आईनाथ(तैमड़ै राय)री ओलग – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

पग पग ओरण डग डग परचा, सब जग सुजस सुणावै हो।
आद भवानी मात आवड़ा, अवलु थारी आवै हो।
दैवी हैलो दै।।(1)
वेद विधाता शेंष सुरसती, गणपत किरत गावै हो।
भुचर खेचर बावन भेरू, थारो हुकम वजावै हो।
दैवी हैलो दै।।(2)
ऊंचो देवल धजा ऊधरी, हरदम होरां खावै हो।
घोर नगारों निर्मल घाटी, गगन घुरावै हो।
दैवी हैलो दै।।(3)
तारंग झिलमिल तारा मंडल, बादल चंमर ढुलावै हो।
झुलरियै नवलाख जोगणी, थारी रास रचावै हो।
दैवी हैलो दै।।(4)
सात समाणी मात सांगीयों, धणीयांणी जग धावै हो।
नागांणै मढ राय नागणी, थारो रूप रचावै हो।
दैवी हैलो दै।।(5)
मोटो तीरथ तैमड़ो मां, भादरियो मन भावै हो।
तणवट गढ मे तखत तमारो, विरद वधावै हो।
दैवी हैलो दै।।(6)
राजा रंक दैवता दानव, मानव शीश नमावै हो।
चावल शक्कर भेंसा बकर, पूज चढावै हो।
देवी हैलो दै।।(7)
कालै डुंगर केहर गरजै, चारण चरजा गावै हो।
धोलै देवल भोपा धुंणै, थारी हाक सुणावै हो।
देवी हैलो दै।।(8)
खड़ग त्रशुल लोहड़ी खुफर, सिंह चढी दरसावै हो।
भूत पलीत चुड़ैल भयंकर, दुरत दबावै हो।
देवी हेलो दै।।(9)
आईनाथ रावली ओलग, बारट भॅवर गावै हो।
अन धन आनंद ज्ञान अपंपर, सेवग थारा पावै हो।
देवी हेलो दै।।(10)
~~कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)