श्री करणी माता का इतिहास – डॉ. नरेन्द्र सिंह आढ़ा

श्री करणीमाता के पिता मेहाजी जो किनिया शाखा के चारण थे। उनको मेहा मांगलिया से सुवाप नामक गाँव उदक में मिला था, जो जोधपुर जिले की फलौदी तहसील में पडता है। मेहाजी को सुवाप गाँव मिलने से पहले यह गाँव सुवा ब्राह्मण की ढाणी कहलाता था। बाद में मेहाजी ने इस गाँव का नाम बदलकर सुवाप रखा था। इसी गाँव में लोकदेवी श्रीकरणीमाता का जन्म हुआ।

मेहाजी किनिया का विवाह बाड़मेर के मालाणी परगने में अवस्थित वर्तमान बाड़मेर जिले के बालोतरा के पास आढ़ाणा (असाढ़ा) नामक एक प्राचीन गाँव के स्वामी माढा आढ़ा के पुत्र चकलू आढ़ा की पुत्री देवल देवी के साथ हुआ था। कुछ लोग इस प्राचीन गाँव का उल्लेख जैसलमेर की सीमा पर स्थित ओढाणिया गाँव के रूप में भी करते है जो कि एक शोध का विषय है। निष्कर्षतः यह विवाह वि.सं. 1422-23 के आस-पास हुआ था। इस आढ़ी देवल देवी को भी चारण जाति में शक्ति का अवतार माना जाता है।[…]

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નકળંક અશરણ શરણ નાગઇ (नाग बाई मां का छंद) – ભક્ત કવિ દુલાભાયા કાગ

પાપ ભર્યો ગરવાપતિ, કહ્યું ન માન્યો કેણ,
દેવી દુભાતે દિલે, વદતી નાગઇ વેણ

।।છંદ – સારસી।।

મનખોટ મહિપત મેલ માજા,અમ ધરાં પર આવિયો,
રજવટ તણી નહિ રીત રાજા,લાવ લશ્કર લાવિયો,
હું ભીન ભા તું પુણ્ય પાજા,ધરણ કાં અવળી ફરી
નકળંક અશરણ શરણ નાગઇ,હરણ દુઃખ હરજોગરી
જીય હરણ દુઃખ હરજોગરી….(૧)[…]

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संवेदनाओं के पर्याय महाकवि पृथ्वीराज राठौड़

आज राजस्थान और राजस्थानी जिन महान साहित्यकारों पर गौरव और गर्व करती है उनमें से अग्रपंक्ति का एक नाम हैं पृथ्वीराजजी राठौड़

बीकानेर की साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर के धोरी और धुरी थे पृथ्वीराजजी राठौड़। इसलिए तो महाकवि उदयराजजी उज्ज्वल लिखतें हैं-

नारायण नै नित्त, वाल्ही पीथल री धरा।
सुरसत लिछमी सत्थ, ऐथ सदा वासो उदय।।[…]

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