आपारां पुरोधा, नारायणसिंहजी कविया ‘शिवाकर’

नारायणसिंहजी शिवाकर, राजस्थानी, संस्कृत, हिंदी, पिंगल़, अर अंग्रेजी में समरूप अर सम अधिकार सूं लिखणिया विद्वान मनीषी हा। उणां नैं 1987 में राजस्थानी भाषा अकादमी रो सर्वोच्च सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार मिलियो। उण दिनां म्है 10वीं करर 11वीं में पढे हो। रेनबो हाऊस जोधपुर में श्रद्धेय डॉ शक्तिदानजी कविया रै संयोजन में दो दिवसीय राजस्थानी साहित्यकार सम्मेलन होयो हो अर उणमें म्हनै आमंत्रित कवि रै रूप में एक म्हारो रेंणकी छंद सुणावण रो मोको मिलियो। उठै ई शिवाकरजी सूं मिलण होयो अर उणां म्हनै जिण लाड अर अपणास रै साथै ‘दुर्गादास सतसई’ दीनी। वा आज ई म्हारै कनै एक हेमाणी रै रूप में सुरक्षित है। अपणायत निरंतर बधती रैयी अर एक दिन बै म्हनै बिलकुल आपरै टाबरां रै सम मानण लागग्या। उणां म्हनै कितरा ई पोस्ट कार्ड अर बीजा कागज लिखिया जिकै सगल़ा म्हारै कनै पड़िया है। उण दिनां म्है “राजस्थानी साहित्य रा कीरत थंभ नारायणसिंह शिवाकर” लेख अर एक वेलियो गीत ई लिखियो। दोनूं राजस्थानी गंगा अर विश्वंभरा में छपिया। लेख में उणां रै सिरजण पेटै अर व्यक्तित्व पेटै विस्तार सूं जाणकारी है। दोनूं बाचर बै कितरा राजी होया, म्है आपने आखरां रै ओल़ावै बताय नीं सकूं। आज बो गीत एक पुराणी डायरी में अचाणक आगै आयग्यो तो आप तक ई पूगतो कर रैयो हूं। शुरुआती दौर री रचनावां है सो आप कल़ा पख कानी नीं देखर फगत भाव पख कानी ई देखोला।

गीत नारायणसिहजी शिवाकर रो

दूहा
कविया तो कितरा कहूं, वरधर रखण विमेक।
नेही तनै नारायणा, हूं तो जाणूं हेक।। 1
अँतस नेह उफणै अजब, गजब ज्ञान गहीर।
नर नामी धिन नोख रो, सज्जन नरो सधीर।। 2
किरपा प्रगटै कागजां, आखरियां अपणास।
नामी मिनख नरायणा, भलपण दीसै भास।। 3
कहर विधाता की करै, डरै नहीं डकरेल।
भरै भारती भवन नैं, खरै आखरां खेल।। 4
दाटक दुरगादास री, सतसईया रच सार।
डिगतो बैवै डोकरो, वसुधा ले बल़िहार।। 5

गीत
सतधर ओ मिनख मान सुखरासी
साचो मृदुभासी सुभियांण।
अणहद काव्य रचण अभिलासी
नोख तणो वासी नारांण।। 1
दुनिया नैं दैण ज्ञान ओ दूथी
पावन लैण भलाई पात।
साचो सैण मानवै सारा
ऐण इल़ा कवियो अखियात।। 2
दीधो अथग साहित उ दीठो
कीधो काज खरो कवियांण।
लाटै सुजस लोभपण लीधो
गैलै बह सीधो गुणियांण।। 3
जगदीश जपण रटण उ जागी
वरणी हद वैरागी बाण।
वीदग अंजस करै बडभागी
त्यागी हुवो धीर रै ताण।। 4
गीता अनुवाद सिरजियो ज्ञानी
दिल सुध भावां ध्यानी दाख।
छानी रही नको बुध छेवट
सारी इल़ मानी आ साख।। 5
सांप्रत घूंट इमी रो सूंप्यो
खूंट च्यारुं लीनो जस खाट।
उगत लिख्या आछा ओखाणा
थिर हद प्रेमी कीना थाट।। 6
दुरगै तणी कीरती दाखी
रजवट री राखी तैं रीत।
आखी आज बखाणै अवनी
गिरधर रो साखी ओ गीत।। 7

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.