श्री डूंगरराय स्तवन – कवि चाळकदान जी रतनू (मोड़ी)
।।छन्द – नाराच।।
अच्छे रचे जु आवड़ा, अस्थान वे अखण्डळा।
नचे जचे सुनाचता, मचे सुरा समण्डळा।
जगत्त मात जां जुरीय, जोगणी सुजोगरी।
रमंत माढ़राय माय, डूंग्रराय डोकरी।
जी डूंगरेच डोकरी।।
नभस्सु माय न्रम्मला, सुभस्सु जाम सत्तमी।
रमत्त रास ईसरी, जमत्त मात जक्तमी।
घमंक पाय घूघरा, धराधर धूजै धरी।
रमंत……………………………।।[…]