आग नफ़रत री बुझाओ

आग नफ़रत री बुझाओ, आ समय री माँग है।
हेत री जाजम जमाओ, आ समय री माँग है।
मौन तोड्यां बिन मनां री ग्रन्थियां उळझै घुळै।
परस्पर बोलो-बुलाओ, आ समय री माँग है।
बारणा अर बारियाँ ढक, सोवणै सूं नीं सधै
आज घर सूं बा’र आओ, आ समय री माँग है।
दोष देकर दूसरां नैं, पाक-दामण मत बणो
आंगळी खुद पर उठाओ, आ समय री माँग है।
मूंछ माड़ी टेम रै, मुख-कोट में बड़ सोयगी
पूंछ सूं माखी उड़ाओ, आ समय री माँग है।
दूसरां री दाढ़िया में, तिणकला जोवो मती
आईना खुद नैं दिखाओ, आ समय री माँग है।
नेह-नाडां रै निलज्जी, नाळियां है चित चढी
साख समदर री बचाओ, आ समय री माँग है।
बंद पोळां में पनपती, नागफणियां न्हाळ कर
आगळां अळगी बगाओ, आ समय री माँग है।
डूंगरां अर परघरां री, आग में पूळा दिया
अै हुनर मत आजमाओ, आ समय री माँग है।
बरस बीत्या बरगदां रै, बारणै चौकी खड़्यां
बाळक्या पौधा बचाओ, आ समय री माँग है।
हेत ठस नै हिम बण्यो है, पिघळणो भूल्यो परो
स्नेह-गंगा फिर बहाओ, आ समय री माँग है।
आगियां अर चांद तारां, सूं अँधारो नीं छंटै
भाण भळहळतो उगाओ, आ समय री माँग है।
चूड़ गफ़लत री चढ्यो, ‘गजराज’ थारो गाँव ओ
भ्रम री भींतां हटाओ, आ समय री माँग है।
~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
SIrji, Really Nice Poetry….
if you write your name is as Gajraj Charan May more suit you as a Kaviraj.
Thanks