अबखी करी अजीत!

किणी राजस्थानी कवि कह्यो है कै बात भूंडी है कै भली, ओ निर्णय फखत विधाता रै हाथ है पण जैड़ी सुणी वैड़ी कवि नै तो कैवणी पड़ै-

भूंडी हो अथवा भली, है विधना रै हाथ।
कवि नै तो कहणी पड़ै, सुणी जिसी सह बात।।

अर्थात असली कवि वो ईज है जिको पखापखी बिनां निपखी बात कैवै। ऐड़ा ई एक निडर कवि हुया भभूतदानजी सूंघा (कैर)।[…]

» Read more

जुड़ै जवान जोरवान

।।छंद – नाराच।।
मरट्ट धार खाय खार, आर पार उच्चरै।
बडी विचार ले उडार, व्योम वाट विच्चरै।
चँडी उचार बार बार, मार शत्रु मान रा।
जुड़ै जवान जोरवान, हेर हिंदथांन रा।।1।।[…]

» Read more

देशाणराय रो गीत – चौथ बीठू

वेदां मह ढील रती नह वरनी।
धाबलयाल़ रही दिसी धरनी।
वीदग बेल थई वीसरनी।
किण दिस गई हमरकै करनी।।

आप तणी म्हारै अवलम्बा।
आवे मनमें घणा अचम्बा।
ईहग कूक सुणी नह अम्बा।
बोल़ी हुय बैठी जगतम्बा।।[…]

» Read more

हे दिव्यात्मा!

हे दिव्यात्मा!
म्हांरै कनै फखत
तनै झुकावण नै माथो है
कै है
थारी मीठोड़ी ओल़ूं में
आंख्यां सूं झारण आंसू
कै
काल़जो काठो कर’र
तनै कोई मोटो
बदल़ो मान’र
मोह चोरणो ई रह्यो है सारू म्हांरै तो![…]

» Read more

પદ્મશ્રી દુલા કાગ

ભગતબાપુના પ્યારા અને લાડીલા નામે ઓળખાતા પદ્મશ્રી દુલા કાગનો પરિચય ગુજરાતની પ્રજાને આપવાનો હોય શું? દેશ-પરદેશમાં વસતા ગુજરાતીઓમાં પણ ભગતબાપુના નામથી કોઈપણ અપરિચિત હોય?
પોતાની મૌલિકવાણીમાં ‘‘કાગવાણી’ ને આઠ – ભાગની ભેટ ગુજરાતની જનતાને આપનાર કવિશ્રી ગુજરાતની વિરલ વિભૂતિ છે, એમના વિશે શું લખવું? ગુજરાતના સાક્ષર વર્ગ ધણું લખ્યું છે,ભગતબાપુનો જન્મ સૌરાષ્ટ્રના મહુવા પાસેના સોડવદરી ગામે તુંબેલ (પરજિયા ચારણ) કુળમાં વિ.સં. ૧૯૫૮ના કારતક વદ અગીયારસ શનિવારે ઇ.સ. ૧૯૦૨માં થયો હતો. તેમના પિતાશ્રીનું નામ ભાયા કાગ અને માતાશ્રીનું નામ પાનબાઈ હતું. તેની શાખા કાગછે.[…]

» Read more

ऐहड़ै नरां पर बल़िहारी

मुख नह फूटी मूंछ, दंत दूध रा देखो।
सीस झड़ूलो सजै, पदां झांझरिया पेखो।
वय खेलण री बेख, वीर धारी तन वरदी।
सधर खड़ो तण सीम, सदर उसण नै सरदी।
वतन री लाज वरियो मरण, धरण रखी धर धीरता।
ऐहड़ै नरां पर आज दिन, (आ)बल़िहारी खुद वीरता।।[…]

» Read more

जीत रण बंका सिपाही – कवि मोहन सिंह रतनू

आज संकट री घडी हे,
देश पर विपदा पडी हे,
कारगिल कसमीर मे,
कन्ट्रोल लाइन लडखडी हे।
जुध रो बाजे नगारो,
सुण रह्यो हे जगत सारो,
दोसती री आड दुसमण,
पाक सेना अड़वड़ी हे।
सबक तु इणने सिखावण, जेज मत बीरा लगाई।
जीत रणबंका सिपाही, जूंझ रण बंका सिपाही।।१।।[…]

» Read more

લોક સાહિત્યના કલાધરઃ શ્રી મેઘાણંદ ગઢવી

મેધાવી કંઠના સુપ્રસિદ્ધ વાર્તાકાર મેઘાણંદ ગઢવીનો જન્મ ઘેડ વિસ્તારના છત્રાવા ગામે ચારણ જ્ઞાતિની લીલા શાખના ખેંગાર ગઢવીને ત્યાં સંવત ૧૯૧૮માં થયો હતો.

લોકસાહિત્યના ક્ષેત્રમાં “લોકવાર્તા” આગવું સ્થાન ધરાવે છે. પહેલાના જમાનામાં આવી લોકવાર્તાઓ જામતી. કોઈ રાજદરબારે, પણ આતો જનસમાજની વાતું જનસમાજમાં સહુને સાંભળવી હોયને! પોતાની રત્ન સમી સંસ્કૃતિની ગાથાથી જનસમાજ કેમ વંચિત રહે? અને આમ મેઘાણંદ ગઢવી જેવા પ્રચંડકાય વીર વાર્તાકારના બુલંદ કંઠને આમજનતા સમક્ષ વહેતો મૂક્યો શ્રી ગોકળદાસ રાયચૂરાએ.[…]

» Read more

लेबा भचक रूठियो लालो

राजस्थान रो मध्यकाल़ीन इतियास पढां तो ठाह लागै कै अठै रै शासकां अर उमरावां चारण कवियां रो आदर रै साथै कुरब-कायदो बधाय’र जिणभांत सम्मान कियो वो अंजसजोग अर अतोल हो।

जैसल़मेर महारावल़ हरराजजी तो आपरै सपूत भीम नै अठै तक कह्यो कै ‘गजब ढहै कवराज गयां सूं, पल़टै मत बण छत्रपती।‘ तो महारावल़ अमरसिंहजी, कवेसरां रो जिणभांत आघ कियो उणसूं अभिभूत हुय’र कविराजा बांकीदासजी कह्यो- ‘माड़ेचा तैं मेलिया, आभ धूंवा अमरेस।‘[…]

» Read more

तनै रंग दसरथ तणा

बाप दियो वनवास, चाव लीधो सिर चाढै।
धनख बाण कर धार, वाट दल़ राकस बाढै।
भल लख सबरी भाव, आप चखिया फल़ ऐंठा,
सारां तूं समराथ, सुण्या नह तोसूं सैंठा।
पाड़ियो मुरड़ लंकाणपत, भेल़ो कुंभै भ्रात नै।
जीत री खबर पूगी जगत, रसा नमी रघुनाथ नै।।[…]

» Read more
1 2