अन्नदाता इणनैं ई राजपूत कैवो!

राजस्थानी रो ओ दूहो कितरो भावप्रवण अर वीरोचित्त भाव जगावणियो है-
कंथा कटारी आपरी, ऊभां पगां न देय।
रुदर झिकोल़ी भुय पड़ै, (पछै)भावै सोई लेय।।
इण दूहै नै आप माथै चरितार्थ करणियो मारवाड़ धरा रै गांम कसारी रो चांपावत जोरजी लोक रसना माथै चावो नाम।
बात यूं बणी कै महाराजा जसवंतसिंह (द्वितीय) रै दरबार में किणी विद्रोही राजपूत नैं बेड़़ियां सूं जकड़र सिपाही लाया। दरबार मोद करतां कैयो कै “ओ जसवंतसिंह रो राज है! लांठां -लांठां नैं पाधरा करदे। इणनैं कांई केड़ै तुरमखां नैं म्हारा सिपाही पकड़र ले आवै।”
जोरजी कनै ई ऊभा हा। उणां कैयो “हुकम! म्हनैं ओ राजपूत नीं लागै जे राजपूत होवतो तो मर पूरा देतो। इयां टोगड़ियै दांई बंधियोड़ो नीं आवतो।”
दरबार कैयो “बै भल़ै कैड़ा राजपूत होवै ? जिकै जोधाणनाथ सूं टकर लेवै। आ म्हारी हेनरी मार्टिन बंदूक दीसै !”
“हुकम राजपूत तो टकर लेता ई रैया है। इयां तो मरिया बंधिया नीं आवै!” बात बधगी। जोरजी विद्रोही होयग्या।
दरबार ऐलान करा दियो कै जोरजी नैं मारणा नीं, जीवता पकड़णा है। घणा ई जतन किया पण पार नीं पड़ी। ऐलान होयो कै जको ई जीवता पकड़ावैला उणनै जागीर दी जावली। जोरजी रै खैरवा ठाकुर गुमानसिंह सूं मित्रता। एक दिन उठै ठैर्योड़ा। खैरवा ठाकुर घणो दारू पाय उणां रा सारा शस्त्र-पाती लुका दिया। गढ रै च्यारां कानी घेरो होयग्यो।
हाकदड़बड़ सूं जोरजी ई जागग्या। उणां नैं ठाह पड़ग्यो कै म्है घेरीजग्यो हूं। तोई ओ वीर विचलित नीं होयो। लोगां कैयो जोरजी समर्पण करदो। पण जोरजी तो मोत नैं तांणियां साथै राखतो बो किसो मोत सूं डरै। मुकाबलो कियो। हेनरी मार्टिन रा छत्तीस घाव लागा।
मरण नैड़ो जाण जोरजी जोर सूं बोलिया “रै अठै कोई चारण होवै तो म्हारै कनै आवै।”
उण बगत गढ में बीजल़ियावास रा अमरजी आसिया उठै होता। बै आया। देखै तो घावां सूं खलकती गंगधार सूं सांपड़ीजतो वीर जोरजी आपरै हाथां सूं आपरा पिंडदान कर रैयो है। खुद रै हाथां सूं खुदरा पिंडदान करणो कोई मामूली वीरता रो काम नीं हो। ज्यूं ई अमरैजी कैयो हुकम हूं अमरो आसियो! आदेश करो। जोरजी कैयो “म्हारो सगल़ो गैणो उतार र ले लिरावो!”
अमरैजी कैयो “हुकम ओ आपरो मोटापणो है! पण इणगत रो गैणो चारण नीं लेवै। आप फरमावो तो किणी बामण नैं हेलो करूं।” करो। बामण नैं बो पूरो गैणो जोरजी दान कियो, जिको उणां रै पैरण नैं हो।
जोरजी कैयो “बाजीसा जेड़ी वीरता देखी है बैड़ी लोगां नैं बतावजो।” इतरी रै साथै ओ महापराक्रमी वीर, वीरगत नैं पायग्यो। पण टोगड़ियै दांई नीं पकड़ीजियो।
अमरोजी खुद कवि नीं होता। बै पांचेटिया रा आढा पदमजी नैं पूरी हकीकत बताई। पदमजी ‘जोरजी चांपावत री झमाल’ बणाई। आ रचना वीररस सूं ओतप्रोत है। काव्य जगत में घणी चावी है। एक उदाहरण –
डरनैं ससतर नाखदै, कायर जिका कपूत।
मरणा सूं संकै मुदै, जका किसा रजपूत।।
जका किसा रजपूत, इसी मन आदरै।
बण बिखमी जुधवार, पूरी पत पादरै।
पटकूं ससतर परा, तो लछण लागसी।
भाखै जोरो भड़ां, भरोसो भागसी।।
दूजै घणै चारण कवियां रा गीत दूहा है जिणां में इण मारकै महाभड़ री वीरत रा वारणा मंडित है –
ऊगै उर डोराह, थह थाहर रज रज थयो।
जग जाहर जोराह, नाहर गोपीनाथ रा।।
खाग बजाई खैरवै, बड कट हुवो बरंग।
निज भड़ गोपीनाथ रा, रंग हो जोरा रंग।।
एक गीत रो एक दुहालो-
जोरा खैरवै जड़ नाल़ जंजीरां, असमर झीक उडाड़ै।
चाढ धकै लेगो चांपावत, प्रसण कितां दल़ पाड़ै।।
ऐड़ै वीरां रै पाण ई ओ कैताणो चालै ‘मारवाड़ नर नीपजै’
~~गिरधरदान रतनू दासोडी
बहुत बढ़िया कविता की रचना की गई है, जोरजी चम्पावत के लिए
बहुत ही अच्छी रचना है। जोरजी चंपावत री सा