कोटा मे क्रांति के सूत्रधार कविराजा दुर्गादान

‘मैं देश सेवा को अति उत्कृष्ट आदरणीय मनुष्य धर्म समझता हूं’, इन शब्दों में स्वतंत्रता की अमिट लालसा तो थी ही, साथ ही पराधीनता के दौर में औपनिवेशिक सरकार को दी गई चुनौती की एक लिखित स्वीकारोक्ति भी थी, जो रियासतयुगीन कोटा के प्रमुख जागीरदार कविराजा दुर्गादानजी द्वारा 20 दिसंबर 1920 ई. को कोटा रियासत के दीवान ओंकारसिंहजी को प्रेषित एक पत्र में उल्लेखित थी। वास्तव में 1920 ई. का दशक स्वतंत्रता संग्राम के एक लोमहर्षक युग का प्रवर्तक था। जब रोलेट एक्ट द्वारा क्रांतिकारियों पर दमनचक्र के आर्तनाद की छाया में महात्मा गांधी के आंदोंलनों की शुरुआत थी, वहीं रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी पंडित चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में बंगला क्रांतिकारी वीरेंद्र घोष के मार्ग निर्देशन में शक्ति प्रदर्शन से ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर संघात कर रही थी।[…]
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