मौज करीनै मूल़िया!

कविवर झूंठाजी आशिया कह्यो है कै भीतां तो एक दिन धूड़ भैल़ी हुय जावैली पण गीत अमर रैवैला-

भींतड़ा ढह जाय धरती भिल़ै, गीतड़ा नह जाय कहै गांगो।

आ बात एकदम सटीक है जिण लोगां मोटी पोल़ां चिणाई उणां रा नाम आज सुणण में कदै-कदास ई आवै पण जिकां मन-महराण ज्यूं राख्यो, उणांरो नाम आज ई हथाई में नित एक-दो बार तो आ ई जावै तो ब्याव-बधावणां में ई तांत रै तणक्कां माथै उवां रा ई गीत सुणण नै मिलै क्यूंकै-

गवरीजै जस गीतड़ा, गया भींतड़ा भाज।

जिणांरा गीत प्रीत रै साथै गाईजै उवां में एक उदारमना हा मूल़जी कर्मसोत।[…]

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मत करो इस मुल्क से गद्दारियाँ पछताओगे

मत करो इस मुल्क से गद्दारियाँ, पछताओगे
देखकर फिर देश की दुश्वारियाँ, पछताओगे

वतन से ही बेवफाई फिर वफ़ा है ही कहाँ
खो के अपनी कौम की खुद्दारियाँ, पछताओगे[…]

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ये षड्यंत्री दौर

ये षड्यंत्री दौर न जाने,
कितना और गिराएगा।
छद्म हितों के खातिर मानव,
क्या क्या खेल रचाएगा।

ना करुणा ना शर्म हया कुछ,
मर्यादा का मान नहीं।
संवेदन से शून्य दिलों में,
सब कुछ है इंसान नहीं।।[…]

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सांईदीन दरवेश – एक ओल़खाण

मध्यकालीन राजस्थानी काव्य में एक नाम आवै सांईदीन दरवेश रो। सांईदीनजी रै जनम विषय में फतेहसिंह जी मानव लिखै कै- “पालनपुर रियासत रै गांम वारणवाड़ा में लोहार कुल़ में सांईदीनजी रो जनम हुयो। सांईदीनजी बालगिरि रा चेला हा। ”

सूफी संप्रदाय अर वेदांत सूं पूरा प्रभावित हा। भलांई ऐ महात्मा हा पण पूरै ठाटबाट सूं रैवता। अमूमन आबू माथै आपरो मन लागतो। तत्कालीन घणै चारण कवियां माथै आपरी पूरी किरपा ही। आपरी सिद्धाई अर चमत्कारां री घणी बातां चावी है। जिणां मांय सूं एक आ बात ई चावी है कै ओपाजी आढा नै कवित्व शक्ति आपरी कृपादृष्टि सूं मिली। सांईदीनजी रै अर ओपाजी रै बिचाल़ै आदर अर स्नेह रो कोई पारावार नीं हो।[…]

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भइयो भाटी भैर!

दिन ऊगां दातार, आखै जस सारी इल़ा।
सूमां रो संसार, नाम न जाणै नाथिया।।

कवि कितरी सतोल अर सखरी बात कैयी है कै दातार भलांई कदै ई हुयो हुसी पण उणरो नाम सारी धरती जाणै अर सूमां रो नाम कोई लैणो ई नीं चावै। इणी खातर तो ईसरदासजी नै ई कैणो पड़्यो कै ‘दियां रा देवल़ चढै’ देवै सो अमर अर नीं देवै तो कवियां निशंक कह्यो है-

सर्वगुन ज्ञाता होय यद्यपि विधाता हो पे,
दाता जो न होय तो हमारे कौन काम को?[…]

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नवल हुतो जद नैरवै

थलवट भांयखै रो गांम जुढियो समृद्ध साहित्यिक परंपरा रै पाण आथूणै राजस्थान में आपरी ठावी ठौड़ राखै। एक सूं बध’र एक सिरै कवि इण गांम में हुया जिणां राजस्थानी डिंगल़ काव्य नै पल्लवित अर पुष्पित कियो। उणरो हाल तांई चिन्योक ई लेखो-जोखो नीं हुयो है।

इणी गांम में सिरै कवि नवलदानजी लाल़स रो जनम हुयो। जद ऐ फखत आठ वरस रा ईज हा तद इणां रै मा-बाप रो सुरगवास हुय चूको हो। चूंकि इणांरा पिताजी रेऊदानजी लाल़स पाटोदी ठाकरां रा खास मर्जीदान हा सो इणांरो आगै रो पाल़ण-पोषण उठै ईज हुयो। उठै ईज दरवेश सांईदीनजी इणांनै आखर ज्ञान दियो।[…]

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संस्कारां रै संकट सूं जूझता रिश्ता

राजस्थान री संस्कृति, प्रकृति, जीवनमूल्य, परंपरा अर स्वाभिमानी संस्कारां री अंवेर करण वाळो अंजसजोग छापो ‘रूड़ौ राजस्थान’ तर-तर आपरौ रूप निखारतो, सरूप सँवारतो, समै री माँग मुजब सामग्री परोटतो पाठकां री चाहत रो केंद्र बणतो जा रैयो है। इण ओपतै अर उल्लेखणजोग छापै रा सुधी-संपादक भाई श्री सुखदेव राव मायड़भाषा राजस्थानी अर मायड़भोम राजस्थान रै गौरवमय अतीत रा व्हाला विरोळकार है। इण रूड़ौ राजस्थान छापै रै दिसंबर, 2019 अंक में आपरै इण नाचीज़ मित्र रो एक आलेख छपियो है, इण सारू भाई सुखदेव जी राव रौ आभार अर आप सब मित्रां सूं अपेक्षा कै आज रै समै परवाण ‘संस्कारां रै संकट सूं जूझता रिश्ता’ री साच सोधण सारू ओ आलेख ध्यान सूं पढ़ण री मेहरवानी करावजो।[…]

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भैरवाष्टक – डॉ. शक्तिदान कविया

।।छंद – त्रिभंगी।।
नाकोडा वाला, थान निराला, भाखर माला बिच भाला।
कर रुप कराला, गोरा काला, तु मुदराला चिरताला।
ध्रुव दीठ धजाला, ओप उजाला, रूपाला आवास रमा।
भैरु भुरजाला, वीर वडाला, खैतर पाला दैव खमा।
जी खेतर पाला घणी खमा…।।1।।[…]

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लखमण जी ना छन्दों – कवि आसाजी रोहड़िया “भादरेश”

।।छंद – रूप मुकुंद।।
लखणेश महाभड़ लाज रो लँगर, धन्य धरा धर शेष धणी,
अम भार अपार उतारिय आवण, मानव देह अमूल मणी,
तात दशरथ मात सुमित्रण, ठीक अजोधाय धाम ठवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।1[…]

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गीत पालवणी

कुरसी तूं तो सदा कुमारी।
थिर तन लचक बणी रह थारी।
बदन तिहारै सह बल़िहारी।
वरवा तणै विरध ब्रह्मचारी।।1

कुण हिंदू कुण मुल्ला-काजी?
तूं दीसै सगल़ां नै ताजी।
रूप निरख नै सह रल़ राजी।
बढ बढ चहै मारणा बाजी।।2[…]

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