साहित-खेत रो सबळ रुखाळो: अड़वौ – पुस्तक समीक्षा

‘लघुकथा’ साहित्य री इयांकली विधा है जकी दूहे दाईं ‘देखण में छोटी लगै (अर) घाव करै गंभीर’ री लोकचावी साहित्यिक खिमता नैं खराखरी उजागर करै। ओपतै कथासूत्र रै वचनां बंध्योड़ी पण मजला सूं इधको हेत राखती गळ्यां-गुचळ्यां अर डांडी-डगरां री अंवळांयां सूं बचती सीधी अर सत्वर सोच्योड़ै मुकाम पूगण वाळी विधा है- लघुकथा। राजस्थानी साहित्य अर संस्कृति रा जाणीजांण, राजस्थानी प्रकृति नैं परतख पावंडां नापणियां, वनविभाग रा आला अधिकारी श्री अर्जुनदान चारण adavoलघुकथावां रा खांतीला कारीगर है। आपरा दो लघुकथा संग्रै छप्या थका है। दोनूं मायड़भासा राजस्थानी मांय है। पैलो ‘चर-भर’ अर दूजो ‘अड़वौ’। ‘अड़वौ’ संग्रै मांय राजस्थानी जनजीवण, नीत-मरजाद, लोक-व्यवहार, लेण-देण, सेवा-चाकरी, मैणत-मजूरी, नीत-अनीत आद विषयां सूं जुड़ी 52 लघुकथावां भेळी है। बियां तो लघुकथावां धर्म-उपदेश, नीति-निदर्शन सारू चालती आई है पण आज लघुकथा साहित्य री अेक महताऊ विधा रै रूप में राज अर समाज री विसंगतियां, विद्रूपतावां, कुटळायां, अबखायां नैं उजागर करती सखरै अर सांतरै जीवण री सीख देवण रो काम करै। आर्थिक-आपाधापी, दृश्य-श्रव्य उपकरणां री भरमार, तेज भागती जिंदगी रै बिचाळै प्रबंधकाव्य, खंडकाव्य, उपन्यास, कहाणी, नाटक आद नैं पढण, सुणण री पोळाई कठै ? इयांकलै टेम में लघुकथा री उपादेयता अर प्रासंगिकता ज्यादा अहम हुज्यावै। अेक समै हो जद लघुकथा नैं आलोचकां चुटकलाबाजी अर चुहलबाजी रो नाम दे दियो पण समै री बलिहारी अर लघुकथा री फनकारी नैं देख वांई लोगां नैं आ बात कैवणी पड़ी कै लघुकथा चुटकलो नीं व्है’र कथाबीज है। लघुकथा थोड़ै में घणो कैवण री खिमता राखै, सूत्र अर संकेत में बात परोसण री जुगत राखै, राज-समाज री दूखती का दबती रग माथै सीधो हाथ धरण री पारखी समझ राखै।

