आहुवा पच्चिसी – कवि हिम्मत सिंह उज्ज्वल (भारोड़ी)

जबत करी जागीर, जुलमी बण जोधाणपत।
व्रण चारण रा वीर, जबरा धरणे जूंझिया।।1।।
रचियोड़ी तारीख, आजादी भारत तणी।
सत्याग्रह री सीख, जग ने दीधी चारणां।।2।।
अनमी करग्या नाम, अड़ग्या आहुवे अनड़।
करग्या जोगा काम, मरग्या हठ करग्या मरद।।3।।
लोही हंदा लेख, लड़िया बिण लिखिया सुभट।
रगत तणी इल़ रेख, खेंची खुद रा खड़ग सूं।।4।।
कीकर धरी कटार, डाकी खुद रा डील पर।
मरण तणी मनवार, कवियां आहुवे करी।।5।।
मरणो खातर मान, धरणो आहुवे धर्यो।
जोवो सकल जहान, कवि एहड़ा सूरा कठे।।6।।
टपक्यो खूं जीं ठाण, लक्खावत मैल़ो मंडे।
तीरथ रै उनमान, आहुवा रौ आंगणो।।8।।
साहितकार स्वच्छंद, मरण पंथ रा मारगी।
क्यूं नहि रचिया छंद, वीरगती री वार रा।।9।।
रख लेणो निज मान, दुसमी ने बिण दुख दियां।
गांधी ने यो ग्यान, धरणा सूं चारण दियो।।10।।
मर जाता अरि मार, चारण जो चित चावता।
सत्याग्रह रौ सार, कुण देतो संसार ने।।11।।
कवि कट मिलता खाक, वीर अंग निज वाढता।
शिव खुद देवे साख, पाठ रच्यो नदपाट पर।।12।।
सुमिरण कर्यां सगत्त, व्यापन व्हेतो वीररस।
काट दयी निज हत्थ, कविवर खुद री काय ने।।13।।
अचरज रह्यो अदीठ, जन सूं अर इतिहास सूं।
धन्न चारणां दीठ, वीं धरणा ने धन्न है।।14।।
गिर्यो धरा गोविंद, डाको देतां ढोल रौ।
सोणित भर्यो समंद, उण सूरा रै संग ही।।15।।
खल़कन्ती ज्यूं खाल़, कविता नित ही कंठ सूं।
दुरसा कवि दक्काल, कर्यो वार कट्टार सूं।।16।।
अपजस हंदो डंक, कवि मरिया नृप कारणे।
कमधां तणो कलंक, कीकर मिटसी काल़ सूं।।17।।
नह ली सेजां नीन्द, पितु कायर फिटकारियो।
बण्यो हि जग्गा बीन्द, जाय जुड्यो धरणा जगां।।18।।
जाजम दयी बिछाय, आहुवे शिव थान पर।
चारणपण री चाह, चांपावत गोपाल़ चित।।19।।
मेहाजल़ सामोर, अक्खा संग अणगिण सुभट।
ठावी सुरगां ठोर, धाराल़ी री धार सूं।।20।।
रगत लगे रल़केह, बीत्यां सदियां बाद पण।
नाल़ो जो भर नेह, निजर्यां नाल़ो गोगिया।।21।।
कायर कहूं कपूत, धरणा सूं दूरा रह्या।
सुमिरण जोग सूत, सुमरण धरणो साधियो।।22।।
इतिहासां अध्याय, पढियो अज लग पोथियां।
आहुवे मे आय, ऊजल़ उर उमगित हुयो।।23।।
सक्या न होय शरीक, कवि लक्खा किणि जोग सूं।
भूल निवारी ठीक, अंजस जोग उंकारसी।।24।।
भावां बह भरपूर, उजल़ पच्चिसी अखे।
सत्याग्रह रा सूर, समपूं निज श्रद्धान्जली।।25।।
~~हिम्मत सिंह उज्ज्वल (भारोड़ी)