आशिया प्रभुदानजी भांडियावास !

आशिया प्रभसा रो जसौल ठिकाणै म सदा सनातनी सीर, रावऴसा व बाजीसा एक बीजा रा दुख सुख रा साथी, बाजीसा न देखियां बिना रावऴसा ने चैननंई मिऴै अर बाजीसा रो बीजी जागां मन नीं लागे।
एकर प्रभसा सियाऴा रा दिना आपरै घरै एक तगड़ो तियार हुयैड़ो खाजरु, संधीणा री सोच अर करियो अर आपरा कीं साथियां ने भी निमतिया, साथी वांरी कूंत हूं घणा पूगग्या, बीं मां सूं आधे सूं घणो तो रात ने ई जिमकायगा व बचियौड़ा ने एक ऊंची जागां टांक दियौ अर बै लोग निंशंक सोयग्या, रातै एक मिनड़ी आयर बचियौड़ा भाग ने खायगी, प्रभसा रै संधीणा री मनसा मन में ई रैयगी, भाई सैण पाड़ोसी तथा भायला बाजीसा ने संधीणा रा ताना देवण लागा।प्रभसा ईरा उपाय में जसोल रावऴसा कने एक गीत लिखर ऊंठ सवार रे साथै भेजियो।
।।गीत।।
कीनो थौ ऐक गोऴिये कवियण,
चोखो ताजौ देख छलौ।
पी मद, जीम अनें बेपरवा,
भायौ मन आरामभलौ।।
बाड़ै जाय सू गयौ बीदो,
भूरो नींद भलोड़ी।
आ गई रात आवतां आधी,
ऊंघ म्हनैं ही ओड़ी।।
मांजर चख उण वार मजाऴी,
भख लेवण तक भाऴी।
म्होटी चोर मांस री मनड़ी,
बनड़ी घोघड़ वाऴी।।
बद पख पौह, दसम निस वेऴा,
घण पुऴ वजियां ऐक घड़ी।
थऴवट कूद झूंपड़ै थांबै,
चेजो करबा काज चड़ी।।
विध इंतजांम टांकणै वाऴौ,
रोंचै पैलां देख रई।
चरबी खाय अनें कर चुड़दा,
गुड़दा दोनूं खाय गई।।
न्हाखी फेर स्याखरी नीची,
बिच में बांनी।
डोऴा काढ ऊलड़ी डाकण,
कंध मूऴां रै कानी।।
जीमी तोड़ कातिया झुरड़े,
करड़ो अनरथ कीनो।
ढकणी न्हाक माटली ढूकी,
पांणी वऴती पीनो।।
रावऴ जसोल तणा सुण राजा,
ऐक शिकायत ऐड़ी।
वकवो कोस आठ पर वणियौ,
करणी वाहर कैड़ी।।
मणियड़ देस तणां तूं मालक,
थहै फौजबऴ थांरी।
बिण में बसै रात दिन बा तो,
मुलजिम दुसमण म्हांरी।।
मालां छात जोरसी म्हांरौ,
कमधज न्याव करीजै।
उण रै करौ दया जो ऊपर,
दूजो बकरो दीजै।।
कागज लेय ओठी जसोल पूग रावऴसा ने झलायो, पढर रावऴ खूब हंसिया अर ओठी रै साथै ऐक तगड़ो बाकर बारठ जी बाजीसा कनै भेजियो।
~~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर (राज.) द्वारा प्रेषित