श्री अर्जुनदेव चारण री लघुकथावां आम आदमी रै आमजीवण मांय घटण वाळी आम घटनावां रै बिचाळै उछळकूद करती कुटळायां नैं काबू करणै अर निसासा छोडती नैकी नैं नकटाई सूं सामनो मांडण री हूंस देवण वाळी सखरी लघुकथावां है। संग्रै री पैली ही लघुकथा ‘अेक्सपर्ट’ सिरैनाम सूं है। आज सरकारी दफ्तरां मांय फेल्योड़ै सूंक (रिश्वत) रै मायाजाळ में कितरा भोळाराम फाइलां सूं भचीड़ा खावता वर्तमान सूं भूत हुग्या पण कीं छे’ड़ो ई नीं है। लगैटगै साहित्य री हर विधा मांय इण समस्या माथै चिंता करीजी है। श्री चारण री इधकाई आ है कै वां इण समस्या नैं उजागर करण रै साथै इणरै अणमींत पसार री जड़ रो खुलासो करण रो सावजोग काम कर्यो है। इण लघुकथा रो नायक ‘जेठौ’ सरकारी योजनावां री तिसळणी तळाई में नीतर्योड़ै नीर री मटकी भरण री खेंचळ करतो आज रो आम बेरोजगार युवा है। बैंक सूं करज लेवण खातर उणनैं तैसील रै ‘नोड्यूज’ री दरकार है। वो फिरतो-फिरतो जूत्यां फाड़ल्यै पण नोड्यूज तो मिलै जियां ई मिलै। छेवट हार-थक’र दो सौ रिपिया सूंक रा देय आपरो काम करावै। अठै कथानायक रै मन में आक्रोश आवणो चाईजै, अन्याय रै खिलाफ आवाज उठावण री आंतरिक चेतना जागणी चाईजै, नाजोगी अर नीतबायरी व्यवस्थावां रै खिलाफ विद्रोह रो विराट स्वर गूंजणो चाईजै पण साहित्यकार तो समै रो कैमरो है, हुवै जिसी ई फोटो उतारै। समाज री विसंगति आ है कै जकै युवा साथै इयांकलो बरताव हुयो बो इण व्यवस्था रै खिलाफ खड़ो नीं होय’र उण व्यवस्था रो हिस्सो बणग्यो अर दूजै दिन सूं बो तैसील सूं ‘नोड्यूज’ बणावण रो अेक्सपर्ट मानीजण लागग्यो। श्री चारण री आ लघुकथा सिद्ध करै कै रिश्वत रै इण राफळरासै रै अणूंतै फैलाव री जड़ आ ई है।
‘बिण मैणत मिलज्याय जो, उणरो न दिखै मोल’ जकी चीज बिनां मैणत मिल ज्यावै उणरो मोल अर गुण आपांनैं ठा नीं पड़ै पण वा ई चीज जद पारकै घरां देखां तो उणरो मोल अर गुण दोनूं ई दुगणा लागण लागै। लघुकथा ‘भली लुगाई’ इणीं सच नैं प्रगट करै। गोबरराम आपरी घरनार नैं बांझड़ी अर बोछरड़ी कैवतो घर सूं निकाळद्यै। कई साल बीत्यां सताजोग सूं गोबरराम आपरै अेक भायलै साथै भैंस्यां री नासेट (गम्योड़ा पसुवां नैं ढूंढण जावणो) जावै अर हार्या-थाक्या अेक अणजाण घर में रोटी-पाणी सारू जावै। घर में दो टाबर खेलै। घरधणी घरै कोनी तो ई घरधिराणी टाबरां नैं कैय’र नासेटुआं नैं बैठाया अर चोखी तरियां भोजन करवायो। गोबरराम रो जीवसोरो हुग्यो। घर-गुवाड़ी, रमता टाबर, इयांकली लिछमी लुगाई। चळू करतां ई गोबरराम जोर सूं कैयो-‘टाबरां थांरी मा भोत भली लुगाई है’। बा लुगाई गोबर री बात नैं सुणै ही, होळै सी बोली कै ‘आ लुगाई बा सागण ई है, जकी नैं थे बांझड़ी अर नाजोगी कैय’र घर सूं निकाळ दी’ पण जे आज भली हुई तोई ठीक है। गोबरराम रो मूंढो फलको हुवै ज्यूं हुग्यो, मन में घणो पिछतावो लियां रवानगी ली। म्हारी निजर में गोबर आपरी अकल सूं बात करतो हुवैला कै –

दिन रहतां आई नहीं, अब बेकार अकल्ल।
काढी लिछमी बांझ कह, ‘गोबर’ बिगड़ी गल्ल।।

अठै आ बात मारकै री है कै लुगाई आपरी आईना अर आपरी गुवाड़ी रै धरम पर आपरी ऊंडी पीड़ नै हावी नीं होण दी, नीं तो बा गुवाड़ी में बड़तां ई गोबरराम नैं गाळ्यां काढती उणरी गत बिगाड़ देती पण साहितकार री सकारात्मकता आ है कै साप नैं ई मार लियो अर लाठी नैं ई सावजोग राखली।

