आव योगिनी बण अठे

आज चाल आकास रो, आपां देखां छोर।
म्है थांनें देख्या करूं, थें देखो मम ओर।।१
मन री गति सूं मानुनी, आवौ मम आवास।
छत पर दोन्यूं बैठ नें, देखांला आकास।।२
गिण गिण तारां रातड़ी, आज बिताद्यां, आव!
अर दोन्यूं ल्यां नाप फिर, आभ तणौ उँचाव।।३
खोलूं जद जद आँखड़ी, अनहद औ आकास।
बंद पलक करतां थकां, सदा सखी !थूं पास।।४
आंख्यां सूं दिसै अवस, आली!अरुणिम आभ।
निजर बंद करतां मिल़े, थारौ दरसण लाभ।।५
नील गहन आकास री, बड़ी अनोखी बात।
रंग बिरंगी बादल़ी, सदा रावल़े साथ।।६
म्हारै मन आकास में, याद चंद्र सूं नूर।
आप सदा आता रहौ, पलकां पोल़ जरूर।।७
आव योगिनी बण अठै, बादल़ रै रथ बैठ।
मन री बातां मांडणी, थां सूं भर भर पेट।।
~~©नरपत वैतालिक