अवन पर कोपियो धणी असमान रो

।।गीत – प्रहास साणोर।।
अवन पर कोपियो धणी असमान रो अजब
अहर निस मुखां सूं अगन उगल़ै।
तड़फड़ै जीवड़ा छांह बिन तरवरां
परम ही हड़बड़ै बर्फ पिगल़ै।।1
छांहपत नीकल़ै गेह सूं छोह में
किरणपत धरा पर रीस काढै।
किड़किड़ी वांटतो धोम सूं कल़कल़ै
चठठ सूं भुंहारा खांच चाढै।।2
मछर में सांम रो गाढ नीं मानवै
धणी री वाम नैं नहीं धारै।
आठ ही जाम में रूठियो अंबरमण
मांण तज ताप में इल़ा मारै।।3
तिमिरहर ऊगतो आकरै तावड़ै
आकरै सूखियो दूध ईखो।
पूगियो नहीं जद पुरंदर पांण नैं
तैण री त्रिया पर हुवो तीखो।।4
मुरड़तो ताप में मेदनीवासियां
जोरवर वेदना नहीं जांणै।
धूंसवा धरा नैं क्रोध मे धुखधुखै
तुरंग सपतास नैं रथां तांणै।।5
हाल बेहाल तो हुवा हरहेक.रा
निसासा जीव नै जंत नांखै।
वसुधा उणमणी लगै हद बापड़ी
आंसुवां जल़ जल़ी हुई आंखै।।6
अणैसो भरी नै बोल ऐ उचार्या
बावल़ा माहरा पूत बेखो।
वदन सिंणगार हद तरवरां बाढनैं
दे दियो दुहागण वेस देखो।।7
भारद्या सरोवर खोदिया भाखरां
मात रो नोचियो गात मोथां।
माहरी छातियां भार कर मोकल़ो
चिना नीं संकिया आक चोतां।।8
विरंगो देख नैं रूप धव विरड़ियो
छतो नीं समझसी भेद छोरा।
मांण सूं नाथ नैं लावसूं मनायर
सरस दिन हरस रा कढण सोरा।।9
आवसी उतर दिस करी पर ओपियो
ठारबा कलेजो नार थोरां।
अरक रो मेटसी मछर उतमादियो
जोपियो कांठल़ां नीर जोरां।।10
सूखिया भरेलो सरोवर सुरांपत
सुरंगी करेलो छटा सामी।
धरेलो ध्यान धणियाप हद धरा रो
हरेलो ताप संताप हामी।।11
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी