आ रे मेरे जोगिया

इश्क चदरिया मैं सखी!,करूं गेरुआ रंग।
फिर बन बन डौलत फिरूं,निरमोही के संग॥1

जोगी के दरबार से,आया यह संदेश।
बांध गठरिया देह की, चलो बिराने देश॥2

जोगी तेरे नैन में, देख सजूं शृंगार।
इश्क चुनरिया ओढ फिर, करूं प्रणय मनुहार॥3

बिरह अगन ऐसी लगी,जली हुई मैं खाख।
आकर मेरे जोगिया,मलदे तू तन राख॥4

रोम रोम तू ही बसा, आ पलकों में झांख।
बिना तुम्हारे जोगिया,कछु न सुहावै आंख॥5

जोगी! तू धूनी रमा,बैठा बन में जाय।
मैं जलती मन में यहां,मुझसे राख रमाय॥6

सतरंगी सपने हुए,मेघ धनुष से यार।
जब जोगी आषाढ बन,बरसा अनराधार॥7

आ रे मेरे जोगिया,धारे भगवा भेस।
दरसा रे दीदार तू,वृथा न बैठ बिदेस॥8

~~@वैतालिक

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