राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण – डॉ. शक्तिदान कविया – विनिबंध

डिंगल काव्यशैली रा मर्मज्ञ अर राजस्थानी रा चावा-ठावा साहित्यकार डॉ. शक्तिदान कविया रो जलम 17 जुलाई 1940 (सरकारी कागजां रै मुजब) नै जोधपुर जिलै री शेरगढ तहसील रै गांव ‘बिराई’ में हुयो। आपरै पिताजी रो नाम गोविन्ददानजी कविया अर माताजी रो नाम फूलांबाई हो। गोविन्ददानजी डिंगल अर पिंगळ रा नामी विद्वान हा। काव्यपाठ रा मर्मज्ञ, सतोगुणी अर विलक्षण स्मृति रा धणी हा। चौखळै में आछी प्रतिष्ठा ही, पंच पंचायती में सखरी पैठ ही, छत्तीस ई कौम रा लोग वां री बात मानता। आपरी ग्राम पंचायत रा निर्विरोध उपसरपंच रैया। पंचायत समिति-बालेसर में सहवृत्त सदस्य रै रूप में लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति रै रूप में सर्वसम्मत मनोनीत हुया। 85 बरस री उमर ताई डिंगल-काव्यपाठ सारू आकाशवाणी आवता-जावता।[…]

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‘थळवट बत्तीसी’ बनाम ‘थळवट रौ थाट’ – कविराजा बांकीदास आशिया / डॉ. शक्तिदान कविया

थळवट बत्तीसी (बांकीदास आशिया)
जेथ वसै भूतां जिसा, मानव विना मुआंह।
ढोल ढमंकै नीसरै, पांणी अंध कुआंह।।
थळवट रौ थाट (शक्तिदान कविया)
थळ रा वासी थेट सूं, हरी उपासी होय।
अष्ट पौर तन आपरै, कष्ट गिणै नंह कोय।।[…]

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श्री करुणाकर-कीर्ति – डॉ. शक्तिदान कविया

।।छंद रेंणकी।।
धर अम्बर सधर अधर कर गिरधर, जग सुर नर अहि नाम जपै।
झंगर गिर सिखर सरोवर निरझर, तर तटनी मुनि प्रवर तपै।
सुन्दर घनस्याम विसंभर श्रीकर, भूघर नभचर उदर भरै।
मत कर नर फिकर सुमर मन मधुकर, करुणाकर भव पार करै।
(जिय) करुणाकर निस्तार करै।।1।।[…]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-पैलो अध्याय

पैलो अध्याय – अर्जुनविषादयोगः ।।श्लोक।। धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सुव:। मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।१।। ।।चौपाई।। भाळ धरा कुरुखेत धुजाई लड़ण भिड़ण री लोय लगाई। मम सुत अर पाण्डव रा जाया संजय हुय की देख बताया।।१।। (लोय= लड़ण री इच्छा ) (बताया=बताना) ।।भावार्थ।। संजय सूं धृतराष्ट्र कैवै-हे संजय! म्हनै आ बता कै धर्म री धरा कुरुक्षेत्र में म्हारा अर पाण्डव रा बेटा युद्ध करण खातर गया है उण ठौड़ इण बगत कांई होय रह्यौ है थारी दिव्य दीठ सूं देख ‘र बता। ।।श्लोक।। दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। आचार्यमुपसड़्गम्य राजा वचनमब्रवीत्।।२।। ।।चौपाई।। दळ पाण्डव देखत हुय दोरौ प्रळय मचण रौ लाग्यौ ब्योरौ। […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-पाँचवों अध्याय

पाँचवों अध्याय – कर्मसंन्यासयोगः ।।श्लोक।। सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि। यच्छेय एतयोरेकं जन्मे ब्रूहि सुनिश्चित।।१।। ।।चौपाई।। कर्म त्याग पुनि योग सरावौ हे माधव तय कर बतलावौ। यां दोनां सूं जो कल्याणी कुण सी म्हारै चित्त चढाणी।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन नै परिवार रा मोह रै कारण युद्ध नीं करण री जची। इण कारण वौ युद्ध रौ कर्म त्यागणौ वाजिब समझियौ पण भगवान् तत्व ग्यान प्राप्त करणा रा कर्म री प्रशंसा करै। तद अर्जुन पूछै-हे माधव! कदैइ तो आप कर्म योग री तारीफ करौ अर कदैग तत्व ग्यान प्राप्त करण री म्हनै आ बतावौ कै म्हारा किसा कर्म करण सूं औ कल्याण […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-चौथो अध्याय

