अठै ! कै उठै !!

जोधपुर राव मालदेवजी भायां नै दबावण री नीत सूं मेड़ता रै राव जयमलजी नै घणो दुख दियो। जयमलजी ई वीर अर भक्त हृदय राजपूत हा, उणां सदैव इण आतंक रै डंक नै अबीह होय झालियो।
मेड़ता माथै राव मालदेवजी आक्रमण कियो, उण बखत जयमलजी रा भाई चांदाजी मेड़तिया ई मालदेवजी रै साथै हा। उणां, उण बखत किनारो ले लियो जिणसूं मालदेवजी नै थोड़ो शक होयो। मेड़तिया ऐड़ा भिड़िया कै जोधपुर रा पग छूटग्या। नाठतां आपरो नगारो ई पांतरग्या। जिणनै जयमलजी सनमान सैती आपरै भांभी साथै लारै सूं पूगतो कियो। गांम लांबिया कनै जावतां उण भांभी रै मन में आई कै एकर नगारै माथै डाको देय देखूं तो सरी कै बाजै कैड़ोक है!! उण कड़ंद! कड़ंद !! डाको दियो जिणनै सुण मालदेवजी भल़ै ताकड़ा पग दे गढ में बड़र सास लियो। भांभी आय नगारो सूंपियो अर पूरी बात री ठाह लागी जणै रावजी मन में लचकाणा पड़िया। उण बखत किणी कवि कैयो-
जयमलजी जपियो जयमाल़ो!
भागो राव मंडोवर वाल़ो।।
जोधपुर सूं रोजीनै री राड़ अर ऊपर अकबर सूं अदावदी बढ जावण सूं उथप र जयमलजी चितौड़गढ़ जावणो ठीक समझियो। मेड़तो खाली कर र आपरो लाव लशकर लेय चितौड़ बहीर होया।
जयमलजी रो साथ भाखरां नै चींथतो, बांठकां नै झूड़तो चितौड़ कानी जावै हो। एक विकट घाटी आई जणै उणांनै लागो कै भाखर रा भोमिया भील उणां रो मार्ग रोक ऊभा है।
मेड़तिया तो मरणो ईज जाणता !! ऐ डरणो कै नाठणो तो सीखिया ई नीं हा। किणी कवि कैयो ई है-
मेड़तिया जाणै नहीं मुड़णौ,
भिड़णो इज जाणै भाराथ!!
सपड़ाक दैणी तरवारां निकल़ी!! मरण रो मतो कर मेड़तियां आपरै धणी साम्हो जोयो!! उणां नै लागै कै रावजी रै मूंडै माथै कोई सल़ नीं है!! जणै पूँछड़ी माथै पग आयां नाग छिड़ै ज्यूं छिड़्योड़ां राजपूतां पूछियो-
“कांई हुकम अठै! कै उठै!!”
जयमलजी कैयो-
“अठै नीं ! उठै!!”
अर मेड़तियां आपरै कनलो थोड़ो-घणो जको माल-असबाब हो बो बोलां-बोलां उण भीलां रै सरदार नै सूंप दियो !!
भीलां नै तो धन सूं मतलब हो उणां धन री गांठड़ी लेय साथ नै आगै जावण दियो।
भील ज्यूं ई गांठड़ी खोलण लागा तो उणांरै सिरदार कैयो “गांठड़ी मत खोलजो!! आपां ऊंधो काम कियो!! थां सुणियो नीं कै उणां आपरै धणी नै पूछियो कै अठै! कै उठै!! आ बात कोई रहस री है!! नीं तो ठालाभूलां तरवारां काढी अर भंवारा तणका किया ! कांई थे मानो कै रातै कस्सां वाल़ा आपांरै हाकलिया ढूला होय उडै!! उणां उठै सुणतां ई माठमनां तरवारां पाछी म्यानां में घाली!! रुको। आ गांठड़ी म्हनै देवो!!”
