अजै ई कर रह्यी है कल़ाप कविता!!

विश्व कविता दिवस रै टांणै

आद कवि रै 
करुण क्रंदन रै संजोग सूं
उपजी कविता !
अजै ई कर रह्यी कल़ाप!
कणै ई बुद्ध नै
थापण कै
कणै ई
उथापण रा!!
कर रह्यी है तरल़ा
कणै ई वामपंथ नै खंडण
कै
कणै ई
दक्षिणपंथ नै मंडण
रा!!
अधरबंब में अल़ूझी
कर रह्यी है
कदै ई दयानंद नै साचो कै
कदै ई थरप रह्यी है
कूड़ रो पूतलो!!
अर
हांफल़ियोड़ी
धूतां री बस्ती में
सोझती फिरै है
साच रा सैनाण!!
संभाल़ती फिरै है
संवेदना रो सदन।
शून्य में ताकती
जोवै है
मिनखपणै रै मारग रा ऐनाण!!
बांटती बगै है
संपत में सबां रै
सीर रो
सुभग संदेश।
बुझावती बैवै है
धर्मांधता रा धपल़का
देती जावै है
हिंवलास
हार्योड़ै हियै में
भरती जावै
हीमत रा कोठार।
मिटावती जावै है
भ्रम रै भंतूल़्यै सूं
उपजी
अंतस री
खरास रा बीज।
खीझ रै हरण रा
कर रह्यी है जाझा जतन!!
अजै ई कर रह्यी है
कल़ाप
काढ रह्यी है नितार
बतावण रो
कै
साचो राम हो कै
रावण !!
अर
थोड़ो फूंकारो आयां!!
बड़ ज्यावै
नखराल़ै नैणां में!
अर
अमूंझ्यां सास!!
भूखै रै आंतरां में
दीसै है
काटां में अल़ूझी
गाडर रै उनमान कविता!!

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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