संग्रै री पास, मुआवजौ, पराई अमानत, घाव में घोबो, खुरचण, दोस आद लघुकथावां सरकारी महकमां रै मकड़जाळ, जाळसाजी, धोखाधड़ी अर धींगामस्ती री पोल खोलै तो पछतावौ, सीख अर भूटको जैड़ी लघुकथावां जवान पीढी नैं देखादेखी सागो देख’र सासरो साजण री बावळी संगत सूं बचावण रा जाझा जतन करती छोटै आकार री बड़ी बातां है। आज री जवान पीढी आपरी धींगामस्ती, गुरूर-घमंड, खान-पान, रैण-सैण हर बात में लारली परंपरावां नैं रूढियां रो नाम देय सूगली अर बासी बतावतां आपरी न्यारी ई डफली बजावणी सरू कर दी। इण कारण आज समाज में दया, करुणा, क्षमा, संवेदना अर रागात्मकता वाळै चौतीणै कूवै री सगळी सीरां रुझगी अर पत-पाणी काठो परवारीजग्यो। श्री चारण री लघुकथा ‘सीख’ इयांकलै ई जवान पढेसर्यां री समझ अर अकड़ पर चेतावणी रै कोरड़ां रा सटीड़ देवतां सावळ मारग ल्यावण री खपत करी है। कायलाणा झील पर कीं जवान पढेसरी दळबळ साथै पिकनिक पर जावै। झील रै कांठै अेक अधेड़ आदमी, जकै री जोड़ायत बीमार हुवै, वां मोट्यारां सूं कीं आर्थिक मदद री गुहार करै पण धन अर जोबन गैला हुयोड़ा मदछकिया छेला किणरा हेला सुणै अर किण-किण रा दुख-दरद हरै। बै उण अधेड़ नैं अणदेख्यो करतां झील में सिनान करण कूद पड़्या। मोट्यारां रो लीडर वरुण पाणी रै छोळां में उथेळा खावतो हबहबी खावण लाग्यो। सगळा साथीड़ां रै थड़ा बंधग्या। हाय-तौबा करै पण बचावण री हिम्मत कठै ? बो अधेड़ आदमी पाणी में कूद्यो अर डूबतै वरुण नैं बारै ल्यायो। सगळां रै जीव में जीव आयो। वरुण उणरो आभार मानतां आपरै बटुवै सूं सौ रो नोट निकाळ्यो अर देवण लाग्यो। बो अधेड़ साफ नटग्यो, बोल्यो मिनख री ज्यान बचावणो म्हारो धरम है अर म्हैं धरम बेच’र रिपिया कोनी ल्यूं। बण सीधो तमाचो मार्यो कै म्हैं मिनखीचारो जाण’र आपसूं मदद मांगी पण थे कोनी दी कोई बात नीं पण म्हैं तो मिनखीचारो जाण’र इणरी ज्यान बचाई है, आगै सूं थे ई ध्यान राख्या। छोरां में अकल आयगी अर सगळां माफी मांगतां मतोमती उण अधेड़ री जोड़ायत रो इलाज करावण सारू सजै जिस्सो सैयोग कियो। रचनाकार री ऊंडी अकल नैं जुंवार कै वां इण भटकती जवान पीढी नैं आपरी भूल रो अैसास करावतां सनातन मूल्यां री सीख देवण रा जाझा जतन किया है।

संग्रै री दोस, गिंडक, आजादी, मां री ममता, मां, तलाक, घर कठै है आद लोककथावां नयी पीढी अर पुराणी पीढी रै बिचाळलै फासलै री ओळखाण करावती इणरै पोचै परिणामां रो संकेत करै। सास री आस माथै पाणी फेरती बहुआं, बहू रा सपनां नैं चकनाचूर करती सासुआं, मा-बाप रै भरोसै अर परिवार रै बिड़द रो गावटो करता बेटा-बहू, तुच्छ स्वारथां सारू रिश्तां रो गळो घोटतो दमघोटू माहौल रचनाकार री कलम में उबाळ ल्यावै अर बळतै काळजै आ कलम आज रै मिनख री करतूत देख’र उणनैं गिंडक सूं ई गयोगुजरो बतावण सारू मजबूर हुवै। श्री चारण री आ बदताई है कै वै अेकपक्षीय बात नीं कर’र दोनां पासां री विरोळ करी है। आपरी लघुकथा आजादी में आप बुजुर्ग पीढी नैं संकेतित करण रो सफल प्रयास कियो है कै पुराणी पीढी नैं नयी पीढी पर आपरा सिद्धांत अर आपरी मानसिकता थोपणी नीं चाईजै। वरन पुराणी अर नयी रै सांतरै समन्वय सूं जीवण नैं आणंदमयी बणावणो चाईजै।

