श्री मोरवड़ा जुन्झार जी – कवि रामदान जी

।।श्री जुन्झार जी।।

सिरोही राजा सोखियो, दुश्मण लीधो देख।
जद्ध किधो महियों जबर तन मन दही न टेक।।

अहि भ्रख भूपत आदरयो, कीध भयंकर कोम।
केशर नृप उन्धी करी, सिरोही रे सोम।।[…]

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मोद कवि गीध मोद धार करेगो

।।कवित्त (पिंगल में)।।
सिरोही को सांम सज्यो लज्यो न अकाम माग,
मोरवड़ा गांम परे भेजि सेन भारी है।
ईनमीन साढी तीन पातन आवास वहां,
प्रेमी वे जमीन के सदीन साख धारी है।
अतंक हूं के डंक हूं से निशंक सारे वीर
यश हूं के अंकधारी नेस नर-नारी है।
बंध्यो सिर सूत सोई मन मजबूत भारी,
भिड्या दूत जम्मन से कथा धर सारी है।।[…]

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लक्ष्मणदान कविया खैण – परिचय

…आज राजस्थानी में लिखै घणा ई है पण उणांरो लिख्यो पढां जणै सावजोग समझ सकां कै ऐ कवि वैचारिक कुंडाल़िए सूं बारै आय’र जनमन नै समझण अर उणरी कोठै में उपजी नै आपरै होठै लावण सूं शंकै। पण जनमन नै समझ’र उणरी अंतस भावना नै आपरै आखरां पिरोय बिनां हाण लाभ रै फिकर में जन जाजम माथै राखी है उणांमें लक्ष्मणदान कविया खैण रो नाम हरोल़ में है। साहित्य मनीषी कन्हैयालाल सेठिया रै आखरां में “लक्ष्मणदान कविया राजस्थानी रा लोककवि है। आंरी कवितावां जुगबोध अर जुग चेतना सूं जुड़्योड़ी है।” जिण कवि री कवितावां जुगबोध अर जुग चेतना सूं जुड़ी थकी है उवो कवि इज सही अरथां में लोककवि है।…

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भक्त कवि मुरारदानजी आशिया नोखड़ा

बीसवीं सदी में डिंगल़ रा केई सिरै कवेसर होया, जिणां आपरी सिरजणधारा सूं समाज नै नवो भावबोध अर साहित्य नै ऊंचाई दी। ऐड़ै ई विरल कवियां मांय सूं एक हा मुरारदानजी आशिया नोखड़ा। नोखड़ा आशिया चारणां रो गांम। जठै साहित्यकारां अर साहित्य सेवियां री एक लंबी श्रृंखला रैयी है। जिणांमें भैरजी आशिया, वांकजी आशिया आद कवेसर इण थल़वट में चावा हा। भैरजी रचित करनीजी रो चित इल़ोल गीत तो इतरो लोकप्रिय है कै सैंकड़ू जणां रै कंठाग्र है-

सबल़ तोरो देख सरणो, ओट लीधी आय।
भणै यूं कर जोड़ भैरूं, पड़्यो रैसूं पाय।
तो महमायजी महमाय, मोपर महर कर महमाय।।

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इयां मरै को नीं भाऊ!!

एक’र पोकरण रै आसै-पासै भयंकर काल़ पड़ियो। काल़ नै तो कीकर ई कूटर काढणो पड़सी! आ विचार नै अठै रा दो आदमी सिंध ग्या।

सिंध रै किणी गांम में पूगा, उठै उणां देखियो कै किणी धायै घर री बहुआरी गूंघटै में आपरै फल़सै रै बारलै वल़ा फूस बुहार रैयी है।

एक आदमी बोलियो ‘भइया कोई ओसाण करां ! जिको झांकल़ री ठौड़ हुवै!!’
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स्वातंत्र्य राजसूय यज्ञ में बारहठ परिवार की महान आहूति – ओंकार सिंह लखावत

आज हम स्वतंत्र हैं, मौलिक अधिकारों के अधिकारी हैं और चाहे जब चाहे जो बनने और करने का रास्ता खुला है, परंतु यह हमारे कारण नहीं। जरा सोचिये, कुछ रुकिये, बुद्धि पर जोर लगाइये तब पता चलेगा कि यह सब उन स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान की बदौलत है।

अपने और अपनों के लिये तो सब कुछ ऐसे और वैसे करने को तत्पर रहते हैं, क्या कभी इनके बारे में सोचने की फुर्सत भी निकाली है ? यदि हां तो ठीक है, नहीं तो स्वतंत्रता आंदोलन और विप्लव की आंधी के शताब्दी वर्ष में थोड़ा समय निकालिये। दादा-दादी, माता-पिता, पति-पत्नी, बेटी-बेटा, पौता और पौती में आप जो भी हो बैठकर स्वतंत्रता सेनानियों की माला के मणिये बने स्वातंत्र्य वीर श्री केसरी सिंह जी बारहठ, श्री जोरावर सिंह जी बारहठ और श्री प्रताप सिंह जी बारहठ की संक्षिप्त जीवनी पढ़ डालिये।

बारहठ परिवार की स्वतंत्रता के राजसूय यज्ञ में महान् आहूति हमें स्वतंत्रता का महत्व बताती है। जीवन जीने की सार्थकता का भान कराती है।[…]

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