आज रो समाज अर सराध रो रिवाज

सराध रो रिवाज आपणै समाज में जूनै टेम सूं चालतो आयो है अर आज ई चालै। जे आज री बात करां तो इयां मानो कै अबार रो जुग तो सराध रो स्वर्णिम जुग है। पैली रै जमानैं में तो मायतां रै देवलोक गमण करण रै बाद में ही सराध घालणा सरू हुया करता पण आज री पीढ़ी तो इतरी एडवांस है कै जींवता मायतां रा ई सराध करणा सरू कर दिया। बातड़ी कीं कम गळै ऊतरी दीखै पण आ बात साच सूं खासा दूर होतां थकां ई साच-बायरी कोनी। इणमें साच रा कीं न कीं कण कुळबुळावै। लारलै दिनां री बात है। अेक नामी-गिरामी अफसर आपरी जोड़ायत सागै मोटी अर मूंघी कार में वृद्धाश्रम आयो। भागां सूं बठै म्हारै जाण-पिछाण वाळी अेक समाजसेवी संस्था रा कई मानीता सदस्य भी वृद्धाश्रम री आर्थिक मदद करण सारू बठै गयोड़ा हा। मैनेजर वां सगळा सदस्यां सूं बात करै हो, इतरै तो वृद्धाश्रम रै दरवाजै कनैं अेक कार रुकी। कार दीखतां ई मैनेजर तावळो सो कार वाळां री आवभगत सारू दरवाजै सामी चाल्यो। बाकी सगळा आप-आपरी ठौड़ खड़्या रैया। कार मांय सूं अेक ओपतो जवान बारै आयो। रौबीलो मिजाज, मठोठदार मूंछ्यां, धोळोझख चोळो-पायजामो, हाथ में खासा मोटो मोबाइल, गौरो रंग। देखतां ई थुथकारो न्हाखण रो मन करै। कार रै दूजोड़ै दरवाजै सूं अेक लुगाई ऊतरी। सूरत तो थोड़ी सांवळी ही पण नाक-नक्श अर डील-डोळ इस्या फूठरा कै देखणियो देखतो ई रैवै। बाळ झटकती बा बाला आपरी मटकती चाल सूं सगळां रो ध्यान आप कानीं खींचै। दोनूं सागै-सागै चालता वृद्धाश्रम में बड़ै। मैनेजर समेत सगळा नौकर चाकर हाथ जोड़ वांसूं रामा-स्यामा करै। समाजसेवी संस्था वाळा म्हारा भायला ई भेळोभेळ ओपतो अभिवादन कर आपरी ड्यूटी निभावै।
आॅफिस में बैठतां ई बै पचास हजार रो चैक मैनेजर नैं पकड़ावै। बा लुगाई समूचा नौकरां-चाकरां नैं 100-100 रिपिया अर मैनेजर साहब नैं 1000 रिपिया रीझ रा देवै। चाय पाणी लियां पछै अेक नौकर रै सागै बै दोनूं धणी-धिराणी वृद्धाश्रम रै अेक कमरै में जावै। बठै खाट में पड़ी अेक बूढ़ी डोकरी सूं मिलै। बा उण मोट्यार अफसर री बूढी मां अर उण दातारण बहू री सासू है। दोनां नैं आतां देख डोकरी दौरीसौरी सूंईं हुवै। बै पगां-लागणा करै अर बा आसीस देय चुप हो ज्यावै। बेटो पूछै सौरा हो, वा घांटी हिला’र हामी भरै पण मूंढै मौन ई राखै। बीनणी कैवै घणी सुहावणी जाग्यां है आ तो, अठै तो बारै बाग अर मोकळी हरियाळी है। सगळा थांरै साईनां-दाईनां लोग। मोकळी हथायां करो। बा आगै कैवै ‘‘आप सौरा तो म्हे सौरा।’’ आपरी सौराई खातर ई पचास हजार साल रा अठै देवण आवां। पण माईत तो माईत है सा, माईतां रो ई नीं करां तो किण रो करां। ल्यो चालो आपांनैं क्लब जावणो है। इयां कैय बै दोनूं चाल पड़्या। डोकरी पाछी आडी हुगी। म्हारो कचमादी भायलो भूरो खिड़की मांय सूं आ पूरी घटना देख ली। बै जावण लाग्या जद मैनेजर बठै खड़्या लोगां रै सामी वां दोनां री बडाई करतो बोल्यो कै इण कळजुग में भी आप इस्या आज्ञाकारी बेटा अर बहू है कै लारलै पांच सालां सूं हर साल आपरी मां सूं मिलण आवै अर वांरो सगळो खरचो खुद उठावै। मैम साहब तो चावै कै माजी घरै वांरै सागै ई रैवै पण माजी नैं हथायां रो घणो शौक है। अै तो दोनूं नौकरी करै जणा ड्यूटी पर जावै अर आजकाल शहरां में हथायां करणियां कठै लाधै। इण कारण अठै बूढ़ा-बडेरां रै सागै छोड राख्या है। म्हारा गंवेड़ी भाईला इण पूरै घटनाक्रम नैं देख-सुण चितबगना सा हुग्या। आपोसरी में बतळावण लाग्या- देखो! जलम री देवाळ मावड़ी नैं घर सूं काढ, इण बूढ-आसरै में ल्या पटकी, लोक दिखावटी साल में अेकर मिलण आवै, पचास हजार रो चैक काटै, दानी बणण रो भ्रम पाळतां हजार-दो हजार लोगां नैं बांटै अर वांरी वाह-वाही सुण राजी हुवै। मैनेजर साहब आंरी बडाई करै, समै री बलिहारी है!
आ पूरी बात गांव आयां पछै भूरै म्हनैं बताई। खैर! इण बात रा तो कई सारा आयाम है पण आपां बात सराध री करै हा। आ पूरी घटना जींवतै जी सराध घालण री है का कोनी। पूरा बारै महीनां सूं आगला बेटो-बहू आवै। पचास हजार री कागोळ घालै। गोग्रास अर स्वान रै अंश री पूरती वृद्धाश्रम रा नौकर-चाकरां नैं 100-100 बांट’र करै तो पंडितजी री ठौड़ मैनेजर नैं 1000 री दक्षिणा देय जीवित सराध पूरो करै। ओ लारली सदी रै विकास रो फगत अेक विज्ञापन है। इण विकास री गाथा रा पड़ाव अर पड़पच इतरा है कै भांवै जितरी पड़ बांचो पण कथा रो किनारो नीं आवै। जिण भांत पाबू भालाळै रै पड़ में जस-अंजस रा प्रसंगां री भरमार है उणी भांत इण कळजुग री पटकथा में ई मोकळा प्रसंग है पण वै जस-अंजस री ठौड़ अपजस अर घिन्न वाळा है। कळजुग इसी स्याळसींगी फेरी है कै कोई पण बोल-र कीं कैवै ई कोनी। अर जे माड़ै नैं माड़ो नीं कैय सको तो कम सूं कम उणनैं भलपण रा प्रमाणपत्र तो मत बांटो। जे कोई काम आछो कोनी, आप उणनैं माड़ो बतावण में कोई घाटो मानो तो चुप हो ज्याओ। पण अठै तो न्यारा-न्यारा तर्क गढ़-गढ़ संवेदनावां री जींवत-जिगड़ी करण रो चाळो चाल्यो है।
लारलै दिनां म्हारा अेक वृद्ध कविमित्र नैं म्हैं आ घटना सुणाई तो बै बोल्या कै थारी इण घटना में तो अप्रत्यक्ष रूप सूं सराध री बात है। अठै तो हकीकत में सराध कर दियो अर लारला तीन बरसां सूं लगोलग कर रैया है, इसा लोग ई इण नगर में बसै। डोकरै दो-च्यार आकरी-आकरी गाळियां काढ’र आपरी रीस ठंडी करतां बतायो कै वांरै अेक भायलै रा बेटो-बहू उणनैं भगवान भरोसै छोड’र मोटै कस्बै में जा बस्या। मोटै कस्बां में बारै सूं आवणियां नैं बारै री काॅलोनियां में ई मकान बणावणा