आज रै समाज री सै सूं नाजोगी करतूत है ‘कन्याभ्रूण हत्या’। रचनाकार आपरी ‘अदल न्याय’ सिरैनाम वाळी लघुकथा मांय नायिका लीला आपरै कन्याभ्रूण नैं पटकावण सारू इतरी उंतावळी है कै घरधणी रै लाख समझावण पर ई मानै कोनी। छेवट अेक प्राईवेट सफाखानै में भ्रूण गिरावण सारू जावै अर केस बिगड़’र लीला री लीला पूरी हुज्यावै। बा मरती-मरती आपरै मोट्यार नैं कवै कै ‘म्हारै पाप रो फळ म्हनैं मिलग्यो। म्हारी निजर में आ लघुकथा जे थोड़ी सी आगै बधती अर लीला रो भ्रूण गिरायां उणरी बच्चादानी रै खराब होवण अर आगै सूं टाबर नीं होवण री बात करता। दिन बीत्यां दूजां रै घरै बेटियां री किलकार्यां अर रौनक दिखावतां वांरै लीला अर उणरै परिवार रै पछतावै नैं उजागर करता तो और प्रभावी बणती। खैर!
संग्रै री ‘छैली तारीख’ लघुकथा संवेदनहीण समाज री स्याह काळी सूरत आपणै सामी राखै। जंगळायत रै अफसर कानीं सूं उणरै प्रमासन री खुसी मांय राखीजी बीआईपी पार्टी। उणमें दारू पीवणियां री मैफल सज्योड़ी। मूंघी यूं मूंघी बोतलां खुलै। गप्पां रा गडींदा मारता सगळा आप-आपरी हांकण में लाग्योड़ा। इण बिचाळै ई अेक छोटै कर्मचारी रै घर सूं फोन आवे अर सूचना मिलै कै उणरो टाबर हड़क-फड़क बीमार व्हेगो अर अबार रो अबार सफाखानै लेजावणो पड़सी। वो आपरी जेगां टंटोळै। जेब खाली। वो आपरै अफसर, जिकै रै अठै पार्टी है, सूं अरज करै कै उणनैं पांच सौ रिपिया हाथ-उधार दे दिराओ, जिणसूं टाबर रो इलाज सरू करवा सकूं। कथानक में अेकदम मोड़ आवै। अफसर मूढो मचकोड़तो साफ-साफ नट ज्यावै कै आज महीनै री छेहली तारीख है। म्हारी जेब मांय तो अेक रिपियो ई कोनी। बापड़ो वो कर्मचारी दूजै जुगाड़ लागो पण दूजै ई पल गार्ड आय’र अफसर नैं सूचना देवै कै ‘साब बीयर खतम होगी’। अफसर बिना कीं सोच्यां फट आपरी जेब सूं पांच सौ रो नोट काढ’र गार्ड नैं पकड़ावै अर बीयर रो प्रबंध करण सारू आदेस देवै। अबै सोचो इयांकला नाजोगा अर नीतबायरा अफसर, टाबर री दवाई सूं बेसी आपरी दारू नैं गिणै, आपरै मातहत कर्मचारी रै प्रति कोई भावनात्मक लगाव नीं, वांरै प्रति सम्मान कठे सूं आवै। कियां ओ देस विकास रै मारग आगै बढै।

