काव्य कलरव स्नेह मिलन समारोह खुड़द

।।छप्पय।।
मह पावन मरूदेश, मुदै कियो महमाई।
किनियाणी करनल्ल, आप घर सागर आई।
जणणी धापू जोय, नाम जग इंद्रा नामी।
चारण वरण चकार, वंश रतनू वरियामी।
खुड़द नै अचड़ दीनी खमा, आणद अपणां आपिया।
जूनकी रीत पाल़ी जगत, केवी व्रन रा कापिया।।1[…]

» Read more

काव्य-कलरव सांंस्कृतिक संगम एवं स्नेह मिलन समारोह (१३-१४ जुलाई २०१९ खुड़द)

  • दो दिवसीय सांस्कृतिक संगम एवं स्नेहमिलन समारोह संपन्न
  • श्रीमढ खुड़द धाम की आस्था के उजास पर पढ़े गए छंद एवं गीत
  • सोशल मीडिया की उपादेयता एवं प्रासंगिकता” विषयक संगोष्ठी में की विद्वानों ने शिरकत
  • विशिष्ट साहित्यिक सांस्कृतिक प्रतिभाओं का किया गया अभिनन्दन
» Read more

श्री इंन्द्रबाईसा अन्दाता के जन्म-दिवस पर – राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर

संम्वत गुनी’सै त्रैसटियां, साणिकपुर सामान।
शुकल पक्ष आसोज मे, श्री हिंगऴाज सुथान।।

चराचर जगत की हलचल की हर भांति की गतिविधियां अपने अपने नियत निर्धारित परिसंचरण तंत्राधिन सक्रिय सहयोग कर ब्रह्माण्ड संचालन में परम सत्ता के प्रति उत्तरदायित्व का परिपोषण करती है। इसी नियम से ही आसुरी शक्तियों के उद्भव को पराभूत पराजित करने के लिए श्रृष्टि चक्र मे अवतार अवतरण की सनातन परम्परा चलती आ रही है, जिसमें शक्ति अवतार की श्रृंखला भी समय समय पर सदा-सर्वदा चलती रही है।[…]

» Read more

जद छूटै जालोर!

दूहा लोहा सरिस दुहुं, वडौ भेद इक एह।
दूहो वेधै चित्त नै, लोहा भेदे देह।।

यानी दोहा अर लोहा री मार एक सरीखी। एक चित्त नै वेधै तो दूजो देह नै। पण लोह तो हरएक रै घाव कर सकै पण दूहो फखत समझै उणनै ईज सालै। इतिहास में ऐड़ा अनेकूं दाखला मिलै कै दूहे इतिहास बदल़ दियो। लोगां री दिनचर्या बदल़दी।[…]

» Read more

पाण्डुलिपि संरक्षण – कवि गंगाराम जी बोगसा

गंगारामजी बोगसा महाराजा तखतसिंह जी जोधपुर के समकालीन व डिंगल़ के श्रेष्ठतम कवियों में से एक थे। खूब स्तुतिपरक रचनाओं के साथ अपने समकालीन उदार पुरुषों पर इनकी रचनाएं मिलती है। आज जोधपुर में मेरे परम स्नेही महेंद्रसा नरावत सरवड़ी जो पीएचडी के छात्र व अच्छे कवि भी हैं। ये पांडुलिपियां लेकर हथाई करने आए। महेंद्रसा, गंगारामजी के चौथी पीढ़ी के वंशज हैं। अपने पर-पितामह की पांडुलिपियों का संरक्षण कर रहे हैं।[…]

» Read more

मत किम चूको मोर?

थल़ सूकी थिर नह रह्यो, चित थारो चितचोर।
लीलां तर दिस लोभिया, मन्न करै ग्यो मोर।।1

लूवां वाल़ै लपरकां, निजपण तजियो नाह।
धोरां मँझ तज सायधण, रुगट गयो किण राह।।2

झांख अराड़ी भोम जिण, आंख खुलै नीं और।
वेल़ा उण मँझ वालमा, मोह तज्यो तैं मोर।।3

वनड़ी तज थल़ वाटड़ी, अंतस करा अकाज।
बता कियो तैं वालमा, की परदेसां काज।।4[…]

» Read more

गज़ल – सुनो

चींटियों के चमचमाते पर निकल आए सुनो।
महफ़िलों में मेंढ़कों ने गीत फिर गाए सुनो।

अहो रूपम् अहो ध्वनि का, दौर परतख देखिए,
पंचस्वर को साधने कटु-काग सज आए सुनो।

आवरण ओढ़े हुए है आज का हर आदमी,
क्या पता कलि-कृष्ण में, कब कंश दिख जाए सुनो।[…]

» Read more
1 2