पड़ै, क्यूंकै परकोटां रै मांय तो बेजां मूंघीवाड़ो अर संकड़ेलो हुवै। बारै री काॅलोनियां में घणकरा सा बारै सूं ई आय’र बस्योड़ा हुवै। मोट्यार तो नौकरी या मजूरी पर जावै अर लुगायां आपरो काम निपटा’र आपस में बातां रा ब्याळू करै। जठै सगळा ई अणजाण हुवै बठै आदमी अपणै आपनैं राजा हरिश्चंद्र सूं मोटो सतवादी, श्रवणकुमार सूं बत्तो माईतां री सेवा करणियो अर शिवि सूं ज्यादा परदुख कातर बतावण सूं नीं चुकै। आपस में बातां करतां कोई लुगाई पूछ लिया कै थारा सासू-सुसरा थारै सागै क्यूं कोनी रैवै? इण सवाल रो कोई और जवाब देवण में बेइज्जती रो खतरो देख’र बा झूठ बोलगी अर कैय दियो कै म्हारा तो सासू-सुसरा दोनूं राम नैं प्यारा होग्या। बाकी जिया जित्तै म्हे तो बांनैं अेक दिन ई अेकला कोनी छोड्या। म्हैं तो बां रै सुरग गयां पछै ई आं रै सागै आई हूं। इयां कैवती बा खुद ई खुद री बडाई कर’र दूजोड़ी पड़ोसणां री बोलती बंद कर दी। मोहल्लै री लुगायां उणसूं लजखाणी हुई क्योंकै सासू-सुसरा तो दो-च्यारां रा ई सागै हा बाकी तो सगळी लारलै जलम में सेवा कर’र आयोड़ी ही। खैर! उणरी बात में इतरी सच्चाई तो ही कै सासू तो संसार में कोनी ही पण बापड़ो सुसरो तो संसार पर भार बणेड़ो अठै ई हो। कीं हुवो सा! जींवतैं सुसरै नैं मरेड़ो बता’र ई आगली आपरी इज्जत ही जियां री जियां घरै ले आई। पण कूड़ तो कूड़ ई हुवै। बियां कूड़ जे परोटणी जाणो तो किराणो है पण किराणो राखणो अर बेचणो बेजां दौरो अर जोखै वाळै काम है। किराणै री हाट में हजार रिपिया भरी वाळी ई हुवै तो पांच रिपिया धड़ी वाळी चीजां ई हुवै। दोनूं ई भांत रा ग्राहक पण आवै। इण कारण हर पल सजग रैवणो पड़ै उणीं भांत कूड़ बोलणियै नैं पग-पग पर सावचेत रैवणो पड़ै। अर घणी बात में के सार है छेवट झूठ पकड़ीज ई जावै क्यूंकै उणरै पग कोनी हुवै। अेक झूठ नैं पार घालण खातर सौ झूठ बोलणा पड़ै।
आ सागण री सागण बात उण लुगाई में हुई। आगै आसोज रो महीनो आयो। सराध लागतां ई लुगायां आप-आपरै सासू-सुसरै रै सराध री तिथियां बतावणी-गिणावणी सरू करी। उणनैं ई आपरी सासू रै सराध री तिथ तो याद ही पण सुसरो तो जींवतो जागतो बैठ्यो, उणरै मरण री तिथ कुणसी बतावै। बा कीं सोचण लागी, इत्तै तो लुगायां पाछो पूछ लियो। के बात है थांरै सराध रो रिवाज कोनी के? इण कारण ई थनैं थारै सासू-सुसरै रै सराध री तिथ याद कोनी। बां उचक’र बोली म्हनैं’र याद कोनी? म्हैं तो बां तिथियां नैं भूल ई नीं सकूं। अरे! बां तिथियां म्हारा व्हाला सासू-सुसरा म्हारै सूं खोस्या है, वांनैं कियां भूल सकूं। बण अळटपै ई सासू री सात्यूं अर सुसरै री आठ्यूं तिथ बता दी अर अेकर फेरूं आपरी इज्जत ही जियां री जियां राखली। आज री हथाई तो पार पड़ी पण सात्यूं अर