चौथो अध्याय – ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः ।।श्लोक।। इम विवस्वते योगं प्रोत्तवानहमव्ययम्। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत।।१।। ।।चौपाई।। सूरज नै म्हैं योग सुणायौ भानु पुत्र मनु नै समझायौ। इक्ष्वाकु पितु मनु सूं लीदौ इम अविनाशी योग यु दीदौ।।१।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्री कृष्ण कह्यौ-म्हैं इण अविनाशी योग रौ ग्यान सूरज नै कह्यौ सूरज ग्रहस्थ जीवन यापन करतां थकां आपरा बेटा मनु नै समझायौ अर मनु आपरा बेटा राजा इक्ष्वाकु नै औ ग्यान विगत वार दियौ। ।।श्लोक।। एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु:। स कालेनेह महता योगोनष्ट: परन्तप:।।२।। ।।चौपाई।। हे अर्जुन आ परम्परा री रीत राज ऋषि जाणी सारी। घणा काल सूं आ छिप गी है। आ धरती तज […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-तीजो अध्याय

तीजो अध्याय – कर्मयोगः ।।श्लोक।। ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन। तत्किं कर्माणि घोरे मां नियोजयसि केशव।।१।। ।।चौपाई।। ग्यान बतायो कर्म सु ज्यादा हे माधव कर कर ए वादा। घोर ज कर्म करावण भेजो हे केशव यो लेखो देजो।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन कैवै-हे जनार्दन! जै (चेत्) आप बुध्दि (ग्यान) नै कर्म सूं ज्यादा(ज्यायसी, बत्तो) मानो (मता) तो पछै आप म्हनै घोर कर्म करण वास्ते क्यूं लगाय रह्या हो। मतलब म्हनै युद्ध करण खातर (युद्ध करणौ क्रूर(घोर)कर्म है) क्यूं प्रेरित कर रह्या हो। ।।श्लोक।। व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव में। तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्।।२।। ।।चौपाई।। एक सरीका आं वचनां से म्हारी आ बुध भमती […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-दूजो अध्याय

दूजो अध्याय – साङ्ख्ययोगः ।।श्लोक।। तं तथा कृपयाविष्टं अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्। विषीदन्तमिदं वाक्यं उवाच मधुसूदन:।।१।। ।।चौपाई।। देख दुखी अर्जुन अति भारी, नैना नीर बहे जिण वारी। आ गत जाण लगावण थागा, तद मधुसुदन यु कैवण लागा।।१।। ।।भावार्थ।। संजय कैवै-हे महाराज! अर्जुन नै जद घणौ दुखी देखियो अर उण री आंख्यां में आंसुआं रौ समदर उमड़ियो तद मधुसूदन (भगवान श्री कृष्ण)उणनै थगी (सहयोग)देवण खातर कैवण लागा। ।।श्लोक।। कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्य-जुष्टमस्वर्ग्यम् अकीर्ति-करमर्जुन।।२।। ।।चौपाई।। इ पुळ मोह जग्यो बेजां ई, पण यु मोह इण पुळ दुखदाई। न औ मोह तुज सुरग पुगावै, न कोइ इतरो मान बढ़ावै।।२।। ।।भावार्थ।। भगवान कैय रया है-हे अर्जुन! […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-छटौ अध्याय

छटौ अध्याय – आत्मसंयमयोगः ।।श्लोक।। अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य:। स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय:।।१।। ।।चौपाई।। कर्म फलां री आस नि करणौ पर हित कर्म सु योगी बणणौ। पण योगी अगनी नै त्याजै तज किरिया योगी नीं वाजै।।१।। ।।भावार्थ।। भगवान श्री कृष्ण कैवै-हे अर्जुन! जकौ मिनख कर्म फलां रौ आश्रय नीं लै पण दूजां रै हित खातर कर्तव्य-कर्म करतौ रैवै वौ इज संन्यासी अर योगी कहावै है। मतलब इण तरह निर्लिप्त रैवतौ थकौ कर्म करण वाळौ इज सन्यासी है अर सुख दु:ख में सम रैवण वाळौ योगी है। पण फगत अग्नि रहित होवण सूं या क्रिया […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-सातवौ अध्याय

सातवौ अध्याय – ज्ञानविज्ञानयोगः ।।श्लोक।। मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय:। असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तुच्छृणु।।१।। ।।चौपाई।। घणा प्रेम घण भाव जतावै हे अर्जुन थूं योग निभावै। म्हैं सगळा गुण रूप बताऊँ सुण बिन संशय भरम मिटाऊँ।।१।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्रीकृष्ण कैवै-हे अर्जुन! अनन्य प्रेम सूं म्हारा में आसक्तचित्त अर अनन्य भाव होयोड़ौ योग में लागियोड़ौ थूं जिण तरह रौ सगळा बलां युक्ति, ऐश्वर्य गुणा सूं सराबोर सगळां रौ आत्म रूप म्हैं थनै बिना संशय रै बताऊं ला वौ सुण। ।।श्लोक।। ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत:। यञ्ज्ञात्वा नेहि भूयोऽन्यञ्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।२।। ।।चौपाई।। तत्व ग्यान विग्यान सुणाऊँ तुझ खातर म्हैं सब समझाऊँ। जाणण जोग कर्म पहिचाणौ […]

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