आसू रो तो घर है !

आसू रो तो घर है !
चारण अर राजपूतां रा संबंध कितरा प्रगाढ हा, इणरो एक उदाहरण आपनै देवूं। लगै-टगै आजादी रै आवण री बगत रै आसै- पासै रो किस्सो है। जोधपुर अर बीकानेर री सीमाड़ै रूपावतां रो एक ठीकाणो हो ऊदट। उण दिनां ऊदट ठाकुर हा अमरसिंह।अमरसिंह चोखल़ै चावा। उणां रै मिनखपणै री घणी बातां चावी। उणां तीन ब्याव किया पण जोग सूं टाबर नीं होयो। चोथो ब्याव उणां भाटियां में कियो। ठाकुर जितरा ई उदार ठकराणीसा उतरा ई मन रा माठा। ऊदट ठिकाणै में दासोड़ी रा रतनू आसूदान रैवता। कंवारा हा सो नीं कोई जावण रो कैवणियो अर नीं आवण नै ऊडकणियो। पूगतो शरीर, बातपोस, अर ऊजल़ै चरित् रा मिनख हा। ठाकुर अणू़तो लाड राखता। ठिकाणै में आसूदान रै घातियो लूण पड़ै।
एकर ठाकुर बारै गैयोड़ा हा अर लारै सूं रावल़ै में मेहमाण आयग्या। रोटियां परूसी गई पण घर अर मेहमाणां मुजब नीं ही। आसूदान दरोगै नै कैयो” रे! आ कांई रोटी लायो है? ऊदट ठिकाणो है। अमरसिंह रो घर है गैलसफा! लूखा टुक्कड़ ला र राख दिया। तन्नै ठाह है कै जीमण वाल़ा कुण है?”
छोरै कैयो “हुकम बाजीसा ! ठकराणीसा ओडाणै रै आडा सूता है अर ओलण, घी लेवण सूं मना करियो है।”
इतरी सुणता ई आसूदान नैं रीस आयगी। उणां कैयो “मूंडो बाल़दूं ऐड़ी ठकराणीसा रो। हाल हूं देवूं ओलण री पारी अर चरुड़ी।”
बै मांयां गैया तो देखै कै ठकराणीसा ओडाणै रै सिरांतियो दियां सूतां है। उणां बिनां जेज कियां ओडाणो आगो खींच र छोरै नै कैयो “ले उठा आ पारी अर चरुड़ी अर हाल ऊतारै में।”
छोरै ओलण लियो अर तिबारी जाय लगावण री छांछल़ कर दीनी। रावल़ै में ठकराणीसा रीस में भाभड़ा भूत होयां बैठा हा। सांझ पड़ियां ठाकुर आया। आवतां ई हाजरियै कैयो कै ठकराणीसा रीस में विकराल़ होयां बैठा है। बै मांयां गैया तो देखै साचाणी ठकराणीसा तो चंडी रूप धारियां बैठा है। उणां कारण पूछियो तो ठकराणीसा पूरी बात बतावतां कैयो कै “इयां कोई घर लूटाइजै कांई? का तो इण घर में ओ आसू चारण रैवैला का म्है रेवूंला।अब दोनूं इण घर में एकै साथै नीं खटां।”
ठाकुरां केयो “आपरी मरजी, नीं रैवो तो! आसू रो तो घर है बो कठै जावैलो?”
“आसू रो घर है अर म्है हाथ पकड़ र आई जिको म्हारो नीं ?”
“रैवो तो घर थांरो अर नीं रैवो तो आपरी मरजी। आसू रो तो घर है जणै ई उण घर री इज्जत राखली ।”
ठाकुर री बात सुण ठकराणी मोल़ा पड़ग्या। पछै ठाकुरां पूछियो कै आसूदान कठै है ? हाजरियै कैयो कै बाजीसा तो आपरै घरै जावण नै संभियोड़ा बैठा है फगत आपनै उडीकै है। आगै ठाकुर ऊतारै में गया तो देखै कै आसूदान आपरो थोड़ो घणो समान हो जिकै नै हाथ में लियां ऊतारै सूं बारै ठाकुर नैं साम्हा आयग्या।
ठाकुरां पूछियो “ओ कांई आसूदान? आज सिध संभ रैया हो?”