बेरोजगारी लारला कई दसकां सूं आपणै देस री मोटी समस्या है। इणरै कारण समाज रै हर वर्ग मांय आक्रोस अर खीज रा भाव है। इण कारण युवा पीढी राज अर समाज दोनां रै प्रति निष्ठावान नीं बण पा री है। राज रै तो इण कारण कै राज नौकरी री व्यवस्था नीं करै अर समाज रै इण कारण कै नौकरी नीं तो समाज छोकरी नीं देवै। मोकळा पढ्यां-लिख्यां नैं ई कोई इज्जत नीं मिलै, जद ताणी कै बो कोई नौकरी नीं लाग ज्यावै। आरक्षण री व्यवस्था अेक पक्ष नैं कीं सौरप दी तो अनारक्षित वर्ग रा युवावां मांय कुंठा ई पैदा करी है। योग्यता रै बावजूद जिण री अणदेखी हुवै तो पछै चिंडाळी उठणी स्वाभाविक है। संग्रै री ‘बाप रौ फर्ज’ लघुकथा इण समस्या नैं पुरजोर उठावती इणरै दुष्परिणामां सूं रूबरू करावै। कथानायक सुगनसिंह राजपुरोहित रेलवे रो छोटो कर्मचारी। अेक बेटो, अेक बेटी। बेटी नैं पढा-लिखा’र नौकरी लाग्योड़ै होणहार जवान नैं परणाय दी। वा सासरै में सौरी-सुखी। बेटो पढाई में तेज। उधारा-पारा उथळधड़ा करतां टाबर नैं बीएससी अर बीएड करवाय दी पण नौकरी नीं मिली। टाबर चिड़चिड़ो रैवण लागो। माईतां नैं घणी चिंता। रात-दिन टाबर उदास रैवण लागों टाबर उदास तो माईत तो रूंआसा व्है जावै। सुगनसिंह रै रिटायरमेंट में अेक साल् घटै हो। बो आपरा कागजां रै काम दफ्तर गयों बठै अेक जवान नौकरी पर ड्यूटी चढण सारू कागज बणवा रैयो हो। सुगनसिंह पूछ लियो कै भाई नौकरी तो अबार आई ही कोनी। ओ टाबर नौकरी किया लाग्यो। बाबू बतायो इणरो बाप रेलवे रो नौकर हो अर नौकरी करता अेक्सींडेंट सूं मरग्यो जद उणरी ठौड़ इणनैं अनुकंपा नौकरी मिली है। दफ्तर सूं निकळतां ई सुगनसिंह रो भी अेक्सीडेंट होग्यो अर उणरै टाबर री नौकरी रो मारग खुलग्यो। संवेदणसील आदमी इण कथानक नैं पढ’र गमगीन व्है जावै पण आज रो साच ओ ई है। अठै अेक बात और ध्यान देवण वाळी है। ओ तो बाप खुद आपरै बेटै री नौकरी सारू मौत कबूल ली, नीं तर इयांकली घटनावां ई घणी हुवै कै बेटो आपरी नौकरी लागण सारू रात रा सूत्यै बाप नैं मारण रो पाप करता ई को चूकै नीं। बंगाल अर बिहार री इयांकली कई घटनावां अखबारां में पढी। सोचां जणां थरणां कांपै कै इत्तै बेदर्द अर दमघोटू माहौल में रिश्तां पर दुधारी चला’र जकै जवान नौकरी सूं नातो जोड़्यो है, वो उण नौकरी नैं निष्ठा सूं कर सकै ?, खुद आपरी निजरां में ऊंचो उठ सकै ? आपरै लुगाई-टाबरां पर भरोसो कर सकै ? उत्तर साफ है वो सदा ई संकित अर कुंठित रैसी।

‘विड्राल’ अर ‘ब्लैंक चैक’ दो व्यंग्यात्मक लघुकथावां है, जकी आं सबदां रै अरथ मांय सूं ई मर्म निकाळै। विड्राल री कथा में अेक निर्दलीय उम्मीदवार नैं परचो विड्राल करण सारू निवेदन करै तो निर्दलीय रो सीधो सो जवाब ओ है कै ‘विड्राल रै बदळै विड्राल है’। मतलब कै थे बैंक खातै सूं रिपिया निकाळण वाळो विड्रोल म्हनैं देवो अर म्हैं चुणाव रो परचो उठावण रो विड्राल थांनै देवूं। आज री राजनीति रै रुळपटरासै रो खुलासो करण रै साथै प्रजातंत्र री रुणकती रमझोळ रो झोह उतार’र सागण सकल उघाड़ण रो काम कथाकार कियो है। संग्रै री ‘ब्रेकिंग न्यूज’ लघुकथा सामाजिकां री मानसिकता रा दो आयाम अेकैसाथै उघाड़ै। कथा रो लबोलवाब ओ है कै रामगोपाळ नाम रो अेक जवान है, जिणनैं फोटोग्राफी रो शौक है। अेक रात रा बो देखै कै दो लफंगा, अेक डावड़ी सूं छेड़खानी करता अणूंती उधम करै। डावड़ी बापड़ी रोळाकूको करती बचावण री गुहार लगावै। रामगोपाळ आपरै कैमरै में ओ सगळो दरसाव कैद कर लियो। आसै-पासै रा लोग रोळो सुण’र आयग्या अर लफंगा भाजग्या। पुलिस आयगी, मीडिया आयगी। मीडिया वाळां नैं ठा पड़्यो कै रामगोपाळ नाम रै मोट्यार कीं फोटूवां उतारी। वां रातोरात रामगोपाळ सूं संपर्क कर्यो। उणनैं डिनर पर बुलायो। दो अेक पैग सावळसर दिया अर कैमरै सूं फोटूवां अर वीडियो लेय’र पार बोल्या। चैनल वाळा घोषणा करतां उण सीडी नैं दिखाई कै वांरो रिपोर्टर तो बठै त्यार ई हो। लाइव फोटूवां देखो। रामगोपाळ री ई नींद खुली। टीवी री फोटूवां देखतां ई आपरो कैमरो संभाळ्यो पण उणमें तो फोटू अर वीडियो सै डिलिट हा। रामगोपाळ ब्रेकिंग न्यूज देखतो दिमाग ब्रेक करै। इण कथा रो पैलो आयाम तो मीडिया वाळां री गंदी पोपटलीला रो खुलासो है पण दूजो आयाम ओ छुप्योड़ो है कै रामगोपाळ जिसा युवा लड़की री इज्जत बचावण सारू प्रयास करण री बजाय फोटूवां खेंचण में आपै जीवण री सफलता मानैला तो समजा गर्त में जावैईला। ‘धर जातां ध्रम पलटता, त्रिया पड़ंतां ताव/ तीन दिहाड़ा मरण रा कवण रंक कुण राव’ वाळै मूल्यबोध सूं मंडित समाज फोटूवां उतार’र फर्ज पूरो करै तो समै री बलिहारी है। अेक दब्योड़ो सो पण साचो संदेस ओ भी है क ैजे रामगोपाळ दारू नीं पींवतो तो उणरै साथै वा घटना नीं घटती।

