आई खोडियार वंदना – जयसिंह सिंहढायच
।।दोहा।।
धरा माड धरती धिनो,धिन धिन चाळक ग्राम।
धिन मादा काछैल कुळ,धिन पितु मामड धाम॥1॥
सातूं बहिनां संग मैं,शोभित बीच विवाण।
पितू मामड घर प्रगटिया,काछैला कुळ भांण॥2॥
सवंत आठसै आठ सुभ,चैत नवम शनिवार।
माड धरा मामड घरां,आप लियो अवतार॥3॥
आई जद अवतरीह,भार उतारण भोम रो।
छबि उण दिवस रीह,बरणी न आवै वेदसूं॥4॥
वाम कर त्रिशूळ ब्राजै,वाहण ग्राह विशाळ।
अनुपम शोभा आपरी,खमा घणी खोडियाळ॥5॥
सेवग सुखदायी सदा,धिन मां धाबळवाळ।
मामड जा मातेसुरी,खमा मात खोडियाळ॥6॥
बढायो बिरद विचार,वंश सूरज रो वीसहथ।
लंगरी आई लार,राबछा सूं राजेसरी॥7॥
सेवक करण सनाथ,हाथ धरो सिर उपरां।
बंश वधाळी मात,वंदूं थानें वीसहथ॥8॥
प्राची दिश परभात,उगै अरक अवश्य ही।
(इम)वंश बधाळी मात,अटल भरसो आपरो॥9॥
आवे होय अधीर,बाळकियां हित वाहरु।
सुख मंह राखै सीर,काछैली करुणानिधे॥10॥
संकट मंह नित सांकडी,रहै दास रे साथ।
लाख रंग मां लंगडी,वंश बधाळी मात॥11॥
~~जयसिंह सिंहढायच गाँव मंदा जिला राजसमंद