आसूदान कैयो कै अबै म्है अठै नीं रैवूं जठै म्हनै परायो समझै बठै म्हनै नीं रैणो।
“कुण समझै तन्नै परायो? जावै तो ठकराणी जावै थारो तो घर है तूं कठै जावूंलो? राख पाछो थारो समान। जे नीं राखियो तो तूं क्यूं जावै ले म्है जावूं। तैं तो घर री इज्जत राखली। अबै गमावणी होवै तो जा परो।”
ऐड़ा उदार अर मोटै मन रा मिनख हा अमरसिंह रूपावत।
करणी देसी कंवरड़ा
आज जद आपां कठै ई सुणां कै फलाणजी बारठजी फलाणै ठाकरां नै भूंडा कैया अर उणां रै कोई नै कोई अजोगती बात होई या आपां सुणां कै फलाणजी बारठजी फलाणै ठाकरां नै ऐड़ी सर कविता कैयी जिण सूं उणां रै पौ बारा पच्चीस होयग्या। तो आपां नै विश्वास नीं होवै अर ऐ बातां आपां नै खाली गप्प बाजी रै कीं नीं लागै, पण इण बातां में सोल़ै आना सचाई है।
आजादी रै आसै पासै मारवाड़ रै फलोदी परगनै रै गांव ऊदट रा ठाकर हा अमरसिंहजी रूपावत। उणां तीन ब्याव किया पण ठकराण्यां रो पेट नीं मंडियो। उणी दिनां दासोड़ी रा रतनू करणीदानजी रो ऊंठ चोरां, लूणै ठाकुर रुघजी री मदत सूं चोर लियो। करणीदानजी नैं ओ ठाह लागो कै ऊंट ऊचकावण में रुघजी रो हाथ है तो उणां रुघजी रा विसर ई कैया “बेपतो रुघो बटाल़ो रै, कुलती रो मूंडो काल़ो।” खैर, करणीदानजी सिडां ठाकुर हम्मीरसिंह बरसिंग कन्नै गया। क्यूं कै भाटियां अर रतनूवां रै जुगादी सनातन। करणीदानजी सिडां ठाकरां नै इण पेटै गीत दूहा ई कैया
सिरड़ज सातूं वास में सारां में तरसिंग।
भोज पोतो है भलो बडो ठाकर बरसिंग।।
खासा दूहा है। आखिर में कवि कैयो कै आप म्हारो ऊंट जोय र दिरावो। म्है यूं जाणूंलो कै आप म्हनै कन्नै सूं दियो
करनो कहै कलियाण रा कीरत करजै कान।
ऊंठ म्हारो तूं आपजै ज्यूं दीनो कव नै दान।।
हम्मीरसिंहजी कोई घणी गिन्नर नीं करी क्यूं कै उणां नै ठाह हो कै चोरी किण करी है। उणां कैयो बाजीसा ! म्हैं कविता में घणो सभझू नीं।
करनीदानजी रै एकर तो जची कै थोड़ा भूंडा कैवूं पण भाटी जाण र उणां कीं कैयो नीं अर सीधा ऊदट ठाकर अमरसिंह रै अठै पूगा अर ओ दूहो सुणायो
अमरो गुमरो आदमी सारी बात सुफेर।
चोर राईका चोखल़ै ज्यांनै करसी जेर।।
आगै खासा दूहा है
रूपावत चढती रती सदा सुरंगै वेस।
कव रै पांगल़ कारणै आछपण अमरेस।।
अमरसिंह कैयो, आप तो पूरी बात बतावो। करनीदानजी पूरी बात बताई अर साथै ई आ ई कैयी कै सिडां ठाकर हम्मीरजी ई हाथ पाधरा कर दिया है। अमरसिंह कैयो, बाजीसा ऊंठ जीवतो है जणै ऊंठ हाजर कर दूंला अर जे मरग्यो है तो उण रो ओठो (खाल) आपनै लाय र दूला। आप तो विराजो। उण बगत कवि गदगद होयग्यो। उणां एक दूहो कैयो
अमरो तो होज्यो अमर जबर रूपावत जात।
करणी देसी कंवरडा बणसी सारी बात।।
इतिहास साखी है कै अमरसिंहजी रै च्यार कंवर होया।अमरसिंह जीया जितै दासोड़ी करणी मंदिर हर नौरतां में सिलाड़ लेय र आवता।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी