मेरा यही पश्चाताप है

…क्या कारण है कि लोक में यह मनस्विनियां देवियों के रूप में समादृत होकर सर्वसमाज में स्वीकार्य है?

इसका सीधासाधा कारण यही है कि इन मनस्विनियों ने अपना जीवन लोकहिताय समर्पित किया। जो अपना जीवन लोकहिताय जीते हैं और लोकहितार्थ ही समर्पित करते हैं। लोक उन्हीं को अपना नायक मानकर उनकी स्मृतियां अपने मानसपटल पर सदैव के लिए अंकित रखता है।

ऐसी ही एक घटना है मा सभाई की।[…]

» Read more

यह गरल है जो पच नहीं सकता!

…जब हम हमारे मध्यकालीन इतिहास के धुंधले पृष्ठों को पलटते हैं तो उन पर ऐसी-ऐसी आभामंडित कहानियां अंकित है जिन्हें पढ़कर हमारे मनोमस्तिष्क में उन हुतात्माओं के त्याग, महानता तथा क्षमाशीलता के सुभग भावों की अमिट छाप स्वतः ही छप जाती है। क्षमा वीरस्य भूषणम् की उक्ति इनके चारू चरित्र की सहगामिनी परिलक्षित होती है।

ऐसी ही एक घटना से आपको परिचित करवा रहा हूं।

कच्छ धरा में एक गांव है मोरझर। मोरझर पुराना सांसण। यहां सुरताणिया चारण रहते हैं।[…]

» Read more

गायें हारमोर नहीं करने दूंगी

जिनके घर सदाचार, शिष्टाचार, मानवता, उदारता और परोपकार के भावों की सरिता सतत प्रवहमान रहती है, उसी घर में देवी अवतरण होता भी है तो कुलवधु के रूप में भी उस घर को पवित्र करने हेतु देवी आती हैं-

देवियां व्है जाके द्वार दुहिता कलत्र हैं।

आलाजी बारठ जिन्हें मंडोवर राव चूंडाजी ने भांडू व सिंयाधा नामक गांव इनायत किए थे के घर एक ही समय में दो महादेवियों का जन्म हुआ है। उनके पुत्र गोरजी के घर सूरमदे का जन्म वि.सं. 1451 में हुआ-[…]

» Read more

इनसे तो देव ही डरते हैं तो फिर

स्वमान व सत्य के प्रति आग्रही जितने चारण रहे हैं उतने अन्य नहीं। इनके सामने जब सत्य व स्वमान के रक्षण का संकट आसीन हुआ तब-तब इन्होंने निसंकोच उनकी रक्षार्थ अपने प्राण अर्पण में भी संकोच नहीं किया। चारणों ने सदैव अपने हृदय में इस दृढ़ धारणा को धारित किया कि सत्य सार्वभौमिक, शाश्वत, व अटल होता है। यही कारण था कि इन्होंने कभी भी सत्य के समक्ष असत्य को नहीं स्वीकारा। यही नहीं इन्होंने तो सदैव लोकमानस को यह प्रेरणा दी कि- ‘प्राणादपि प्रत्ययो रक्षितव्य’
यानी प्राण देकर भी विश्वास बनाए रखना चाहिए।[…]

» Read more

मेरे कानों के लोल़िये तोड़े तो तोड़ लेना

जब-जब सत्ता मदांध हुई तब-तब जन सामान्य पर अत्याचारों का कहर टूटा है। राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास के गर्द में ऐसी अनेक घटनाएं दबी पड़ी है जिनका उल्लेख इतिहास ग्रंथों व ख्यातों के पन्नों से ओझल है परंतु लोकमानस ने उन घटनाओं का विवरण अपने कंठाग्र रखा तथा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करता रहा है। यही कारण है कि उक्त घटनाएं लोकजीव्हा पर आसीन रहकर भूत से वर्तमान तक की सहज यात्रा करती रही है।
हालांकि बीकानेर के शासकों के अपनी जनता के साथ मधुर संबंध रहें थे लेकिन दो-तीन शासकों के समय में इन संबंधों में कड़वाहट तब आई जब कान के कच्चे शासकों ने कुटिल सलाहकारों की सलाह अनुसार आचरण किया। ऐसे में उस सलाह के भयावह परिणाम आए तथा शासक अपयश के भागी बने।
ऐसी ही एक घटना बीकानेर महाराजा रतनसिंहजी के समय सींथल गांव में घटी।[…]

» Read more