अष्टपदी – किशोर सिंह जी ‘वार्हस्पत्य’ कृत
श्री करनी सुख करनी, अजरामर ए !
आदि शक्ति अवतार, जय देवेशि जये।।1 ।।
विश्व विमोहन कारणि, भवतारिणी ए !
जय जय त्रिगुणातीत, जय देवेशि जये।।2।।
जय महिषासुर मर्दिनि, सुकपर्दिनि ए !
मुण्ड सुशोभित पाणी, जय देवेशि जये।।3।।
गोधन संकट नाशन, हरि आसिनि ए !
सप्यो ग्राम साठीक, जय देवेशि जय ।।4।।
पेथड़ उदर विदारणि, भय हारणी ए !
दिय दशरथ बिवुधत्व, जय देवेशि जये।।5।।
कीन्हो कान विनाशन, खल त्राशिनि ए !
राज्य दियो रणमल्ल, जय देवेशि जये।।6।।
बख्त कियो रुज मुंचित सुर अंचित ए !
शमित उदरगत शूल, जय देवेशि जये।।7।।
भक्ति देहु अनपायनि, वरदायनि ए !
‘पागल’ करत प्रणाम, जय देवेशि जये।।8।।
~~किशोर सिंह जी ‘वार्हस्पत्य’