भरिया सो छल़कै नहीं

राजस्थानी साहित्य, संस्कृति और चारण-राजपूत पारंपरिक संबंधों के मजबूत स्तंभ परम श्रद्धेय राजर्षि उम्मेदसिंह जी ‘ऊम’ धोल़ी आज हमारे बीच नहीं रहे।
आपके स्वर्गारोहण से उस एक युग का अवसान हो गया जिस युग में ‘चारण और क्षत्रिय’ के चोल़ी-दामण के संबंध न केवल माने जाते थे अपितु निर्वहन भी किए जाते थे।
आप जैसे मनीषी से कभी मेरा मिलना नहीं हुआ लेकिन आदरणीय कानसिंहजी चूंडावत की सदाशयता के कारण उनसे दो- तीन बार फोन पर बात हुई। फोन मैंने नहीं लगाया बल्कि उनके आदेशों की पालना में कानसिंहजी ने ही लगाया और कहा कि ‘धोल़ी ठाकर साहब आपसे बात करना चाहते हैं।”
जैसे ही मैं उन्हें प्रणाम करूं, उससे पहले ही एक 92वर्षीय उदारमना बोल पड़ा “हुकम हूं ऊमो! भाभाश्री म्हारा प्रणाम!“[…]