बूढा-बडेरां रै प्रति घटती श्रद्धा अर सम्मान री समस्या नैं उजागर करती ‘सासू मां’ सिरैनाम वाळी लघुकथा में मेनका नाम री बहू है जकी आपरै मोट्यार नैं दबाव में लेय’र आपरी सासू नैं वृद्धाश्रम भिजवा देवै। बूढी मां नैं भेजतां बेटो दिनेस घणो दुखी हुयो पण के जोर। भांवांजोग सूं दो-च्यार दिनां बाद दिनेस बाग में घूमण गयो तो बठै उणरी बूढी सासू आंसुड़ा झारती आपरै जंवाई नैं बतावै कै उणनैं बेटै-बहुवां घर सूं काढ दी। वृद्धाश्रम में जग्यां खाली कोनी। दिनेस आपरी सासू नैं घर ल्यावै। जद दिनेस अर उणरी सासू घर कनै पूगै तो मेनका वांनै देखतां ई जोर सूं रोळो करे कै ‘इणनैं पाछा क्यां ताणी ल्याया हो, म्हारै घर में कोई जग्यां कोनी, अबार री अबार पाछी लेज्यावो नीं तो म्हैं कोई कूओ-खाड कर लेवूला।’ दिनेस मेनका नैं समझाई कै आ म्हारी नीं थारी मा है। जे चावै तो राख’र नीं चावै तो थारी मरजी। मेनका लजखाणी पड़ी अर आपरी भूल सुधारतां आपरी सासू नैं भी वृद्धाश्रम सूं पाछी ल्यायी अर दोनूं मावां री सेवा कर’र आसीस पाई। इणमें आ बात खटकै कै मेनका आपरी मां नैं नीं ओळख’र सासू रै अबळेखै में रोळो सरू कर द्यै। बेटी आपरी मां नैं नेड़ै सूं देख’र ओळखण में भूल कियां कर सकै। इणनैं जे इणभांत मोड़ दीरीजतो कै दिनेस बारलै कमरै में सासू मां नैं बिठा’र रसोई में खड़ी मेनका नैं सूचना देवतो के माजी नैं ल्यायो हूं। माजी रै मतलब में ऊकचूक होय’र मेनका गाड़ा करती तो और रोचक लागती। खैर! संदेस बेहद सांतरो अर सटीक है।
जठै तांई श्री चारण री भासाशैली रो सवाल है साव सीधी अर सरल भासा में सीधी-सीधी बात कैवण रा अभ्यासी श्री अर्जुनदानजी सांप्रत जीवण मांय ई इणीं ढाळै रा मिनख है। कोइ्र पळोथण लगावणो वांरी आदत में नीं है। इण वास्तै वांरै लेखण मांय भी वा सादगी अर साफगोई निगै आवै। आपतै मुहावरां अर लोकोक्तियां रो प्रयोग जथाठौड़ कर्यो है, इणनैं कीं और बढायो जा सकै लोकोक्तियां अर मुहावरां मांय वा ताकत है कै वांरै माध्यम सूं मोटी सूं मोटी बात छोटै सूं छोटै सबद-सांचै में बांध सकां। रचनाकार नैं चाईजै कै वो सबदां रो चयन ध्यान सूं करै। अेक ठौड़ श्री चारण लिखै कै ‘वै ढांढा पाळण रो काम करै’ (पृ. 36)। ढांढा सबद आथूणै राजस्थान में तो अहीणां अर रोळखोळ पसुवां सारू काम में लियो जावै। जठै ताणी पसुपाळण री बात है तो म्हारी निजर में ढांढां री जाग्यां सांसर, द्राव, पसु, गायां-भेंस्यां आद नाम लिया जावता तो ठीक हो। इयांई अेक सबद स्थानीयता रै प्रभाव सूं सगळै ई बिगड़ग्यो अर बो है कपड़ै सीमणा री ठौड़ कपड़ा सीड़णा, सीड़ावणा। पृ. 58 पर कपड़ा सीड़’र सबद रो प्रयोग है बठै कपड़ा सीम’र का पछै सील’र करो तोई ठीक। इयांई अेकलपीणौ मिनख (60) सारू अेकलिया का अेकलपो, पहिड़ा (62) सारू पेड़ा, चक्का, कणूबा (81) सारू कुटम, कडूंबो, अर जळैकार (80) सारू जळजळाकार आद सबद प्रचलित है। स्थानीय प्रभाव सूं उबरतां मानकीकरण कानी पावंडा राखण रो समै है, इणनैं ध्यान मंे राखण रा आपां सगळा जाझा जतन करां।

सार रूप में पूरी पोथ टाबरां सूं लेय बूढा-बडेरा सगळां नैं आपरी व्सतु में समेटती सगळां सारू संस्कार अर सीख रो सराजाम करती समान रूप सूं टाबरां, बडेरां, मरदां अर लुगायां सगळां सारू उपादेय है। कोई पण कथानक अश्लीलता का वासना रै नेडै ई नीं है, नींतो आजकाळै फिल्मां सूं साहित्य में ई ओ रोग आयग्यो कै बिनां प्यार, धोखै अर अनेतिक-नाजायज संबंधां रै कथानक कथानक बण ई नीं सकै। पण बधाई देवूं श्री चारण नैं कै वां इण रो गनैं नीं लगायो अर साफ-सुथरी भासा मांय साफ सुथरो संदेस देवण रो सरावणजोग काम कर्यो है। पोथी री लघुकथावां विविध विषयी, विविध आयामी अर मनरंजक है, काळजै री ऊंडी कोरां बधाई।

अड़वो अरजुनदान रौ, खरौ रुखाळण खेत।
साहित खेती सरसवै, हिय उपजावै हेत।।

~~- डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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