आवडजी रो चित्त इलोळ गीत
।आवडजी रो चित्त इलोळ गीत।
उमा रुप अनूप अवनि, आवडां लखि आदि।
बरण चारण जलम बाढी,आप किरती अनादि।
तौ अन्नादि जी अन्नादि अंबा अवतरी अन्नादि॥1॥
तौ धन्य जैसलमेर धरती,ग्राम चाळक गण्य।
साहुआं शाख तणो सुरज,मामडो कवि मन्य।
तौ धन्य हो जी धन्य,धारी देह उण धर धन्य॥2
शक अठासी आठसै सुद चैत मास सु चारु।
नमुं शुभ दिन तिथि नवमी,वार मंगळवार।
तौ अवतार जी अवतार,आवड इश्वरी अवतारजी॥3
लांगलां पर आदि लेकर ,सगत बहनां सात।
लोक परथम जलम लीनो,मामडा घर मात।
तौ विख्यात जी विख्यात,वसुधा कीरति विख्यातजी॥4
पीवणें अहि भ्रात पीधो,करी अद्भुत कत्थ।
अमर लोकसूं आण अमरत,रोडियो रविरत्थ।
तौ समरत्थ जी समरत्थ,सहोदर जिवाडयो समरत्थ॥5
सिंध जातां आप शगति,हाकडो महाराण।
चळू हेकण घाल चंडी,शोषियो सुरत्राण।
तौ अप्रमाण जी अप्रमाण,पी ग्या आप जळ अप्रमाण॥6
तेमडो खळ मार त्रिपुरा,जीत असुरां जंग।
थिरु परबत माथ थाप्यो,मात दुरगा मंढ।
तो नवखंड जी नवखंड,नामी आसती नव खंड॥7
आवडा रो सुजस अवनि,विमल है विस्तार।
पात कहिया सकळ परचां,सहज उकत्यां सार।
तौ साधार जी साधार,शगति सेवगाँ साधार॥8 ॥