आह्वान – कवि रिड़मलदान चारण

(छंद-नाराच/पंचचामर)
प्रचंड भुज्जदंड से,धरा अखंड तोल दे।
कराल रूप काल सा, त्रिकाल देख डोल दे।
भुला अतीत-रीत ना, निशंक जीत बोल दे।
पुकार आन-बान की, कृपाण म्यान खोल दे।
सँभाल शस्र अस्त्र को, उतार आज आरती।
पुकार युद्ध युद्ध की, प्रबुद्ध क्रुद्ध भारती
निनाद सख्त वक्त की, प्रत्यंग रक्त रोल दे।
पुकार आन-बान की, कृपाण म्यान खोल दे।
हुआ बलिष्ट पोष पा,बना लहू शरीर का।
रहे न कर्ज वीर वो, अनाज नीर क्षीर का
विशेष शेष देश का, चुका नि:शेष मोल दे
पुकार आन-बान की, कृपाण म्यान खोल दे।
नितांत आत्मसात ये करो सुबात राज़ की।
प्रपंच तख्त ताज का,विषाक्त हवा आज की।
हरेक घूँट घूँट में न कालकूट घोल दे।
पुकार आन-बान की, कृपाण म्यान खोल दे।
~~रिड़मलदान चारण ‘राज़’
झाँफली खुर्द, बाड़मेर (राज़)
आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए।
आभार हुकम