बो भील सिरदार आपरै घोड़ै चढ, आपरो घोड़ो दड़बड़ां-दड़बड़ां मेड़तियां रै लारै दाबियो!!
घोड़ै रा पौड़ सुण मेड़तिया सचेत होया जितै घोड़ो आय उणां भेल़ो होयो।
भील सिरदार जयमलजी रै पाखती आय पूछियो कै-
“आप सही-सही बतावजो कै अठै! कै उठै!! रो कांई मतलब ? थे इतरा कंवल़ा दीसिया नीं जको म्हांरी हाकल सूं डरर धन सूंपदो!!”
जयमलजी कैयो-
“भाई तैं पूछ लियो जणै बताय दूं कै म्हारै राजपूतां पूछियो कै अठै इतीक चंदगी कारणै मरां कै उठै चितौडग़ढ़ री रुखाल़ी करता अकबर सूं अड़र मरां!!
जणै म्है कैयो कै-
ई हाथरै मैल खातर अठै कांई मरां ! आपां तो वीरभोम चित्तौड़ रा मौड़ बणांला!!
आ सुणर उणां गांठड़ी तनै झलाय दी ! बाकी काकड़िया इतरा कंवल़ा थोड़ाई है!!”
जयमलजी रै इतरो कैतां ई उण भील सिरदार गांठड़ी उणां रै पगां में मेलदी अर कैयो-
“वडा सिरदार माफ करजै तूं म्हांरी मातभोम री रक्षार्थ मरण जावै अर म्हे इतरा नाजौगा निकल़िया जको एक तीर्थ जात्री ई नै लूटां!!
आपांरी भुगत भेल़ी है, संजत साथै है!! हालो, म्हे ई थां भेल़ा चितौड़ ई हालांला!!”
जयमलजी चितौड़ आया जठै राणा उदयसिंहजी उणांनै बदनोर ठिकाणो दियो।
चितौड़गढ़ री अडगता अर स्वाभिमान सूं खार खाय अकबर आपरी लाखां री संख्या में सेना चितौड़ माथै मेली अर खुद ई आयो।
उण बखत उदयसिंहजी सिरदारां रै कैणै सूं सुरक्षित जागा गया अर गढ री कूंचियां जयमलजी नै भोल़ाई!!
जयमलजी चितौड़गढ़ अर रैयत नै जिको धीजो दियो बो आज ई अंजसजोग है!!
उणां गढ नै कैयो कै-
हे चितौड़! तूं जितै तक डरूं-फरूं कै चल़ विचल़ मत होई जितै तक म्हारो माथो खंवां माथै है उतैतक थारा कांगरा साबत है!!
इण सतोलै आखरां नै किणी कवि कांई रूपाल़ा भाव दिया है-
चवै एम जैमाल चितौड़ मत चल़चल़ै,
हेड़ हूं अरी दल़ नदूं हाथै।
ताहरै कमल़ पण चढै ना ताइयां,
माहरै कमल़ चे खवां माथै!!