आठ्यूं तो आयगी। पड़ोसी रै अठै छठ नैं पिताजी रो सराध हो, बठै सूं आं सगळां नैं जिमण रो नूंतो आयो। जीमण गया तो लुगायां बोली अबै तो दोनूं दिन आपरै सासू अर सुसरोजी रो सराध है। अबै बा कुणसै बिल में बड़ै। फंसगी कुतड़ी कादै में। इज्जत राखण सारू बण उणी टेम सगळां नैं जीमण रो नूंतो दे आई। सात्यूं तो सावजोग निकळगी। सराध रो जीमण हुग्यो पण आठ्यूं नैं बात पटरी सूं नीचै ऊतरगी।
उणरो मोट्यार अड़ग्यो, बोल्यो जींवतै बाप रो कोई सराध करै के? थारो माथो खराब हुग्यो। बापड़ो डोकरो आपरा उपरला दिन गिणै। म्हारै जिसी औलाद है अर लारै थारै जिसी कुळलिछमी आयगी, जणा मरेड़ो तो है ई बापड़ो पण सांस चालै जितरै सराध तो मत घाल। जे थोड़ी’क ई सरम अर सरधा है जणां इण जीमण पर लागै जितरा रिपिया बाबै नैं हाथ में दे दै, बापड़ो बचेड़ा दिन सौरा काढल्यै। बो अेक ई सांस में सगळी बात कैयग्यो। मोट्यार री रीस अर बाप सूं न्यारो रैवण री टीस दोनूं बातां उणरी समझ में ही पण उणनैं आपरै मोट्यारै रै मोळैपण रो ई ठाह हो। इण कारण आपरै मोट्यार रै काँधै पर हाथ राखती बा होळै सी बोली, देखो! थे कीं करल्यो भलांई पण थांरो बाप तो अेक दिन मरणो है। जे आज मरग्यो तो मरग्यो अर आगै मरसी तो मरसी। रोजीनै केठा कितरा मरै, कुणसी कोर खांडी हुवै। अै रांडी रोणा छोडो अर सावळ हीयै में कांगसी फेर’र सोचो। आं लुगायां में जे म्हारी पोल खुलगी तो ओ मोहल्लो छोडणो पड़ैलो अर घणी बातां में के है, ओ कस्बो ई छोडणो पड़ सकै। दूजी जाग्यां गेबां सो काम मिलैलो कोनी अर भूखां मरता मरांला। इण वास्तै सार री बात आ ई है कै बापू नैं कागोळ घाल’र पंडित अर पड़ोसियां नैं जीमण जिमाओ। बाई बत्तीस लखणी तो बीरो छत्तीस लखणो। आवतै संकट नैं टाळण खातर बो मानग्यो अर जींवतै बाप री कागोळ घाल दी। अबै लारलै तीन सालां सूं आयै साल घालै। बै तो सोचै इण पर-धरती में वांनै कुण जाणै पण बा कैबत साव साची है कै ‘‘भींतां रै ई कान हुवै अर श्रीमान ई बेईमान हुवै’’। गांव रो कोई छोरो उणी कस्बै में टावरां पर मजूरी करै, उणरै सागै कोई मजूरियो हो जको इण मोहल्लै रो रैवासी है, बण आ बात बताई। अर बात चालती चालती गांव आयगी। गांव वाळां सूं बा पताणी पूगगी पण बापड़ो बाप कुणसै बिल में बड़ै? करै तो के करै। च्यारां कानीं चकचकाट चालै। डोकरो रोजीनां राम सूं अरदास करै ‘हे सांवरा अबै तो उठाले’’ पण मांगेड़ी मौत ई कोनी मिलै। इयां कैवतो-कैवतो म्हारो कविमित्र रोवण लागग्यो। घटना सुण काळजै में लाय लाग गी पण आ कोई अेक घर या अेक गांव री कहाणी कोनी अर जे इणमें किंतु-परंतु करां तो कोई आणीजाणी कोनी। आँख मींच’र अंधारो भलांई करल्यो बाकी साच तो है सो ई है। पंचां रो निरणै सिरमाथै, पण परनाळो तो सागण ठौड़ ई पड़ै। खैर!
