हे चारणी सुख कारणी – आई सोनल माँ कृत स्तुति

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हे चारणी सुख कारणी ब्रह्मचारणी आई सरण।
सच्चिदानंद सारदा मंगळमयी मणमूं चरण।।1।।[…]
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हे चारणी सुख कारणी ब्रह्मचारणी आई सरण।
सच्चिदानंद सारदा मंगळमयी मणमूं चरण।।1।।[…]
हमारे काव्यमनीषियों ने लिखा कि विद्वान एवं गुणी लोग काव्यशास्त्र विनोद में अपना समय सहर्ष व्यतीत करते हैं जबकि मुर्ख व्यक्ति का समय या तो नींद लेने में बीत जाता है या फिर परिजनों एवं परममित्रों से कलह करने में ही मुर्ख व्यक्तियों का समय बीतता है।-
काव्यशास्त्र विनोदेन कलोगच्छति धीमताम
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रहया कल्हेनवा।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग साहित्य तथा स्वाध्याय से कटने को विवश है तथा यदि कोई संस्कारवश रुचि भी रखता है तो उसे सद साहित्य की संगत मिलना बहुत मुश्किल भरा काम है।[…]
» Read more।।છંદ – સારસી।।
ભણત કવિયંદ શાહર, તૂજ વાહર ઘણી જાહર કંધર;
દૈતાવ ડાહર મતિ શાહર ઉપર તાહાં અમપરં;
પાંથવા પાહર તુંજ વાહર, મેખ માહર ઝળમળી;
ખટવ્રણા સંકટ પડી ખોડલ, આવ્ય માત ઉતાવળી…૧
હે ભવાની ! હે આઈ ! કવિઓ આપની સહાય યાચી રહ્યા છે, ત્યારે આપ તેની મદદે આવો . દૈત્યો-દુષ્ટો સૌને ડરાવી રહ્યા છે, ત્યારે અમારી મતિ-બુદ્ધિ તો આપનું જ સ્મરણ કરે છે. અમને તો આપનો જ ભરોસો છે. દૈત્ય મહિષાસુર (પાડો)ને મારનારા હે આઈ ! કવિઓ આપની પ્રાર્થના કરે છે. કવિઓ પર આવી પડેલ સંકટ વેળાએ હે ખોડિયાર આઈ ! આપ સત્વરે તેમની મદદે આવજો.[…]
आत्म हत्या महा पाप है, विगत कई सालों से बाडमेर जिले में आत्म हत्याएं करने वालो की बाढ आ गई है। मैंने इस विषय पर कतिपय दोहे लिखे जो आपकेअवलोकनार्थ पेश है-
कायर उठ संघर्ष कर, तन देवण नह तंत।
पत झड रे झडियां पछै, बहुरि आय बसंत।।1
अंधकार आतप हुवै, मघवा बरसै मेह।
ऊंडी सोच विचार उर, दुरलभ मानव दैह।।2
लाख जनम तन लांघियो, पुनि मानव तन पात।
बिरथा देह बिगाड़ नै, कर मत आतम घात।।3
सुख दुख इण संसार मे, है विधना के हाथ।
दुर दिन सनमुख देखनै, कर मत आतम घात।।4[…]
।।छंद-गयामालती।।
काढियो मुरधर काल़ कूटै,
एक थारी आस में।
इण झांख साम्हीं आंख काढी,
बात रै विसवास में।
ओ बीतियो ऊनाल़ इणविध,
छांट हेकन छेकड़ी।
सुरपाल़ अरजी सुणै साहिब,
पूर गरजी आ पड़ी।।1[…]
।।छंद – रेणकी।।
सर सर पर सधर अमर तर अनसर,करकर वरधर मेल करै।
हरिहर सुर अवर अछर अति मनहर, भर भर अति उर हरख भरै
निरखत नर प्रवर प्रवरगण निरझर, निकट मुकुट सिर सवर नमै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।।[…]
।।छंद – सारसी।।
बरखा बिछोही शुष्क रोही,
और वोही इण समैं।
मघवा निमोही बण बटोही,
हीय मोही लख हमैं।
बलमा बिसारी धण दुखारी,
जीव भारी कष्टकर।
पत राख सुरपत दर बिसर मत,
मेट आरत मेह कर।
जिय देर मत कर मेह कर।[…]
आज आपके सींथल का एक वृतान्त पेश करता हूं –
सींथल गांव किसी भी कालखंड में परिचय का मोहताज नहीं रहा है, क्योंकि हर युग ने इस गांव की उर्वरा भूमि पर प्रतिभावानों, बुद्धिमानों, व्यापारियों, समर्थों व श्रेष्ठों की उत्पत्ति मन लगाकर की है।
यहां के हजारों किस्से बीकानेर, शेखावाटी, मारवाड़ व मेवाड़ तक के गांवों की हथाइयों में आज भी कहे जाते हैं और उन किस्सों के नायक आज भले ही इतिहास के अंग बन गए हैं, मगर लोगों की जुबानों पर आज भी भली-भांति जिन्दा हैं।
बात उस जमाने की है, जब मेरा तो जन्म भी नहीं हुआ था। गांव के किसरावतों के बास में रहने वाले कालूदानजी ‘बडोजी’ गांव के मौजीज आदमी हुआ करते थे।[…]
इतरो अनियाव मती कर इंदर,
डकरां ऐह नको रच दाव।
किथियै जल़ थल़ एकण कीधा,
सुरपत किथियै सूको साव।।1
जल़ बिन मिनख मरै धर जोवो,
सब फसल़ां गी सांप्रत सूक।
उथिये छांट नखी नह एको,
कानां नाय सुणी तैं कूक।।2[…]
विगत दिनों किसी मित्र ने बताया कि उसका पुत्र अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय एवं महाविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करके अभी अमेरिका में “व्यक्तित्व-विकास” की कक्षाएं लगाता है, जिनमें हजारों विद्यार्थी आते हैं। वहां बौद्धिक के साथ-साथ शारीरिक विकास हेतु सूक्ष्म-योगा भी करवाया जाता है। कक्षा प्रारंभ होने के समय एक युवती, जो कोई पुस्तक पढ़ रही थी, योग हेतु लगाई गई चटाई पर आने से पहले उसने अपने जूते उतारे तथा उस पुस्तक को अपने जूतों पर ही उलटा रख दिया ताकी वापस आने पर वहीं से पुनः पढ़ना प्रारंभ कर दे। कक्षा में सभी विद्यार्थी अमेरिकी थे, बस योग-शिक्षक भारतीय था। जैसे ही उस भारतीय की दृष्टि जूतों पर रखी पुस्तक पर पड़ी तो वो दौड़ कर गया और पुस्तक को उठाया। उसे सीस झुका कर प्रणाम किया तथा ससम्मान मेज पर रखा। जैसे ही विद्यार्थियों से मुखातिब हुआ तो उस लड़की ने आश्चर्य से पूछा “सर! यह क्या कर रहे हैं आप?[…]
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