बांकीदासजी आपरी रचना ‘भुरजाल़ भूसण’ में लिखै कै उण जयमलजी राजपूतां नै संबोधित करर कैयो कै उण राजपूत नै फिट है जको लोभ कै लालच में आय आपरै गढ री कूंचियां दुसमणां नै सूंपदे!! ऐड़ै राजपूत रो मूंडो देखियां ई राजपूत धरम रो खोह है-
केवी नै गढ कूंचियां, सूंपै छोड सरम्म।
मुख ज्या़रा देख्यां मिटै, धर रजपूत धरम्म।।
जद पातसाही सेना गढ घेरीजियो उण बखत मेड़तियां री वीरता वारणाजोग ही। सिसोदियां सूं पाऊंडो आगै ऐ वीर मरण अंगेजण अर लूण उजालण नै आखता पड़ै हा। जयमलजी तो अदम्य साहस बतायो ई पण उणां रै भाई ईसरजी ई जको पराक्रम बतायो बो ई गीतां-दूहां में अमर है। पातसाही गजां रो जको घाण ईसर कियो बो इतिहास में अमिट आखरां में अंकित है। किणी कवि कैयो कै ईसर, अकबर रै गयंदां नै इणगत बाढिया कै उणां रा हाडका किणी कारीगर रै कोई काम नीं आया-
बढतै ईसर बाढिया, विडंग तणा वरियांम।
हाड न आवै हाथियां, कारीगर रै कांम।।
एकर भल़ै चितौड़ जमर री झाल़ां सांपड़ियो। साको होयो। साकै री आगीवाण पत्ताजी चूंडावत री जोड़ायत अर जैमलजी बैन बणी। सगल़ा राजपूत जिण वीरत सूं लड़िया उण री कीरत अखी है। जयमलजी रो पग भागो सो वे बैवण में असमर्थ, उण बखत उणां रै भाई कल्लैजी उणांनै आपरै खवां चाढिया अर दोनां भायां जको घमसाण कियो उणरो वरणाव असंभव है। च्यारां हाथां सूं चमकती तरवारां मानो चारभुजानाथ खुद साक्षात लड़ रैया होवै।
‘चितौड़ साकै री झमाल’ में अक्षयसिंह जी रतनू लिखै-
दुय जयमल कर जेम दुय, कल्ला कर करवाल़।
बढ्या चतुरभुज रूप बण, बिहुं कमधज विकराल़।।
इण लड़ाई में पत्ताजी चूंडावत ई आपाण बताय माण पायो।
‘चितौड़ री गजल’ में जती खेता लिखियो है-
जैमल राठवड़ पत्ता!
कै अकबर सूं अड़ता!!
इण रणांगण में इण वीरां री वीरता सूं प्रभावित होय अकबर आगरै रै किले री पोल़ आगै इणां री गजारोही मुरतां बणाय थापी-
जयमल बड़तां जीमणै, पत्तो डावै पास।
हिंदू चढिया हाथियां, अड़ियो जस आकास।।
इण बातरै साखीधर एक डिंगल़ गीत रो एक दूहालो उल्लेखजोग है-
इसी करंता बात अखियात जग ऊपरां,
गैमरां-हैमरां नरां गाहै।
पोल़ चीत्तौड़ री लड़ै जैमल पतो,
मंडीजै दिली री पोल़ मांहै।।
राजस्थानी कवियां जयमलजी री इण वरेण्य वीरता अर मातभोम सारू मरण री हूंस नै सोनलियै आखरां मांडी। किणी कवि कैयो है कै-
चढियो गढ चीत्तौड़, पाल़टियो पड़ियां पछै!
रंग जैमल राठौड़, (तनै) दूणा दोढा दूदवत।।
इण महावीर रै जितरी हाथां में सबल़ाई ही उतरी ईज हिरदै में ईश भक्ति री अनुरक्ति ही। किणी कवि कैयो है कै-
हे जयमल तूं जिणगत मोटै मालक नै आराधतो उणीगत तूं एक मोटै गढ री रुखाल़ी करतां वीरगत वरी। ओ ई कारण है कै थारी द्रढ हरिभक्ति रै कारण तनै जण-जण हरि रै जोड़ मानियो-
मोटा पह आराध करै महि,
मोटो गढ लीजतां मुऔ।
जोय हरिभगत तुआल़ी जैमल,
हरि सारीख आप हुऔ।।
आज ई रैयांण री बखत इण महाभड़ नै कवेसर आपरी ओजस्वी वाणी सूं रंग देतां गुणपूजा रै गुण नै द्रढ संजोय राखै-
रंग हाडा छत्रसाल नै!
मेड़तिया जयमाल।।
ऐड़ै महाभड़ां री मातभोम होवण रै कारण ई मेड़तो मोतियां री माल़ा बाजै-
मेड़तो मोतियां तणी माल़ा!!
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी
वाह ……. बेहतरीन किस्सा ।