ऊपरली आं दो घटनावां सूं आ तो सिद्ध होगी कै आज रो जुग सराध रो स्वर्णिम जुग है क्यूंकै च्यारांकानी सराध घालणियां री भीड़ दीखै। राजनीति में ई अबार सराध रो चाळो कीं बध्यो है। कठै-कठै तो अेक-आध सराध करै अर पछै सीधा गयाजी घाल’र सराध सूं ई पीछो छुडा लेवै। आपणै परंपरा है कै जिण पितर नैं गयाजी रळा देवै तो पछै उणरो सराध नीं हुवै। राजनीति में अबार ओ चलण खासा जोर पर है। कदे ई आपरी प्रखरता रै पाण आसमाण में उडणियां री आज आ गत है कै कोई हींग लगा’र ई नीं पूछै। आपरी आ हालत देख’र तो बै खुद ई आ चावै कै वांरो जींवतो सराध करण सूं तो चोखो है कै वांनैं गयाजी घाल’र इण जिल्लत सूं तो लारो छुडावै। खैर! समय बडो बलवान है, इणसूं कोई लड़ नीं सकै-
समै बडो सम्राट जगत में, उणसूं लड़णो ओखो
महाबली अरजण पण उणसूं, धोळै दिन रा खायो धोखो
रावण कुंभ मेघ सा रुळग्या, जगती में ही धाक जकां री
टकै-टकै मत बेच बावळा, आ जिंदगाणी लाख टकां री।।शक्तिसुत।।
बियां तो आपणा जितरा ई सामाजिक, सांस्कृतिक अर धार्मिक आयोजन है, वां रो परतख-अपरतख लाभ पंडितां नैं मिलणो ई मिलणो है पण इण सराध रै रिवाज रो दोहरो लाभ पंडितां नैं मिलै। पैलो तो जग जाहिर है कै चोखा जीमण मिलसी अर सागै ओपती दान-दक्षिणा। इणरै सागै ई अेक और मोटो लाभ इण रिवाज रो पंडितां नैं मिलै, जको वांरी छवि में सुधार करै। आप जाणो कै पंडित तो भोजनभट्ट रै रूप में चावा-ठावा है, इण कारण लोगबाग वांनै घणखाऊ बतावै पण आं सराधां में अेक-अेक दिन में आठ-आठ नूंता आवै अर जजमानां रो काम है तो पंडितजी नैं तो सगळां रै ई जावणो पड़ै। दिनूंगै बेगा ई काम सरू करै अर करड़ै दोपारां तांई आठ रा आठ नूंता सळटाय सौरा हुवै। इण परिस्थिति में वांनैं हरेक घर में थोड़ो-थोड़ो जीमणो पड़ै, इणसूं जजमानां रै घरां में पंडितजी री छवि घणखाऊ री ठौड़ थुड़खाऊ री बणै, ओ पंडितां सारू सराध रो बोनस मानो।
आपणी परंपरावां पर जियां-जियां पौंगापंथ हावी हुयो है, बियां-बियां वांरी उपादेयता अर औचित्य माथै सवालिया निसाण लागण लागग्या। सराध री परंपरा ई इण अभिशाप सूं निकळंकी नीं रैयी। दिनोदिन घर-परिवारां में बुजुर्गां रै प्रति घटती सरधा सराध री परंपरा माथै आंगळी उठावण रो मोटो आधार है। क्यूंकै जका लोग मायतां रै जींवतां थकां तो वांनैं देखण सूं ई बळता-तुरड़ीजता रैवै अर जियां ई मायत मरै, बियां ई वांरा गुणगान करणां सरू करै। इयां लागै जाणै इण भारत में जींवता लोगां री कोई गिणती कोनी पण मरियां पछै महान बणा दिया जावै। राजस्थानी रा वरेण्य रचनाकार डाॅ. शक्तिदान कविया रो ओ दूहो इण बात री साख भरै-
जीवतड़ा देख्यां जळै, गयां पछै गुणगान।
देखो भारत देस में, मरियां हुवै महान।।
~~डाॅ. शक्तिदान कविया: धोरां री धरोहर पृष्ठ 51
आज रै समाज सारू जे इण सराध रै रिवाज रा सकारात्मक पख देखां तो अेक सूं बढ़’र अेक महताऊ है। इण रिवाज री आ पण खास बात है कै इणरी पैठ ठेठ पढ्या-लिख्या सूं लेय ठोठ गिंवार ताणी अर महानगरां सूं गांव ढाणी सब ठौड़ है। आपां आज इक्कीसवीं सदी रै ऊंचै आसण बिराजेड़ा हां, इण कारण पुराणी अर पोंगापंथी बातां सूं लारो छुडा’र सीधी आज रै समाज री बात करां। अेक अेक कर’र आज रै समाज सारू सराध रै रिवाज री उपादेयता रा पख देखां।
