आखर आखर आप रा
रचना म्हारी री रिधू, लोवडधर रख लाज।
आखर आखर आप रा, मेहाई महराज।।४४८
रचना सुध मन सूं रची, आखर थारी आ ज।
म्हारी हूं कह किम कहूं, मेहाई महराज।।४४९
सकळ जगत है स्वारथी, जूठा सभी सगा ज।
आखर आखर है खरा, मेहाई महराज।।४५०
सकल जगत है स्वारथी, जूठा सभी सगा ज।
आखर आखर आख ले, मेहाई महराज।।४५१
आखर उचरो ठाकरां, आखर खरा खरा ज।
आख’र हुय जासो अमर, मेहाई महराज।।४५२
आखर आख’र चाकरां, थया ठाकरां राज।
सरस नाम फल दाख रा, “मेहाई महराज”।।४५३
आखर हुय जासी अमर, रट आखर रिधु रा ज।
आ खर! मन समझै न पण, “मेहाई महराज”।।४५४
चाकर ठाकर सब कहै, आखर आखर राज!।
आ! खर आख रहै न मन, मेहाई महराज।।४५५
~~नरपत आसिया “वैतालिक”