बावऴा क्यूं थूक विलोवै।
खऴ क्यूं जनम अकारथ खोवै।
होश गमाय बैठो है हर दिन,
गुण कद हर रा गासी।।माधव….

भटक आयो चौरासी भाया।
काट नहीं उतरियो काया।
अब तो चेत अरै उर आंधा,
पाछो कद अवसर पासी।।माधव….[…]

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बाती को मत फूंक लगा

दीपों की जगमग ज्योति के माध्यम से संसार को ज्ञान, प्रेम, सौहार्द, समन्वय, त्याग, परोपकार, संघर्ष, कर्तव्यपरायणता, ध्येयनिष्ठा एवं रचनात्मकता का पाठ पढ़ाने वाले विशिष्ट त्योहार दीपोत्सव की हार्दिक बधाई के साथ अनंतकोटि शुभकामनाएं। भारतीय संस्कृति में संतति यानी संतान रूपी दीपक को यश, प्रतिष्ठा एवं कीर्ति दिलाने हेतु माता-पिता बाती के रूप में पारिवारिक कुलदीपक कह कर पुकारा गया है। हमारे सामाजिक ढांचे को ठीक से समझें तो लगता है कि माता-पिता स्नेह-घृत के सहारे अंतिम समय तक रोशन रहते हुए अपने आपको धन्य मानते हैं। जलती तो बाती है लेकिन नाम दीपक का होता है। […]

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सोढाण रो सांस्कृतिक दर्पण-सोढाण सतसई

साहित्यिक अर सांस्कृतिक भोम रो नाम है सोढांण। सोढांण धाट अर पारकर भांयकै रो समन्वित अर रूपाल़ो नाम। सोढाण मतलब सोढां रो उतन। इण विषय में मारवाड़ रा विख्यात कवि तेजसी सांदू भदोरा लिखै-

अमरांणो अमरावती, धरा सुरंगी धाट।
राजै सोढा राजवी, पह परमारां पाट।।

आ उवा धरा जठै कदै ई सोढा राजपूत शासन करता। उणी सोढां री धरा सोढाण, जिणरी जाण आखै हिंदुस्थान में है। बिनां खोट जिणां कीरती रा कोट कराया। मनमोटां, पोटां भर द्रब बांटियो अर सुजस खाटियो-[…]

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बोलो साच सुहाती बात

बोलो सत धार मधुर पण बोलो,
बोलो साच सुहाती बात।
व्हालां इसी कायनूं बोलो,
सुणियां सैणां नको सुहात।।

बिगड़ै संबंध बोल बाड़ां सूं,
गुण हद बिगड़ै कियां गुमेज।
तंतू नेह तणो जद तूटै,
हिरदै मिटै उफणतो हेज।।[…]

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चारणों की उत्पत्ति – ठा. कृष्ण सिंह बारहट

चारणों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में ठा. कृष्ण सिंह बारहट ने अपने खोज ग्रन्थ “चारण कुल प्रकाश” में विस्तार से प्रामाणिक सामग्री के साथ लिखा है। उसी से उद्धृत कुछ प्रमाणों को यहाँ बताया जा रहा है। ये तथ्य हमारे प्राचीनतम ग्रंथों श्रीमद्भागवत्, वाल्मीकि-रामायण तथा महाभारत से लिए गए हैं।

चारणों की उत्पत्ति सृष्टि-श्रजन काल से है और उनकी उत्पत्ति देवताओं में हुई है, जिसका प्रमाण श्रीमद्भागवत् का दिया जाता है कि नारद मुनि को ब्रह्मा सृष्टि क्रम बताते हैं, वहां के द्वितीय-स्कंध के छटे अध्याय के बारह से तेरह तक के दो श्लोक नीचे लिखते हैं :-

अहं भवान् भवश्चैव त मुनयोऽग्रजाः।।
सुरासुरनरा नागाः खगा मृगसरीसृपाः।।१२।।
गंधर्वाप्सरसो यक्षा रक्षोभूतगणोरगाः।।
पशवः पितरः सिद्धा विद्याधरश्च चारण द्रुमाः।।१३।।

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आई ऐह दिया उपदेश

।।गीत – वेलियो।।
मढड़ो महमाय थान इऴ, मोटो,
जग में आज चारणां जात।
कऴजुग-पाप दरसणां काटण,
सोनल उथ राजै सुखदात।।१

धारण-चारण एक धरा रा,
भायां मांय किसो ओ भेद।
सोनल तणो संदेशो साचो,
इऴ पर पूगो थपण अभेद।।२[…]

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पटवारी री पुकार – कवि स्व. भंवर दान जी, झणकली

14 बरस पढ़ाई चाली खर्ची रकम करारी।
भाभोसा परसादी बांटे बण्यो पूत पटवारी।
पहली ठकराहत पटवारी, दूजी थानेदारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।1।।

दे ट्रेनिंग कयो हल्का माँ जाइन करो ड्यूटी जाके।
तीजे दिन तेहसीलदार सा इंस्पेक्सन करसी आके।
पैदल रस्ता हालत खस्ता ऊपर बस्ता भारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।2।।[…]

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श्री आवड़ माता(तनोट माता) के आशीर्वाद से भारतीय सेना की तनोट के युद्ध में चमत्कारी विजय

भगवती श्री आवड़ माता ने वि.स. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन चारण मामड़जी के घर अवतार लेकर अपने जीवनकाल में कई चमत्कार कर दिखाये थे जिसकी एक विस्तृत श्रृंखला हैं। श्री आवड़ माता के चमत्कारों के कारण कवियों ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में श्री आवड़ माता को 52 नामों से सम्बोधित किया जिसके कारण से भगवती श्री आवड़ माता 52 नामों से विश्वप्रसिद्ध हुए।

श्री आवड़ माता के वर्तमान परिपेक्ष्य में चमत्कारों का वर्णन करें तो हमें 20 वीं सदी के सम्पूर्ण विश्व की सर्वाधिक चमत्कारी घटना का स्मरण आ जाता है। ये घटना भारत पाकिस्तान के मध्य लड़े गये तनोट युद्ध (1965 ई) की हैं।[…]

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श्री आवड़ माता द्वारा हाकरा दरियाव (नदी) का शोषण करना – डॉ. नरेन्द्र सिंह आढ़ा (झांकर)

वि.स.808 के चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार के दिन मामड़जी चारण के घर पर भगवती श्रीआवड़ माता ने अवतार लिया। एक बार अकाल के समय मामड़जी अपने कुटूम्बियों के साथ अपने पशुधन को लेकर सिंध चले गये। उस समय तक सिन्ध पर अरबी मुसलमानों का कब्जा हो चुका था। उन्होंने सिंध के हिन्दुओं को जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन के लिए बाध्य करके बड़े पैमाने पर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को विवश कर दिया था। मामड़जी का परिवार सिंध के प्राचीन नानणगढ (सुल्तानपुर), जो बहावलपुर के 20 कोस उत्तर में आया हुआ था, के पास हाकरा दरियाव (नदी) के किनारे अपनी झोपड़ी (नेस) बनाकर रह रहा था। भगवती श्री आवड़ माता की सातों बहिन शक्ति की अवतार थी। ये सातों ही बहिनें बहुत रूपवान थी।[…]

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