आप जाणो कै आज रो मिनख दो ध्येय सूं काम करै- पैलो देखादेखी अर दूजो दिखावण खातर। सराध रो रिवाज आं दोनूं ई उद्देश्यां री सांगोपांग पूरती करै। आप गांव में हो का नगर में, बठै लोग आप-आपरै मायतां रो सराध करै तो वांरी देखादेखी आपनैं ई करणो पड़ै। इणमें अपणै आपनैं श्रवणकुमार रा बडा भाई साबित करण सारू लोग आप-आपरै माईतां रै मनभावतो भोजन बणवावै। भलांई बापड़ा मायतां री मनभावण मन री मन में रैयगी हुवो पण अबै तो अै बतावै अर बणावै जकी ई मायतां री पसंद बाजै। ऊमर में छाछ-राबड़ी सूं माथो मारता अर बाजरी रा सोगरां सूं पेट री आग ठारता बां माईतां री पसंद बताय’र सराध रै जीमण में रसमळाई ल्यावै। ल्यावै तो ल्यावै खरचो आगलां रो लागै पण इणमें परोक्ष संकेत ओ है कै म्हे तो सदा सूं ई म्हारै मायतां नैं रसमळाई ही जीमाता। म्हारो घर तो सदा सूं ई सैंठेड़ो हो। इणसूं देखादेखी अर दिखावण री बळत दोनूं पूरी हुवै, ओ सराध रै रिवाज रो पैलो फायदो।
अठै आ बात ई उल्लेखणजोग है कै तथाकथित रूप सूं सगळी परंपरावां रो आडैकट विरोध करणियां भी सराध नैं माड़ो कोनी मानै। क्यूंकै सराध में जे ब्राह्मण सामल है तो उणमें कागलो अर कुत्तो ई भेळा है। ब्राह्मण रो तो विरोध हो सकै पण काग अर कुत्ता तो शोषक, पीड़ित, वंचित, उपेक्षित अर प्रताड़ित वर्ग रा प्रतिनिधि है, इण कारण सराध नैं प्रगतिवादियां रा आडा-अेढ़ा कोरड़ा ई नीं खावणा पड़ै। अर प्रगतिवादियां पर सूं ई ओ कलंक हटै कै बै तो हर चीज रो ई विरोध करै। ओ आज रै समाज सारू सराध रो दूजो फायदो है। म्हारो तो ओ मानणो है कै सराध सूं बत्तो तो सर्वहारा समर्थक कोई दूजो त्योहार है ई नीं। कागलै नैं तीन सौ तिरेसठ दिन तीर-कबाण अर पत्थर री मार सूं डराय उडावणियां लोगां पर कागलै री जीत रा दो दिन अै सराध वाळा ई है। (क्यूंकै अबै अेकल परिवारां में माता अर पिता रा ई सराध घालीजै। दादा-दादी तो सरप्लस पोस्टां होयगी। इण कारण दो ई दिन गिणाया है।) आं दो दिनां में कागलै री मनवारां हुवै। रोजीनां तीर-कबाण दिखावणियां आज भोजनथाळ दिखावै पण कागलो ई मौकै रो फायदो उठावै अर सागीड़ा तपावै। आपरी जगजाणी वाणी में बोलतो काग अठी-उठी उड़तो जावै। उणनैं कवि बिहारी रा बै दूहा याद है कै उणरा अैै कोड अर ओ आदरभाव इण सराध पख रै कारण ई है। बाकी दूजो कोई कारण कोनी। आं थोड़क दिनां में चावै जित्तो बोल-बखाण करलै, पछै तो बो ई लोक अर बै ई थोक, देखतां ई तीर ताणण अर भाटा मारण सूं कोई नीं चूकैला-
दिन दस आदर पायके, कर ले आप बखानु।
जो लों कागु सराधु पख, तो लों तो सनमानु।।बिहारी।।
मरतु प्यास पिंजरा पर्यो, सुआ समै के फेर।
आदरु दे दे बोलियतु, बायसु बलि के बेर।।बिहारी।।
