आई शैणलमां रो गीत – कवि नाथूराम लाळस

आई शैणल जुडियै थह उभी, खाग भुजां बऴ खंडी।
प्रगळ हुवै नव नैवज पूजा, चाचर भूचर चंडी॥1॥
खप्पर भरै सत्रां पळ खाचण, हाथ त्रशूळ हलावै।
सेवग साद सुणंता शयणी, उपर करवा आवै॥2॥
विखमा डमरु डाक वजंती, वाघ चढी वेदाई।
दोखी दु:ख पावै जिण दीठां, सुख पावै सरणाई॥3॥
पार न लाधै शेष प्रवाडां, परचा काछ पंचाळी।
कोडां ने रुठी महाकोडां, तुठी हाथां ताळी॥4॥
भेटंतां दु:ख दाळद भांजै, बांह ग्रहयां ज्यां बेली।
नाथू सांवा प्रीत निवाजै, क्रीत सुणै काछैली॥5॥
~~कवि नाथूराम लाळस