वेलि क्रिसन रुकमणी री – महाकवि पृथ्वीराज राठौड़

महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ रचित अनुपम प्रबंध काव्य।
भावार्थ – श्री मातु सिंह राठोड़
छंद वेलियो

।।मंगलाचरण।।
परमेसर प्रणवि, प्रणवि सरसति पुणि
सदगुरु प्रणवि त्रिण्हे तत सार।
मंगळ-रूप गाइजै माहव
चार सु एही मंगळचार।।1।।

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रघुवरजसप्रकास [5] – किसनाजी आढ़ा

— 73 — अथ गाथा उदाहरण गिरिस गिरा गौ गौरी, हर गिर हिम हंस हास सिस हीरा। सुसरि सेस सुरेसं ए, स्रीरांम क्रत आरख्यं।।१३० अथ गाथा गुण दोस कथन छंद बेअखरी निज आखै किव ‘किसन’ निरूपण, सुणौ गाहा गुण दोस सुलछण। सात चतुरकळ अंत गुरु सज्ज, देह छठे थळ जगण तथा दुज।।१३१ बांधव पूरब अरध एण बिध, यम हिज जांण जगण उत्तरारध। काय छठे थळ यक लघु कीजै, दुसट विखम थळ जगण न दीजै।।१३२ मत्त सतावन स्रब गाथा मह, कळातीस पूरबा अरध कह। वीस सात कळ उतर अरध विच, रेणव अेम छंद गाथौं रच।।१३३ पाय प्रथम पढ़ हंस गमण पर, […]

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रघुवरजसप्रकास [4] – किसनाजी आढ़ा

— 41 — अथ मात्रा व्रत्ति वरणण दूहा मत्त व्रत्त में सुकव मुण, मात्र प्रमांण मुकांम। आवै समता आखिरां, वरण व्रत्त जिण ठांम।।१ मत्त व्रत हिक अह मुणी, पढ़ि सौ च्यार प्रकार। मत्त छंद उप छंद पद, असम सुदंडक धार।।२ छंद चंद्रायणौ* लग मत्ता चौवीस छंद मत्त लेखजै। सुज यां अधिका मत उपछंद विसेखजै।। वरण मत सम नहीं असम पद जांणजै। बे छंदां मिळ दंडक मत्त बखांणजै।।३ अथ मात्रा छंद तंत्र गमक छंद पंच मत, गमक सत। सीत बर, रांम रर।।४ छंद बांम छ मात्रा छ मत ‘बांम’ समरि स्यांम। झूठ धंध, मन म बंध।।५ १. मुकांम-स्थान। आखिरां-अक्षरों में। ठांम-स्थान। […]

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रघुवरजसप्रकास [3] – किसनाजी आढ़ा

— 17 — अथ मात्रा स्थांन विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण। दूहौ अंत गुरु तळ लघु धरौ, आगै पंत समांण। ऊबरे सौ गुरु लघु धरौ, पाछै एह प्रमांण।।५७ अथ मात्रा स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर। चौपई अंत निकट लघु सिर गुरु धरौ, अधर पंत सम अग्र विचारौ। ऊबरे सौ पाछै लघु आवै, कळा थांन विपरीत कहावै।।५८ अथ मात्रा संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर दोनूं भेळा कहै छै। चंद्रायणौ आद अंत लघु संनिध तळ गुरु आंणजै। जेम प्रकारांतर गुरु सिर लघु जांणजै।। धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर कीजिये। संख्या बिहुं प्रकार उलट्ट सुणीजियै।।५९ वारता संख्या विपरीत का आद लघु का अंतकौ […]

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रघुवरजसप्रकास [2] – किसनाजी आढ़ा

— 1 — श्रीगणेशाय नमः श्रीगुरुगणपतीष्ट देवताभ्यो नमः * ॐ नमः श्रीसीतारामाय अथ आढ़ा किसनाजी क्रत पिंगळ रघुवरजसप्रकास लिख्यते ** श्रीगणेस स्तुति छप्पै कवित्त-भाखा मुरधर श्री लंबोदर परम संत बुद्धवंत परम सिद्धिबर। आच फरस ओपंत, विघन-बन हंत ऊबंबर। मद कपोल महकंत, मधुप भ्रामंत गंधमद। नंद महेसुर जन निमंत, हित दयावंत हद।। उचरंत ‘किसन’ कवि यम अरज, तन अनंत भगति जुगत। जांनकी-कंत अक्खण सुजस, एकदंत दीजै उगत।।१ प्रथम भ्रहंम मझ बेद, छंद मोरग दरसायौ। खग अग पिंगळनाग, ‘नागपिंगळ’ कर गायौ।। ‘काळिदास’, ‘केदार’, ‘अमरगिर’ पिंगळ अक्खे। भाखा ब्रज सुखदेव, ‘सुरतचिंतामण’ भक्खे।। लछ भाखा पिंगळ ग्रंथ लख, एकठ बोह मत आंणियौ। रघुबरप्रकास जस […]

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रघुवरजसप्रकास [1] – किसनाजी आढ़ा

— i — भूमिका संस्कृत साहित्य में छंदशास्त्र का विशेष स्थान है। वेद के छः अंगों (१ छंद, २ कल्प, ३ ज्योतिष, ४ निरुक्त, ५ शिक्षा और ६ व्याकरण) में छंदशास्त्र भी एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका स्थान पाद (चरण) माना गया है। कारण कि इसके बिना गति-क्रिया किसी की सम्भव नहीं, अतः वेद में भी छन्दस्तु वेदपाद: कहा गया है। यह कहना कोई अत्युक्ति नहीं कि हमारे पूर्वाचार्यों ने काव्य-रचना में छंदशास्त्र की उतनी ही आवश्यकता मानी है जितनी व्याकरण की। कालान्तर में अनेक भाषाओं का प्रादुर्भाव संस्कृत भाषा से हुआ जैसे कि प्राकृत, अपभ्रंश आदि। इन भाषाओं के […]

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