इण संसारी रो ओ कायदो है कै आपांनै सहजता सूं मिलेड़ी चीजां री कदर करणी नीं आवै। ओ ई कारण है कै सराध वाळी परंपरा ई आपांनै गुणहीण सी लागै पण जिण समाज में आ परंपरा नीं है, वांनै इणरा गुण दूर सूं ई दीखै। मुगल बादशाह शाहजहां अर औरंगजेब रै टेम रो प्रसंग सुणण में आवै, जिण बगत औरंगजेब आपरै पिता शाहजहां नैं जेळ में बंद कर दियो अर माकळो दुख देवणो सरू कर्यो। जेळ में बंद शाहजहां सारू पीवण रो पाणी ई पूरो नीं भेजीजतो। इणसूं अंदाज लगायो जा सकै कै बाकी सुविधावां किण भांत री हुवैला। अेक समैं में हिंदू परंपरावां रो प्रबळ विरोधी रैयोड़ो बादशाह शाहजहां आपरै दुख रा दिनां में हिंदुआं में प्रचलित सराध परंपरा रै ऊजळै पख री पड़ताळ करै। अेक दिन तिसां मरतो शाहजहां आपरै बेटै बादशाह औरंगजेब नैं कागद लिखै। अेक बेबस बाप री पीड़ा आखर-आंसू बण कागज पर उतरै। कागद रै छेकड़लै अंतरै में बळतै काळजै बादशाह शाहजहां आपरै बेटै नैं लिखै-
अे पिसर तू अजब मुसलमानी
ब पिदरे जिंदा आब तरसानी
आफरीन बाद हिंदवान सद बार
मैं देहंद पिदरे मुर्दारावा दायम आब
इणरो भावार्थ है कै बेटा औरंगजेब! तूं अजीब मुसळमान है, जको आपरै बूढै बापनैं पाणी खातर ताफड़ा तोड़ण सारू मजबूर करै। अरे म्हैं तो अजे जींवतो हूं, उणनैं ई तूं इयां पाणी खातर तरसावै। आज म्हनैं बै हिंदू सौ-सौ बार सराहणा रा हकदार लागै, जका आपरै मरेड़ा मायतां यानी पितरां नैं ई पाणी अरपण करै अर वांरी प्यास बुझावै। इण प्रसंग सूं ठाह पड़ै कै सराध रो रिवाज सरधा नैं अखी राखण रो मोटो आधार है। इणरै साथै जितरा कर्मकांड जिड़्या है, वै समूचा रा समूचा आपांनै लोकजीवण अर लोकाचार री सबळी सीख देवै। दिवंगत मायतां सारू वांरी पसंद री चीजां सराध वाळै दिन बणावण रो रिवाज इण बात री साख भरै कै आपनैं मायतां री रुचि अर अरुचि जाणणी जरूरी है। नकारात्मकता अर नाकारापण रो हर ठौड़ मिल ज्याया करै पण समैं रै बदळाव रो मतलब ओ कोनी कै सौक्यूं ई बदळ ज्यावै। सकारात्मक दीठ सूं सोचां तो ओ रिवाज इण बात री सीख देवै कै मायतां ई इच्छा-अनिच्छा जाणणो औलाद रो परम धरम है। इण इच्छा-अनिच्छा में वांरै खानपान री बात तो अेक छोटो सो भाग है। जे सावळसर विचार करां तो ओ सराध पख आपांनैं आपणी कुळपरंपरा, कुळगौरव अर गुवाड़ी रै धरम री याद दिलावै। सराध पख में फगत मायतां रै व्यक्तित्व अर कृतित्व री ई याद नीं करीजै वरन आपणा पितर, भोमियां, जुझार आद रो ई सराध करीजै मतलब कै वांरी सीख नैं चितारण रो मोकौ मिलै। बडेरां तो अठै ताणी री व्यवस्था करी है कै जे किणी रा मा-बाप कोई दुरघटना में दिवंगत हुग्या हुवै अर वांरी तिथ रो ठाह ई नीं होवै तो वां सारू छेकड़लो सराध यानी सराध पख रो छेहलो दिन तय है, उण दिन सराध करो। आ व्यवस्था वां सारू भी है, जकां किणी कारण बस याद होवतां थकां भी सागण तिथ नैं मायतां रो सराध नीं कर सक्या तो वै ई छेहलै दिन कर सकै।
