मौज करीनै मूल़िया!

कविवर झूंठाजी आशिया कह्यो है कै भीतां तो एक दिन धूड़ भैल़ी हुय जावैली पण गीत अमर रैवैला-
भींतड़ा ढह जाय धरती भिल़ै, गीतड़ा नह जाय कहै गांगो।
आ बात एकदम सटीक है जिण लोगां मोटी पोल़ां चिणाई उणां रा नाम आज सुणण में कदै-कदास ई आवै पण जिकां मन-महराण ज्यूं राख्यो, उणांरो नाम आज ई हथाई में नित एक-दो बार तो आ ई जावै तो ब्याव-बधावणां में ई तांत रै तणक्कां माथै उवां रा ई गीत सुणण नै मिलै क्यूंकै-
गवरीजै जस गीतड़ा, गया भींतड़ा भाज।
जिणांरा गीत प्रीत रै साथै गाईजै उवां में एक उदारमना हा मूल़जी कर्मसोत।[…]
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