सराध रै दिन मायतां री मनभावण रो ध्यान राखतां खानपान रै साथै वांरी लतां अर आदतां नैं याद करतां बीड़ी-तंबाकू आद री व्यवस्था ई करीजै अर उणरो दान करीजै। बियां देखां जणां आ परंपरा तंबाकू सेवन रो प्रचार सो लागै पण जे गैराई सूं सोचां तो इणरो सीधो सो मतलब ओ है कै आपणां मायतां नैं काई नसै आद री लत भी है तो उणरी पूरती करणो औलाद रो फरज है। इणमें प्रचार नीं उत्तरदायित्वबोध है। नसो छुडावण रो जाझा जतन करणा चाईजै पण हाण हटियां पछै बूढ़ै मायतां नैं आपां नसा-निवारण रा उपदेश देवां अर बीड़ी-चिलम रो जुगाड़ नीं करां तो आ जोगती बात कोनी। क्यूंकै आपां जे मायतां रै सदगुणां रो फायदो लियो है तो पछै वांरै दुरगुणां सूं जे छोटो-मोटो घाटो हुवै तो उणनैं ई सहण करणो लाजमी है। किणी पण मिनख नैं टुकड़ां-टुकड़ां में स्वीकार नीं कियो जा सकै, उणनैं समग्र रूप में ई स्वीकारणो पड़ै। इण कारण आपनैं जिणरा गुण पसंद है, उणरा अवगुण ई स्वीकारणा पड़सी। ओ सूत्र मायतां अर दोस्तां सूं लेय जीवण रै हरेक छेत्र में समान रूप सूं लागू हुवै। आपरै किणी मित्र में पचास गुण है, जिणसूं आपनैं वो जीव री जड़ी लागै अर उणमें अेक अवगुण है कै वो सोमरस रो पान करै। तो आपनैं उणरी इण आदत सूं नफरत करतां थकां भी उण आदमी सूं नेह राखणो पड़सी अर ब्होत सी बार उणरै साथै बैठ बिना सोमरस पान कियां भी महफिल रो हिस्सो बणणो पड़सी। आप आ नीं कर सको कै दिन में तो मित्र है अर सिंझ्या पछै दुसमण। इण तथ में मथ-मथ’र माखण निकाळणिया लोग कैवै कै सराध रै रिवाज नैं बिसरावण री आदत छोडो अर आपरै मायतां रै जीवण री अबखायां अर सौरायां साथै वांरै सपनां अर उसूलां री चरचा करो। वांरै जीवण रो विसद विहंगावलोकन करतां वांरी भूलां सूं ई सीख लेवण री जुगत करो तो वांरै संघर्ष री गाथा नैं ई सावळसर समझो। ओ सराध रै रिवाज रो महताऊ पख है।
ओ संसार तो पल पल में रंग बदळै। टोळा रा टोळा आवै अर आवै जियां ई जावै। आवै जकां रा लाड अर जावै जकां रा लाडू करै। ‘‘मरण साच नैं सौ जग जाणै, पण जीवण हित जुद्ध करै’’ आ बात साव साची है। मौत रै अटल साच नैं जाणतां थकां ई जीवण सारू जाझा जतन करां। समै री मांग रै मुजब आज रो आदमी मोकळै जंजाळां में फंसेड़ो है। रात-दिन री भागमभाग में घर, परिवार अर परिजनां सारू कोई टेम नीं है। मिनख मसीन बणग्यो। इण दाबड़कूटै में दौड़तां-दौड़तां नैं बापड़ो ओ सराध रो पख आवै, जद दोय दिन घर रा टाबरां साथै आपणै बडेरां सूं जुड़ी बातां करण रो मौको देवै। मानां कै नाजोगाई रो नाच चालू है, तो ई किसी नास्ती थोड़ी ई आई है। धरती आपरो बीज थोड़ो ई खोवै। जोगता मिनख आपरै टाबरां नैं वांरै दादा-दादी रै जीवण, सभाव अर आचार-विचार सूं जुड़ी बातां बतावै। आपां खुद ई भागमभाग रै बिचाळै अेक-दो दिन माईतां री कैयोड़ी बातां अर वांरी अंजसजोग अखियातां नैं याद करां। इण दीठ सूं म्हैं सराध पख रा शुक्रिया करूं-
श्राद्ध पक्ष तो शुक्रिया, (तूं) यादां रो रखवार।
पीढ्यां री पहचान रो, तूं मोटो त्योहार।।
मायत री मनभावना, आदत रुचि व्यवहार।
आँ री चरचा हित अवस, श्राद्ध तोर सतकार।।
भागदौड़ रै बीच में, बिसर्या सब घरबार।
श्राद्धा किया भेळा सदन, भाव बढ़ावण हार।। शक्तिसुत।।
~~डाॅ. गजादान चारण “शक्तिसुत”